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2019 के बाद इस साल फिर होगी अमरनाथ यात्रा, जानिए यात्रा से जुड़े सभी Updates और कहानी

सनातन धर्म के सबसे पवित्र स्थल 'बाबा बर्फानी' के दर्शन के लिए अमरनाथ गुफा(Amarnath cave) की यात्रा दो साल पहले 2019 बीच में रद्द होने के बाद एकबार फिर से जून माह के अंत में शुरू हो रही है। श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने इसकी घोषणा करते हुए बताया कि इस साल यात्रा 30 जून को शुरू होगी और 43 दिन तक यानी 11 अगस्त, रक्षाबंधन के दिन तक चलेगी। यह फैसला जम्मू-कश्मीर(Jammu-Kashmir) के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई बैठक मे लिया गया था।

यह भी मालूम हो कि, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A(Artical 307 and 35A)हटाए जाने के बाद अमरनाथ यात्रा मध्य मे ही सुरक्षा कारणों से रद्द कर दी गई थी। 2020 में कोरोना महामारी के कारण यात्रा सम्पन्न नहीं हो पाई। हालांकि, 2021 में 56 दिनों की यात्रा की घोषणा हुई थी, लेकिन कोरोना महामारी(covid -19) की बेकाबू स्थिति के कारण स्थगित कर दी गई।

इस वर्ष की यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन 11 अप्रैल से प्रारंभ होगी। कोरोना महामारी के कारण सभी श्रद्धालुओं को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना होगा। 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, 75 वर्ष से अधिक के वरिष्ठ नागरिक और 6 हफ्ते से ज्यादा की गर्भवती महिला को यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी। इस बार फ्री बैट्री व्हीकल की सुविधा बालटाल से डोमेल के 2 किलोमीटर लंबे मार्ग पर दी जाएगी। सुरक्षा के लिहाज से सुरक्षाबलों की 250 कंपनियों के करीब 1 लाख जवानों को तैनात करने की योजना है।

अमरनाथ गुफा की खोज, गुफा का स्थान और पहुचने का रास्ता:

आधुनिक दावे के मुताबिक, 1850 में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिए ने अमरनाथ गुफा(Amarnath cave) की खोज की थी। कल्हण द्वारा लिखित पुस्तक राजतरंगिणी में भी अमरनाथ का वर्णन है। एक मान्यता के अनुसार, एक बार जब घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था। पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ गुफा में भोलेनाथ के दर्शन किए थे।

अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय(Himalaya) की गोद में स्थित हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थल है। यह जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से अधिक ऊँचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है। अमरनाथ की पवित्र गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में है। यह गुफा लिद्दर घाटी के सुदूर छोर पर एक संकरी घाटी में अपने रहस्यों को समेटे हुए स्थित है। इस गुफा की पहलगाम से दूरी 46-48 किमोमीटर और बालटाल से दूरी 14-16 किलोमीटर है। अमरनाथ गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पवित्र गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।

गुफा में जाने के लिए दो रास्ते हैं जिसमें पहला रास्ता पहलगाम से है जो 46-48 किलोमीटर लंबा है। इस रास्ते से यात्रा में 5 दिन लगते हैं। और दूसरा रास्ता बालटाल से गुफा की दूरी 14-16 किलोमीटर है, लेकिन खड़ी चढ़ाई की वजह से यह रास्ता सबके लिए मुश्किल है, लेकिन इस रास्ते से यात्रा में 1-2 दिन में संभव है।

अमरनाथ गुफा का रहस्य :

माना जाता है कि अमरनाथ(Amarnath cave) स्थित एक पवित्र गुफा में देवाधिदेव महादेव बर्फ के शिवलिंग के रूप में विराजमान होते हैं। बर्फ से शिवलिंग बनने के कारण इन्हें 'बाबा बर्फानी' के नाम से भी जाना जाता है हैं। यह पवित्र गुफा बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है जिसके कारण गर्मियों के मौसम को छोड़कर यह गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ की सफेद चादर से ढंकी रहती है।

यह एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है। यह शिवलिंग हर वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक पूर्ण हो जाता है और उसके बाद अमावस्या तक आकार में घटता जाता है। बर्फ के शिवलिंग के बाईं ओर दो छोटे बर्फ के शिवलिंग भी बनते हैं, उन्हें माता पार्वती और भगवान गणेश के स्वरुप में माना गया है।

