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100वीं पुण्यतिथि: बाल गंगाधर तिलक, जिन्होंने ‘हिन्दी’ को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की उठाई थी माँग, पढ़ें

NewsGram Desk

भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले ओजस्वी, निडर, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी की आज 100 वीं पुण्यतिथि है। तिलक जी के निधन पर खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि हमने आधुनिक भारत का निर्माता खो दिया है। तिलक ही पहले ऐसे कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की मांग की थी।

पत्रकार के रूप में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जीवन-

  • 1881 से लेकर 1920 तक पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में कार्य करते रहे।
  • कुछ वर्षो तक उन्होंने 'केसरी' और 'मराठा' नामक समाचार पत्रों को स्वंय चलाया।
  • मराठा और केसरी किसी भी मायने में मात्र समाचार पत्र नहीं थे, अपितु मुख्य रुप से जनमत की अभिव्यक्ति करने वाले पत्र भी थे। 
  • बाल गंगाधर तिलक इन दोनों पत्रों के संचालक थे। केसरी का मूल घोषणा पत्र, चिपलूड़कर, बालगंगाधर तिलक, आगरकर नामजोशी एवं गर्वे के हस्ताक्षरों से प्रकाशित हुआ था।  
  • केसरी के प्रथम वर्ष में उनके लेखों में किसी लेखक का नाम अथवा विशिष्ट संकेत नहीं रहता था। मात्र भाषाशैली के आधार पर लेखक जाना जाता था।

बालगंगाधर तिलक अपने विचारों की अभिव्यक्ति और प्रचार के लिए केसरी को ही अपना साधन समझते थे और उसके अधिकाधिक प्रचार प्रसार और विस्तार के लिए प्रयत्नशील रहते थे। केसरी एक ऐसा समाचार पत्र था जो जन साधारण की पहुँच में था और इसकी भाषा शैली, सीधी, सरल और स्पष्ट थी। 

संक्षेप में जानें, बाल गंगाधर तिलक के पत्रकारिता के उद्देश्य

  • उनका मानना था की पत्रकारिता का उद्देश्य मात्र समाचारों का प्रकाशन नहीं, अपितु वैचारिक प्रचार प्रसार करना है ।
  • तिलक  का यह उद्देश्य था कि समाचार पत्र सस्ते तथा आम जनमानस की पहुँच में हो।
  • उनके समाचार पत्रों की शैली सीधी, सरल एवं स्पष्ट होती थी जिससे पाठक उसे आसानी से समझ सके।
  • तिलक कि पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य, पीड़ित, शोषित एवं लोगों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध और लोगों के हित में संघर्ष करना था।
  • उनका मकसद, सार्वजनिक शिकायतों का अध्ययन कर, उनके तथ्यों पर शोध करना तथा जनता को उनकी वास्तविकता से रूबरू कराना था।
  • बाल गंगाधर तिलक अपने पत्रकारिता के माध्यम से उस वक़्त के अधिकारियों आदि की लापरवाही, प्रशासन द्वारा अत्याचार और भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए साहस के साथ उसकी आलोचना करते थे।
  • अपने प्रकाशन के माध्यम से वह समाज सुधार के लिए रचनात्मक सुझाव देते हुए लोगों का नेतृत्व करते थे।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक पत्रकार, नेता व क्रांतिकारी होने के साथ साथ उन्हें वेद,उपनिषद, गीता एवं अन्य ग्रंथो का भी ज्ञान था। 

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