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मौत से जूझने के बाद जरूरतमंदों की मदद के लिए फिर कोलकाता की सड़कों पर उतरे नितई मुखर्जी

NewsGram Desk

By: साईबाल गुप्ता

सामाजिक कार्यकर्ता नितई दास मुखर्जी (52) मौत के मुंह से बाहर आने के बाद एक बार फिर से जरूरतमंदों की सहायता के लिए कोलकाता की सड़कों पर उतर चुके हैं।

मुखर्जी को पिछले साल मार्च में कोरोनावायरस संक्रमण हो गया था, जिसके बाद वह कोलकाता के एक निजी अस्पताल में 42 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ते रहे थे। पूरी तरह से ठीक होने के बाद कोरोना की दूसरी खतरनाक लहर के बीच मुखर्जी एक बार फिर शहर की सड़कों पर वापस आ गए हैं और बेघरों को आश्रय और भूखों को भोजन प्रदान करने के काम में जुट गए हैं।

मुखर्जी, कोविड के प्रभाव के बाद लंबे समय तक चलने या खड़े होने में भी सक्षम नहीं थे। अब वह इस लायक हुए हैं तो समाजसेवा के लिए लोगों के बीच पहुंचने लगे हैं। उन्होंने कहा, मैंने मृत्यु को करीब से देखा है और इसलिए मुझे पता है कि मरना कितना दर्दनाक हो सकता है और मैं नहीं चाहता कि इस शहर में कोई भी बिना भोजन, आश्रय या दवा के दम तोड़ दे। मुझे पता है कि मेरे संसाधन सीमित हैं, लेकिन बहुत से लोग हैं, जो समाज में योगदान करना करना चाहते हैं। मैं केवल उन लोगों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम करता हूं जो मदद करना चाहते हैं और जिन लोगों को मदद की आवश्यकता है।

मुखर्जी पिछले 25 वर्षों से कोलकाता की सड़कों पर कोलकाता पुलिस और राज्य के स्वास्थ्य विभाग की मदद से जरूरतमंद लोगों को भोजन, आश्रय, कपड़े और दवा उपलब्ध करा रहे हैं। 29 मार्च को उन्हें तेज बुखार और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत हुई थी। अगली सुबह, उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया और उनका कोरोनावायरस परीक्षण किया गया।

जिन्होंने कोरोना को मात दी वह अब समाज सेवा में जुट गए हैं।(आईएएनएस)

जैसे ही टेस्ट रिपोर्ट आई, तो पता चला कि वह कोविड-19 वायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसके बाद किए गए टेस्ट में भी वह पॉजिटिव आए और उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। यह कारण रहा कि उन्हें 38 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन नितई दा (उन्हें जानने वाले लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं) ने हार नहीं मानी और आखिर में उन्होंने कोरोना को हरा दिया। 42 दिनों के बाद उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अब डरे हुए हैं, मृदुभाषी व्यक्ति मुस्कुराया और कहा, मैं मृत्यु के कारण वापस घर पर नहीं बैठ सकता। मैं तब जरूर मर जाऊंगा। यह पिछले 25 वर्षों से मेरा काम है और यह मेरी रगों में समा गया है। मेरे करीबी लोगों ने मुझसे कहा कि अब इसमें शामिल नहीं होना है, लेकिन मैं भला ऐसा कैसे कर सकता हूं? ऐसे देश में जहां सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क इतना नाजुक है, हम जैसे लोग प्रशासन और जरूरतमंदों के बीच एक पुल का काम कर सकते हैं। मैंने इसे लंबे समय तक जिया है और मैं इसे केवल इसलिए नहीं जाने दे सकता, क्योंकि मुझे कोविड था।(आईएएनएस-SHM)

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