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देश में कोरोना और कैंसर का इलाज समान स्तर पर होना चाहिए: डॉ. अभिषेक शंकर

Shantanoo Mishra

डॉ. अभिषेक शंकर(Dr. Abhishek Shankar), एमडी लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एंड एसोसिएटेड हॉस्पिटल्स, दिल्ली में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग में एक सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने 2012-2019 तक ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली में विभिन्न क्षमताओं यानी रेजिडेंट, रिसर्च फेलो और फैकल्टी में काम किया है। वह एक NCI कैंसर रोकथाम फेलो और कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं। वह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समितियों के सदस्य और अध्यक्ष हैं।

डॉ.अभिषेक शंकर

शान्तनू: डॉ. अभिषेक कुछ अपने विषय में बताएं?

डॉ. अभिषेक: मेरा नाम डॉ. अभिषेक है, और मैंने अपने डॉक्टरी की पढ़ाई महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस से की है। जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ गांधी जी के सिद्धांतों को भी बताया जाता था। जीवन में आने वाली कठिनाइयों से किस तरह से सामना करें वह बताया जाता था। जैसे श्रमदान करना, सुबहे जल्दी उठना, यह सभी चीजे मेडिकल की पढ़ाई से हटकर बताई जाती थीं। यह बहुत अनूठा था और वहां फिजिक्स, केमिस्ट्री एवं बायोलॉजी के इलावा इस विषय पर भी अलग से परीक्षा ली जाती थी। उस जगह ने हमें यह सिखाया कि हम अपने समाज के लिए किस तरह काम आ सकते हैं और हमने भी वहाँ रहकर लोगों के लिए काम किया। उसके बाद रास्पबेरी कॉलेज से रेडिएशन ऑन्कोलॉजी(Oncology) में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद मुझे मौका मिला एक कम समय की फ़ेलोशिप के लिए अमेरिका जाने का। फिर वापस भारत आकर मुझे एक नया विभाग बनाने का विचार आया जो कैंसर(Cancer) की रोकथाम के जाँच की बात करेगा।

रोकथाम एक वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से हम इन्हे चार भागों में बांटते हैं प्रिमोरियल रोकथाम यानि कैंसर(Cancer) के आने के पहले ही आप कुछ ऐसा करें जिससे यह बीमारी न हो, प्राइमरी रोकथाम का पहला माध्यम यह है कि आप नागरिकों को कैंसर(Cancer) के विषय में जागरूक करें या दूसरा माध्यम है रसायन रोगनिरोध या चेमोप्रोफाईलेक्सिस, बहुत संख्या में ऐसे कैंसर(Cancer) रोग भी हैं जिन्हे टीके द्वारा रोका जा सकता है। हम अभी भारत में सबसे अधिक ध्यान माध्यमिक या सेकेंडरी रोकथाम पर दे रहे हैं, जिसका मतलब है शीघ्र रोग का निदान और उसका उपचार, किन्तु यह बात भी सबको पता है कि भारत में कैंसर(Cancer) जल्दी पकड़ में नहीं आता है। इसलिए हम केवल रोग का निदान और और उसके उपचार पर काम कर रहे हैं, जो कि अच्छी बात नहीं है। तीसरा रोकथाम जिसमे बहुत ध्यान देने की जरूरत है, वह है 'डिसेबिलिटी लिमिटेशन एंड रिहैबिलिटेशन' जिसमे हम देखते हैं कि कैंसर के मरीज में आज-कल कम दर्द वाला या नरम देखभाल की बात होती है, जो बहुत बीमार मरीज हैं कैसे उनकी जीवन को बेहतर बनाया जाए, बाकि सभी जो दिक्कतें आती हैं वह जिंदगी के आखिरी पल में ना हों। क्योंकि एक ऑन्कोलॉजिस्ट होने के नाते हम इस जद्दोजहद में रहते हैं कि एक मरीज के जीवन के दिनों को बढ़ाया जाए। यह बहुत अच्छा विचार है, और यह विचार मुझे तब आया जब मैं पढ़ता था, तब मैं देखता था कि कुछ मरीज ऐसे भी हैं जो ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं, कुछ की छह महीने बाद ही मृत्यु हो जाती है। तो हमने सोचा कि ऐसा क्यों होता है, यह अंतर कैसे आ रहा है? हमने कई विषयों पर काम किया और यह पता चला कि जो लोग बीमारी होने के बहुत समय बाद आते हैं उनमें यह बीमारी खतरनाक रूप ले लेती है। तो हमने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के साथ मिलकर, स्तन कैंसर(Breast Cancer) जैसे विषय को संबोधित करने के लिए एक फिल्म बनाई थी। क्योंकि नारी एक एक परिवार के लिए अहम स्तम्भ की तरह होती हैं। किन्तु हमे लगा कि केवल फिल्म बनाने से या इन नाटकों से शायद यह मकसद पूरा न हो, तो हमने 2010 में केवल स्तन कैंसर(Breast Cancer) के लिए एक अभियान शुरू किया, किन्तु उसके बाद हमे लगा कि इसे एक प्रकार के कैंसर(Cancer) तक सीमित रखना ठीक नहीं होगा तो हमने उसमे अन्य प्रकार के कैंसर(Cancer) बिमारियों के लिए भी जागरुकता अभियान शुरू किया। अब तो यह अभियान काफी बड़ा हो चुका है, 15 से 20 राज्यों तक यह अभियान पहुँच चुका है। और इस अभियान से लाखों लोग जुड़ चुके हैं।