पवित्र गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर और ऊंचाई 11 मीटर है।(Wikimedia Commons)

यात्रा से जुड़ी कथा:

एक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि आप अमर होने का रहस्य बताइए। भोलेनाथ पहले तो प्रश्नो को टालते रहें, लेकिन जब माता पार्वती की जिज्ञासा बढ़ गई तब उन्हें लगा कि अब कथा सुना देना चाहिए। इस कथा को सुनकर अमर होने का रहस्य न जान पाए। अतः इसकी खोज मे महादेव अमरनाथ गुफा पहुंचे।

अमरनाथ गुफा(Amarnath cave) की ओर जाते हुए वे सर्वप्रथम भोलेनाथ नें पहलगाम में नंदी, उसके पश्चात चंदनवाड़ी में अपनी जटा से चंद्रमा फिर शेषनाग झील पर गले के सर्प को छोड़ दिया। इसी क्रम में श्री गणेश को महागुनस पर्वत पर छोड़ दिया। तत्पश्चात पंचतरणी पहुंचकर महादेव ने पांचों तत्वों (धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का परित्याग किया।

माँ पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा(Amarnath cave) पहुंचकर शिवजी नें कथा प्रारम्भ की, ऐसा बताया जाता है कि, कथा के बीच मे ही माता पार्वती सो गई। भगवान को यह पता नहीं चला, वह कथा सुनाते रहे। वहीं अन्दर बैठे दो कबूतर कथा सुनते रहे और बीच-बीच में उनके से भगवान शिव को लगा कि माँ पार्वती कथा सुन रही हैं। कथा समाप्त होने पर महादेव देखा कि, वह जब कथा सुना रहे थे तो माता सो रही थी ।

तब उनकी दृष्टि वहां बैठे दो कबूतरों पर पड़ी। महादेव को क्रोध आ गया। अपने आप को बचाने के लिए कबूतर का जोड़ा उनके चरणों में आ कर बोला, भगवन् हमने आपसे अमरकथा सुनी है और यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूठी हो जाएगी, इसलिए हे प्रभु हमें पथ प्रदान करें। कबूतरों विनती की सुनने के बाद महादेव ने उन्हें वर दिया कि तुम सदैव इस गुफा में निवास करोगे।

आज भी कई श्रद्धालु कबूतर के जोड़े को अमरनाथ गुफा में देखने का दावा करते हैं। इतने ऊंचे और ठंड वाले इलाके में इन कबूतरों का जीवित रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है।

अंत में, शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने लिंगम रूप में प्रकट हुए, जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है और श्रद्धालु उसी के दर्शन के लिए अमरनाथ गुफा की यात्रा पर जाते हैं।

खौफ के साए में होती है अमरनाथ धाम की यात्रा:

अमरनाथ यात्रा आतंकवादियों के हमले के डर के बीच होती है। वर्ष 2017 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 1990 से 2017 तक, इन 27 वर्षों में अमरनाथ धाम की पवित्र यात्रा पर 36 आतंकी हमले हुए, जिनमें 53 तीर्थ यात्रियों की मौत हुई, जबकि 167 घायल हुए।

1993: बाबरी मस्जिद विवाद के बाद अमरनाथ यात्रा पर दो हमले हुए जिसमें तीन लोग मारे गए।
1994: यात्रियों को निशाना बनाकर उन पर आंतकी हमला किया गया जिसमें दो श्रध्दालुओं की मौत हो गई।
1995: हरकत-उल-अंसार आतंकी संगठन ने यात्रा पर लगातार तीसरे वर्ष भी प्रतिबंध लागू कर दिया। इस वर्ष भी तीन हमले किए गए परंतु इसमें किसी की मौत नहीं हुई।
2000: आतंकवादियों ने पहलगाम के करीब आरू नामक स्थान पर हमला किया। हमले में 32 श्रद्धालुओं समेत 35 लोग मारे गए।
2001: शेषनाग में हुए इस आतंकवादी हमले में तीन पुलिस अधिकारियों समेत 12 श्रद्धालु मारे गए।
2002: दो आतंकी हमलों में 11 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। 2017: आतंकियों की गोलीबारी से 8 तीर्थयात्री की मृत्यु हो गई थी।

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