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“नागा साधु बनना आसान नहीं”

NewsGram Desk

हाल ही में अभिनेत्री पूजा बेदी ने नागा साधुओं पर एक विवादित बयान दिया है, जिस पर साधु और सन्यासियों में असंतोष देखा गया और महंत नरेंद्र गिरी ने पूजा बेदी को अगले कुम्भ में आकर नागा साधुओं के विषय में जानने को कहा। यह पूरा विवाद इस प्रकार शुरू हुआ, जब अभिनेता मिलिंद सोमन ने अपने सोशल मीडिया पर एक नग्न तरवीर पोस्ट की, जिस पर उन्हें काफी तीखी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा। और तो और गोवा पुलिस ने मिलिंद के खिलाफ कथित रूप से अश्लीलता को बढ़ावा देने के लिए मामला भी दर्ज किया। जिस पर बेदी ने मिलिंद का बचाव करते हुए ट्वीट किया था, "मिलिंद सोमण की इस फोटो में कुछ भी अश्लील नहीं है। अश्लीलता देखने वाले की कल्पना में होती है। यदि नग्नता एक अपराध है तो सभी नागा बाबाओं को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। केवल शरीर पर राख रगड़ लेना इसे स्वीकार्य नहीं बना सकता है!"

महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, "पूजा बेदी को नागा परंपरा का कोई ज्ञान नहीं है। हम अगले साल हरिद्वार में होने जा रहे महाकुंभ में पूजा को आमंत्रित करेंगे ताकि वह नागा संन्यासियों के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकें।" गिरि ने कहा कि "नागा संन्यासियों की परंपरा से एक मॉडल या फिल्म कलाकार की नग्नता और अश्लीलता की तुलना करना गलत है। उन्हें कुंभ में कुछ समय बिताना चाहिए और नागा सन्यासियों की कठिन तपस्या को देखना चाहिए।" उन्होंने कहा कि "नागा सन्यासी वैष्णव और दिगंबर जैन परंपराओं में पाए जाते हैं और सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इन संन्यासियों को जीवन में घोर तपस्या और त्याग करने पड़ते हैं।"

एक नागा साधु को दीक्षा ग्रहण करने के लिए इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:

एक नागा साधु बनने के लिए जब कोई आम आदमी आता है तब अखाड़ा अपने स्तर पर उसके और उसके परिवार की तहकीकात करती है, कि "क्या वह व्यक्ति नागा साधु बनने लायक है?" जब अखाड़ा को यह सुनिश्चित हो जाता है, तब उसे अखाड़े में प्रवेश कराया जाता है।

यहाँ से नागा साधु बनने की परीक्षाएं शुरू होती हैं। जिसमे सबसे पहले उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है, जिसमे 6 से 12 महीने भी लग सकते हैं। जब अखाड़ा और गुरु सुनिश्चित हो जाते हैं कि यह दीक्षा लेने लायक हो चूका है, तब उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।

जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करने की परीक्षा में सफल हो जाता है, तब उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष बनाया जाता है। उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं। ये पांच गुरु पंच देव या पंच परमेश्वर (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश) होते हैं।

अब सबसे कठिन किन्तु महत्वपूर्ण पड़ाव शुरू होता है, नागा साधुओं को महापुरुष के बाद अवधूत बनाया जाता है। जिसमे सबसे पहले उन्हें अपने बाल कटवाने होते हैं और अवधूत रूप में साधक स्वयं को अपने परिवार और समाज के लिए मृत मानकर अपने हाथों से अपना श्राद्ध कर्म करता है। यह पिंडदान अखाड़े के पुरोहित कराते हैं।

इस प्रक्रिया के बाद नागा साधुओं को 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना होता है। इसके बाद वरिष्ठ नागा साधु, लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वह नागा दिगंबर साधु बन जाते हैं।

 नागा साधु को हर समय भस्म और रुद्राक्ष धारण करना पड़ता है, यह उनके लिए एक वस्त्र के समान काम आता है।  रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं और यह भस्म भी ताजी होती है।

नागा साधु केवल एक समय भोजन ग्रहण करते हैं और वह भी भिक्षा मांग कर। एक विशेष बात यह कि नागा साधु सात घर से अधिक भिक्षा नहीं मांग सकते। अगर उन्हें सातों घरों से भिक्षा न मिले तब उन्हें भूखे ही रहना पड़ता है।

नागा साधु कभी भी ऐसी वस्तुओं का उपयोग नहीं करते जिस से आराम प्राप्त हो, जैसे वह खाट, गदली का उपयोग नहीं कर सकते। उन्हें जमीन पर ही सोना पड़ता है चाहे जैसा भी तापमान रहे, और यह कठोर नियम हर नागा साधु को मानने पड़ते हैं।

एक बार नागा साधु बनने के बाद उनके पद और अधिकार भी बढ़ते जाते हैं। नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबरश्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर जैसे पदों तक जा सकता है।

किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी को ही प्रणाम करना आदि कुछ और नियम हैं, जो दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ते हैं।  

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