शान्तनू: अधिकांश लोगों को यह पता है कि कैंसर होता किससे है, किन्तु कुछ लोगों यह पता नहीं होगा कि कैंसर होता क्या है? इस पर भी प्रकाश डालें।

डॉ. अभिषेक: कैंसर(Cancer) को समझना आसान है, कैंसर(Cancer) कभी भी आपके कोशिकाओं में या शरीर के किसी भी अंग में असामान्य वृद्धि से होती है। यानि डीएनए में परिवर्तन आता है तो वह कैंसर(Cancer) होता है। ट्यूमर(Tumor) मतलब शरीर के किसी भी अंग का जरूरत से अधिक विकसित होना। अब ट्यूमर(Tumor) दो तरह के हो सकते हैं एक होता है बैनाइन ट्यूमर जो कि एक कम अवस्था में होता, ज्यादा से ज्यादा उसका आकार बढ़ने से वह आप-पास के अंगों पर दबाव डालता है। दूसरी है मैलिग्नैंट ट्यूमर(Melignent Tumor), जो कई तरह शरीर में फैलता है जिससे यह इस बीमारी को खतरनाक रूप दे देता है।

शान्तनू: अभी कोरोना महामारी भी किसी से छुपी नहीं है, इसी बीच ऐसी भी एक हवा उड़ाई गई थी कि कैंसर और कोविड-19 कई हद तक एक समान है? आप इसे कैसे देखते हैं?

डॉ. अभिषेक: नहीं! कोरोना(COVID-19) और कैंसर(Cancer) दोनों अलग-अलग बीमारियां हैं। कोरोना(COVID-19) एक वायरल बीमारी है और शुरुआती दौर में सब इस बीमारी के विषय में कुछ नहीं जानते थे, तो इसको फेफड़ों की बीमारी कहा गया था। किन्तु बाद में यह पता चला की यह फेफड़ों पर असर करने के अलावा यह विभिन्न अंगों की रक्त वाहिकाओं पर भी असर डाल रहा है। धीरे-धीरे इस बीमारी के विषय में और भी जानकारियां मिलने लगीं, और इसका असर जो है वह बहुत व्यापक है किन्तु मुख्यतः यह फेफड़ों पर ज्यादा प्रभाव करता है। वहीं, कैंसर(Cancer) के अलग-अलग जगहों के लिए अलग-अलग जिम्मेदार कारक हैं। कैंसर(Cancer) एक व्यापक रूप है, मान लीजिए कि आप फेफड़ों के कैंसर(Cancer) की बात करते हैं तो आपको उसका जोखिम तत्व मालूम है। 95% पहले के ज़माने में कहा जाता था कि यह धूम्रपान से होता है, किन्तु आज जब इसपर सामान्य चिंतन किया जाता है तो यह पता लग रहा है कि पर्यावरणीय कारक या वायु प्रदूषण जिसे हम कहते हैं, वह भी कैंसर(Cancer) के मुख्य कारकों में से एक है। आपको जान कर यह हैरानी होगी कि पहले जो 95% धूम्रपान से कैंसर(Cancer) होने का दर था वह अब 80% से नीचे आ रहा है, जो की विकासशील देशों के लिए एक चिंता का विषय है। जहाँ वायु प्रदूषण तम्बाकू से ज्यादा बड़ा कारण है मौत के लिए। अब हम यदि सर्विकल कैंसर(Cervical Cancer) की बात करें तो वह एक वायरस की वजह से होता है तो कैंसर(Cancer) शरीर के अलग-अलग हिस्से में हो सकता है। फेफड़ों का कैंसर(Cancer) और कोरोना कुछ हद तक एक समान है किन्तु इसके लिए भी जाँच है जिससे अच्छे से बीमारी का पता चल सकता है।

शान्तनू: कोरोना द्वारा जिस तरह मृत्यु दर में वृद्धि हुई और लोगों ने इसके रोक-थाम पर जिस तरह से काम किया तो कोरोना दर में कमी आ रही है, तो क्या कारण है कि जनता में कैंसर के प्रति इतनी जागृति नहीं है?

