सर्वेश्वर दयाल सक्सेना IANS
कला

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जन्मदिन विशेष : "महँगू ने महँगाई में पैसे फूँके टाई में,फिर भी मिली न नौकरी औंधे पड़े चटाई में!!"

23 सितंबर, 1983 को नई दिल्ली में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना इस दुनिया को अलविदा कहा।

Poornima Tyagi

ऐसा कोई ही व्यक्ति होगा जिसने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना(Sarveshwar Dayal Saxena) जी का नाम न सुना हो या उनके बारे में न पढ़ा हो। उन्होंने समाज में व्याप्त हर बुराई पर कड़े शब्दों में लिखा है।सक्सेना जी ने अपना जीवन एक छोटे से कस्बे से शुरू किया और इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज किया।

15 सितंबर, 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती (Basti, Uttar Pradesh) में जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की लेखनी से कोई विधा अछूती नहीं रही।उन्होंने हर विषय पर, हर क्षेत्र में ,हर विधा में लिखा है।कविता,गीत, नाटक, उपन्यास, कहानी, पत्रकारिता या फिर आलेख हो उन्होंने हर विधा में अपनी कलम से जादू बिखेरा हैं।वे हिंदी साहित्य जगत के एक सशक्त हस्ताक्षर है।समाज में व्याप्त हर बुराई को सर्वेश्वर दयाल जी ने अपने शब्दों के माध्यम से आड़े हाथों लिया है।

सक्सेना जी एक सफल पत्रकार भी रह चुके है।उन्होंने ‘दिनमान’ (Dinaman Magazine) का कार्यभार संभाला तो समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में जुट गए।

1982 में प्रमुख बाल पत्रिका ‘पराग’ (Parag children’s magazine) के सम्पादक बनने के बाद मृत्यु तक we पराग से जुड़े रहे।उन्होंने हमेशा बाल साहित्य को प्रोत्साहित करने का कार्य किया।सक्सेना जी का मानना था कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने कई बाल कविताएं लिखी, उन्हीं में से एक है।

महँगू ने महँगाई में

पैसे फूँके टाई में,

फिर भी मिली न नौकरी

औंधे पड़े चटाई में!

गिट-पिट करके हार गए

टाई ले बाजार गए,

दस रुपये की टाई उनकी

बिकी नहीं दो पाई में।

उन्होंने 1949 में इलाहाबाद(Allahabad) से एमए(M.A.) की परीक्षा उत्तीर्ण की।इसके पश्चात 1949 में ही प्रयाग(Prayag) में उन्होंने एजी ऑफिस में बतौर प्रमुख डिस्पैचर के पद पर कार्यभार संभाला। इसके बाद दिल्ली ऑल इंडिया रेडियो(Delhi all India radio) के हिंदी समाचार विभाग में सहायक संपादक पद पर उनकी नियुक्ति हो गई।1960 में वे दिल्ली से लखनऊ रेडियो स्टेशन आ गए और 1964 में लखनऊ रेडियो की नौकरी के बाद वे कुछ समय भोपाल रेडियो में भी कार्यरत रहे।

1964 में जब दिनमान पत्रिका शुरू हुई थी तो वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’(Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya) के आग्रह पर वे दिल्ली आ गए और दिनमान से जुड़ गए ।

उन्होंने जंगलों की कटाई पर भी कई कविता लिखी

कुछ धुआँ

कुछ लपटें

कुछ कोयले

कुछ राख छोड़ता

चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हूँ,

मुझे जंगल की याद मत दिलाओ!

23 सितंबर, 1983 को नई दिल्ली में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना इस दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन जाते-जाते अपनी लेखनी से उन्होंने नई पीढ़ी को क्रांति और रचनात्मकता की फसल तैयार करने के लिए जमीन तैयार करके दे दी है।

(PT)

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