By – जफर इकबाल
कश्मीरी पंडितों के जेहन से 19 जनवरी 1990 का दिन कभी नहीं निकल सकता, यह वही दिन है, जब घाटी में बढ़ती उग्रवाद से अपनी जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा था। अपने क्षेत्र से निकले समुदाय के लिए सबसे बड़ी चिंता उनके प्रवास के बाद उनकी पहचान को बचाना था, हालांकि जम्मू में एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन ने इन बिखरे हुए कश्मीरी पंडितों को जोड़ने में मदद की और आज भी कर रहा है।
एक सरकारी सर्वेक्षण द्वारा देश में नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन के रूप में 'रेडियो शारदा' (Radio Sharda) को विस्थापित समुदाय के लिए एक कड़ी की तरह माना जाता है। पूरी तरह से कश्मीरियों द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक रेडियो स्टेशन के माध्यम से वह अपने समुदाय के सदस्यों के साथ संपर्क में है और अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहा है।
कश्मीरी पंडित प्रवासी रमेश हंगलू को सामुदायिक रेडियो स्टेशन की स्थापना का विचार लंदन में एक मुस्लिम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर प्रवासी से आया था, उन्होंने ब्रिटेन में बसे पीओके के मीरपुरी समुदाय के लिए लंदन में एक ऐसा ही रेडियो स्टेशन स्थापित किया था। जम्मू एवं कश्मीर का पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो शारदा (Radio Sharda) दुनिया भर में बिखरे कश्मीरी समुदाय को अपनी जड़ों से जोड़ने और कश्मीरी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने में मदद करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
सामुदायिक रेडियो स्टेशन जम्मू में एक बस्ती कॉलोनी से पंडित समुदाय के सदस्यों द्वारा निर्मित, संचालित और प्रस्तुत की जाती है। (Pixabay)
हंगलू ने कहा, "रेडियो शारदा (Radio Sharda) ऐसे सभी कश्मीरी भाषी लोगों के लिए है, जहां कश्मीरी लोग रहते हैं। हमें उन 112 देशों का फीडबैक मिला है जहां रेडियो शारदा को सुना जाता है।" गौरतलब है कि साल 1990 में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी में उग्रवाद के बाद अपना घर-बार छोड़ दिया था। अपनी जमीन, संपत्तियों को पीछे छोड़ कर वे जम्मू में प्रवासी शिविरों में बस गए।
कश्मीरी भाषा में अपने पूरे कंटेंट के साथ सामुदायिक रेडियो स्टेशन जम्मू में एक बस्ती कॉलोनी से पंडित समुदाय के सदस्यों द्वारा निर्मित, संचालित और प्रस्तुत की जाती है। इसके लॉन्च होने के छह साल बाद इंटरनेट पर उपलब्ध सामुदायिक रेडियो स्टेशन को भारत सरकार के सूचना और प्रसारण सर्वेक्षण द्वारा देश के नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन का स्थान दिया गया है। रेडियो शारदा (Radio Sharda) ने 2019 में दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते हैं।
अंग्रेजी में पढ़ने के लिए – Is Tandav Web Series Promoting Religious Flares? Know The Reason Behind Controversy!
घाटी से पलायन करने के तीन दशक बाद कश्मीरी पंडित पूरी दुनिया में बिखरे हुए हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन वे कश्मीर लौटेंगे। इस बीच वे अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहे हैं, और रेडियो शारदा इसके लिए एक ऐसी ही पहल है। रेडियो शारदा (Radio Sharda) में प्रोग्रामर मंजू रैना ने कहा, "हमारे पास भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक मंच नहीं था, लेकिन अब हमारे पास एक मंच है। हमारे बच्चों के लिए भाषा सीखना महत्वपूर्ण है।" (आईएएनएस)