डॉ. अभिषेक: देखिए! कोविड-19(COVID-19) एक महामारी है जो सभी देशों में फैला है और सभी देशों ने मिलकर इसके रोकथाम पर काम भी किया। किन्तु कैंसर(Cancer) एक महामारी नहीं है। यह बात सही है कि जितनी मौतें पिछले साल कोरोना(COVID-19) से हुईं उससे अधिक मृत्यु हर साल कैंसर(Cancer) से होती हैं, इस देश में 16-17 लाख लोग धूम्रपान की वजह से मर जाते हैं, वायु प्रदूषण से 21 लाख से ज्यादा लोग मरते हैं, तो कभी इस विषय पर बड़े पैमाने कोई मीडिया अभियान देखा है? जिसमे यह बताया जाए कि कैंसर इतना बढ़ रहा है और हमे इसके सशक्त उपाय करने पड़ेंगे! कोरोना(COVID-19) पर रोकथाम इसलिए भी जोरों पर है क्योंकि यह संक्रामक बीमारी है, जो कि कैंसर(Cancer) नहीं है। इसी लिए लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ी है और मीडिया अभियान चलाए गए है। मुझे लगता है कि कैंसर(Cancer) जैसी बीमारी के लिए जो केवल भारत 8.5 लाख लोगों की मौत का कारण है, यदि इसी तरह से बड़े स्तर पर जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए तो लोगों को हॉस्पिटल जल्दी पहुँचने में मदद मिलेगी। बड़ी बात यह कि हमारे पास भी उतने आधुनिक हॉस्पिटल नहीं हैं कि हम एक साल में आने वाले 13.5 लाख लोगों का इलाज कर पाएं। कोरोना(COVID-19) में संयुक्त प्रयास किया जा रहा है मगर कैंसर(Cancer) में यह सब अलग-अलग हैं, यानि कोई कर रहा है तो अकेले ही कर रहा है। अभी जो प्रयास किए भी जा रहे हैं वह आपके इलाज पर किए जा रहे हैं न कि जागरूकता पर। डॉक्टरों को भी इस अभियान से अधिक संख्या में जुड़ना चाहिए, तभी कुछ हो पाएगा। जनता द्वारा जो भी समुदाय आधारित गतिविधियां हैं उन्हें बलदलने के लिए कम से कम 15-20 साल लगते हैं और दिल्ली के लोगों ने 50 साल मेहनत करके जो दिल्ली की हवा को नुकसान पहुँचाया है उसे सुधारने के लिए उतना या उससे अधिक साल लग जाएंगे। और वह फ़िलहाल देखने को नहीं मिल रहा है।

वायु प्रदूषण धूम्रपान से अधिक जानलेवा है।(Pixabay)

शान्तनू: जिस रफ्तार से कोरोना महामारी वापस बढ़नी शुरू हो गई है, तो क्या अप्रेल वाली स्थिति में हम वापस चले जाएंगे या हम कोरोना के साथ कैंसर के लिए भी तैयार हैं?

