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बिहार में छिड़ी ‘का बा’ और ‘ई बा’ की लड़ाई को भूपेंद्र यादव ने दिया नया रंग

NewsGram Desk

बिहार विधानसभा चुनाव में 'का बा' और 'ई बा' के नारों की छिड़ी जंग को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने नया रंग दे दिया है। उन्होंने विपक्ष के 'का बा' के जवाब में भाजपा के दिए नारे 'ई बा' को बिहार की लोक संस्कृति और पहचान से जोड़ दिया है। भूपेंद्र यादव ने 'ई बा' के नारे के समर्थन में भिखारी ठाकुर से लेकर राष्ट्रकवि दिनकर तक की चर्चा की है। पार्टी नेताओं का कहना है कि भूपेंद्र यादव अपने बौद्धिक तेवर का चुनाव में भरपूर इस्तेमाल कर विपक्ष को नारों के मोर्चे पर भी मात देने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव बिहार चुनाव को लेकर लगातार चुनावी डायरी भी लिख रहे हैं। उनके मुताबिक, बिहार चुनाव में विपक्षी दलों ने कहना शुरू किया, 'बिहार में का बा' ? यह एक ऐसा सवाल था जिस पर भाजपा ने नया नारा दिया कि 'बिहार में ई बा'। दरअसल बिहार की राजनीतिक स्थिति, सामाजिक बुनावट और सांस्कृतिक संरचना पर नजर डालते हैं तो 'का बा' का जवाब इन सन्दर्भों में और व्यापक हो जाता है। यही वजह है कि अब बिहार के इस चुनाव में 'बा' शब्द केवल एक सहायक क्रिया भर नहीं रह गया है, बल्कि अब यह चुनावी नारे में ढलकर नए अर्थ ले चुका है। बात चल पड़ी है कि बिहार में का बा ?।

भूपेंद्र यादव के मुताबिक, "अब बिहार में चुनाव, राजनीति और सरकार से अलग भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे हम इस बा के आलोक में रख सकते हैं। बिहार के पास लोकभाषा है, लोकसंस्कृति है और लोक कवियों की पूरी एक परम्परा है।

बिहार में मिथिला के कोकिल कहे जाने वाले पं. विद्यापति के रसपूर्ण गीतन के सरस पुकार बा, भिखारी ठाकुर के बिदेसिया बा, महेंदर मिसिर के पुरबिया तान बा, रघुवीर नारायण के बटोहिया बा, गोरख पाण्डेय के ठेठ देसी कविता बा और रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रवादी कविता के ओजस्वी हुंकार भी बा।"

उन्होंने कहा, "बिहार में कजरी बा, चईता बा, बिरहा बा, बारहमासा बा, जोगीरा बा। लोकगीत, संगीत और कविता के क्षेत्र में बिहार के आपन अलग और विशिष्ट पहचान बा। और इस सब के बाद जैसा कि बिहार की ही माटी के भोजपुरी के बड़े कवि रघुवीर नारायण ने लिखा है – सुन्दर सुभूमि भईया भारत के देसवा, मोरे प्राण बसे हिम-खोहि रे बटोहिया भारत के प्रति गौरव-बोध भी बिहार की माटी में ही बा।"

भाजपा महासचिव 'चुनाव डायरी' में कहते हैं कि भारतीय राजनीति में नारों का अपना विशेष महत्व है। अस्सी के दशक में बिहार के ही सपूत रामधारी सिंह दिनकर की कविता सिंघासन खाली करो कि जनता आती है, आपातकाल के विरुद्ध नारे की तरह गूंजती रही थी। डॉ. लोहिया के बारे में भी यह नारा बड़ा प्रसिद्ध है कि-जब जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता है। ऐसे और भी बहुत-से नारे रहे हैं।

इस चुनाव में भी अलग-अलग तरह के नारे दिए जा रहे हैं। लेकिन बिहार में ई बा का जो नारा राजग की तरफ से दिया गया है, वो न केवल अपनी बनावट में अलग है, बल्कि बिहार की पारंपरिक छवि से अलग उसकी एक नयी और चमकदार छवि प्रस्तुत करता है।

भूपेंद्र यादव ने कहा, "मैं समझता हूं कि बिहार की जनता निश्चित रूप से इससे जुड़ेगी। हां, अंत में यह कहना चाहूंगा- जो लोग पूछते हैं कि बिहार में का बा ? उनके लिए सिर्फ इतना कहूंगा कि बिहार में एम्स बा, कई गो एयरपोर्ट बा, घर-घर बिजली बा, गांव-गांव में सड़क बा, कोसी पर पुल बा, कोविड के अस्पताल बा, पढ़ाई के बड़का-बड़का संस्थान बा.. हिंसा, फिरौती, छिनैती, रंगदारी, वसूली से मुक्ति बा. बहुत कुछ बा.. कितना गिनाया जाए भाई..?(आईएएनएस)

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