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महानता के दावे करने वाले अमेरिका के जड़ में बसा है रंगभेद!

Parth Kusumakar

रंग भेद एक ऐसी कठोर सच्चाई है जो हर देश के भीतर सामानांतर रूप से चलती आ रही हैं. विकसित देशों में इसके चलते यह दबाव भी पड़ा कि वो अपने राष्ट्रीय कानूनों में रंगभेद और नस्लभेद विरोधी कठोर प्रावधानों का निर्माण करें लेकिन हुआ कुछ नहीं। एक देश जो शुरुआत से भी रंग भेद का केंद्र रहा तो वो देश है अमेरिका। महान होने का दावा करने वाले देश की जड़ें कितनी कमजोर हो सकती है ये वहां के घटनाक्रम से साफ़ पता चलता है।

हाल ही में अश्वेत अफ्रीकी-अमेरिकन जॉर्ज फ्लॉएड की मौत हुई थी, जिसके बाद अमेरिका के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए. यहां तक की देश में युद्ध के हालात पैदा हो गए थे। एक मिनियापोलिस पुलिस अधिकारी के जॉर्ज की गर्दन पर घुटना रखने से अमरिकी लोगों के बीच गुस्सा था और अभी भी है।

अमेरिका में हिंसक प्रदर्शनों इतने ज्यादा हो गए हैं कि अब संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले में संज्ञान लिया।(Wikimedia Commons)

अमेरिका में हिंसक प्रदर्शन इतने ज्यादा हो गए हैं कि अब संयुक्त राष्ट्र ने इस मामले में संज्ञान लिया है. संयुक्त राष्ट्र ने इस घटना को निराशावादी बताया है। यूएन ने कहा कि पुलिस के हाथों में सालभर में, कई अश्वेत अमेरिकन लोगों की मौत हुई है। वहीं प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जॉर्ज फ्लॉएड को मारना उदाहरण है कि कैसे अमेरिका में अश्वेत लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और ये सिलसिला पहले से चलता आ रहा है।

3 अरब डॉलर की संपत्ति की मालकिन और मीडिया क्वीन कहलाने वाली ओपरा विन्फ्रे भी एक बड़ा उदहारण हैं।
उनका बचपन भी गरीबी और रंगभेद के दलदल में बीता। सब्ज़ियों के छिलकों से बने कपड़े पहनने की मजबूरी और 9 साल की उम्र में यौन शोषण झेलने वाली लड़की अमेरिका की सबसे अमीर अश्वेत महिला बनती है, तो ये सफ़र इतना आसन तो नहीं रहा होगा।

ऐसा ही एक परिवार भारतीय मूल के अमरीकी वैष्णो दस बगई(Vaishno Das Bagai) का, उनका परिवार कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को पहुंचा। वे एक ऐसे आजाद देश में रहना चाहते थे जहां उत्पीड़न न हो. लेकिन उन्होंने वहां जो पाया, वह कहीं अधिक अन्याय, पक्षपात और नस्लवाद था। उनकी पत्नी कला बगई अमेरिका में बसने वाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक थीं। कुछ साल बाद, परिवार ने बर्कले में एक घर खरीदा। लेकिन उन्हें कभी भी वहां रहने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि वे भारतीय थे जिनका अंग्रेजी संस्कृति में कोई स्थान नहीं था।

वैष्णो दास बगई अपने जनरल स्टोर में।(Wikimedia Commons)

वैष्णो दास बगई का जन्म भारत के शहर पेशावर जो अब अब पाकिस्तान में है वर्ष 1891 में हुआ था। वह एक अमीर परिवार से थे और उनका एक बड़ा वंश था। वह, सैन फ्रांसिस्को में 'बगई बाज़ार' नाम से एक जनरल स्टोर शुरू करने में सफल हुए थे। हालाकिं नस्लीय पूर्वाग्रहों से परेशान होकर परिवार सैन फ्रांसिस्को वापस चला गया, यह डर था कि उनके बच्चों को उनके पड़ोसियों द्वारा नुकसान पहुंचाया जाएगा। 1921 में, हालांकि, वैष्णो प्राकृतिकरण के माध्यम से एक अमेरिकी नागरिक बन गया। परिवार को यह विश्वास दिलाया गया कि वे हर दूसरे अमेरिकी की तरह हैं। वे सैन फ्रांसिस्को में रहते थे, जहाँ बच्चे स्कूल जाते थे और कला ने दूर देश में अपने अलगाव का सामना करने के लिए अंग्रेजी सीखना शुरू किया। लेकिन वे कभी भी ऐसे देश में पूरी तरह से स्वीकार नहीं किए गए जहां एशियाई विरोधी नाराजगी बढ़ रही थी।

हालांकि, वैष्णो क़ानूनी रूप से एक अमेरिकी नागरिक बन गएथे. परिवार को यह विश्वास दिलाया गया कि वे हर दूसरे अमेरिकी की तरह हैं लेकिन उनके बच्चों को लगातार नुकसान पहुंचाया गया। कला, तीन बच्चों की एक मात्र मां, आय के स्रोत के बिना, और सबसे महत्वपूर्ण बात, अमेरिकी नागरिकता के बिना फंसे हुए थे। लेकिन अंत में कला ने महेश चंद्र नामक एक व्यक्ति से दोबारा शादी की। नए कानूनों के प्रस्तावित होने के बाद उन्हें 1946 में अंततः अमेरिकी नागरिकता दे दी गई।

वॉशिंगटन पोस्ट की स्टडी के अनुसार 2015 में पुलिस की ओर से मारे गए अश्वेत अमेरिकन लोग, श्वेत अमेरिकन लोगों की तुलना में दो तिहाई है।

2019 की जनगणना के हिसाब से अमेरिका की कुल जनसंख्या में 13.4 फीसद हिस्सा अश्वेत अमेरिकन लोगों का है जबकि श्वेत अमेरिकन लोगों की संख्या 76.5 फीसद यानि कि छह गुना ज्यादा है…#blacklivesmatter आए दिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता रहता है।

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