डॉ. अभिषेक: दोनों चीज़ों पर हमारा ध्यान रहना चाहिए, एक चीज़ जरूरी है तो इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरी चीज़े जरूरी न हों। यहाँ पर लॉकडाउन के समय मृत्यु दर उनकी घटी है जो सड़क हादसों में होते थे। लेकिन भारत में अभी भी मृत्यु के सभी कारणों का पता नहीं लग सका है। वापस मुद्दे पर आते हैं कि मैंने कैंसर(Cancer) विशेषज्ञ होने के नाते इस विषय पर पहले भी लिखा था कि देश में लगभग एक लाख लोग कैंसर(Cancer) की जाँच से अछूते रह जाएंगे, क्योंकि हम उन सुविधाओं को खोल नहीं रहे हैं और अभी भी कैंसर हॉस्पिटल को आप कोरोना के इलाज के लिए समर्पित रखते हैं तो कैंसर(Cancer) मरीजों का भी सोचना होगा। जान सबकी महत्वपूर्ण है, कोरोना में भारत का मृत्यु-दर 1.5 प्रतिशत है 98.5 प्रतिशत लोग बिलकुल ठीक हो रहे हैं, वहीं कैंसर(Cancer) द्वारा मृत्यु-दर हर साल 13.27 लाख मरीज आते हैं जिनमे से मरने वालों की संख्या 8.51 लाख है। तो सोचिए कि कैंसर(Cancer) द्वारा मृत्यु-दर 50 प्रतिशत से भी अधिक है। तो मुझे लगता है कि पुरे कार्य प्रणाली को पुनर्गठित करना पड़ेगा, क्योंकि कैंसर(Cancer) जैसी बीमारी को जहाँ केवल एक मौका मिलता है अपनी बीमारी को बिलकुल ठीक करने का वह मौका कहीं न कहीं आप उनसे चीन रहे हैं, और मुश्किल यह है कि कोरोना का इलाज आज किसी भी सामान्य हॉस्पिटल में करा सकते हैं किन्तु 90 प्रतिशत जो कैंसर जाँच केंद्र हैं जहाँ कैंसर की उचित व्यवस्था है वह शहरी इलाकों में है। और अभी भी भारत की 70 प्रतिशत जनता गांव में निवास करती है, इसलिए दिल्ली जैसे महानगरों में किसी को दिक्कत न हो मगर ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही 'सरकारी बनाम निजी'. निजी सुविधा है उसे बंद किया हुआ है। वहीं सरकारी हॉस्पिटल का हाल तो आप जानते है, 'नो वर्क नो मिस्टेक' यदि आप काम करेंगे तो गलती करेंगे, तो आगे उनसे पूछा जाएगा कि गलती कैसे हुई। मुझे लगता है कि पुरे समय में जो सरकारी हॉस्पिटल को कोरोना के लिए ही रखा गया था उसे कैंसर के लिए भी खोल देना चाहिए क्योंकि एक आम आदमी कैंसर जैसे बीमारी के इलाज के लिए सरकारी हॉस्पिटल से ही एक मात्र उम्मीद रखता है। साथ ही दिल्ली शहर के AIIMS में एक NCI बना है मगर वह काफी नहीं है। इसी तरह राज्य के सभी हॉस्पिटल में कैंसर की व्यवस्था हो। और यह एक बहुत बड़ा अंतर है जो असमानता को बढ़ावा दे रहा है, अंतर धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है जो कि चिंता का विषय भी है। और इस कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद जो भी मरीज आ रहे हैं वह सब लाइलाज हैं। जो हुआ सो हुआ क्योंकि कोरोना के विषय में किसी को नहीं पता था मगर आने वाले समय में समन्वय बनाना जरूरी है कि कोरोना का तो इलाज हो साथ कैंसर के मरीजों को भी सही इलाज मिल पाए।

शान्तनू: कैंसर के प्रति देश भर में काफी भ्रम भी फैलाया जाता है, जैसे 1 सिगरेट से ज्यादा हानि नहीं होती है, या यह बीमारी बच्चों को नहीं होता है, तो उनके लिए आप क्या कहेंगे?

डॉ. अभिषेक: भ्रम की स्थिति के लिए सोशल मीडिया एक हथियार की तरह है। इसे आप सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ढंग से देख सकते हैं क्योंकि कुछ सेकंड में एक जानकारी इसके जरिए करोड़ों लोगों तक पहुंच सकती है। हम अपनी जिंदगी को सुविधा अनुसार जीते हैं, यदि हम धूम्रपान करते हैं तो हमे वह रिपोर्ट बड़ी अच्छी लगेगी, और उसी को मानेंगे। बिना यह कोशिश किए कि क्या यह सही है या गलत है? चिकित्सक होने के नाते मैंने हर समय यह कोशिश की है कि लोगों तक सही जानकारी पहुंचाऊं। जो शब्दों का चयन है वह लोगों को लुभाए, ऐसा मैंने कभी कोशिश नहीं की क्योंकि साइंस एक दायरे में रहता है। और इस तरह की जानकारियां लोगों को भ्रमित करने के लिए होते है और सभी स्तरों पर होती है। अब भारत में जितने बाबा हैं वह कैंसर का इलाज करते हैं, वह कितना हद तक उचित है? देश में इसके खिलाफ कोई सख्त नियम नहीं है, यदि मैंने कुछ गलत किया हो तो मैं जेल भेजा जा सकता हूँ, क्योंकि मैं एक रजिस्टर्ड डॉक्टर हूँ। एक, जिसको कुछ भी नहीं आता है और 15 मिनट का टीवी पर वीडियो बना दे कि "आपको चिंता करने जरूरत नहीं है आप ये-ये करो, आपका कैंसर ठीक हो जाएगा", उसके खिलाफ कोई करवाई नहीं होगी। और यह जो गलत सूचनाएं और भ्रमित सूचनाएं हैं वह मुझे लगता है कि भारत में लाखों मौतों का कारण है। क्योंकि एक आदमी सुविधा देखता हैं और अपने आस पास वालों को उसपर विश्वास करते देखाता है, तो उसको भी उस ढोंग पर विश्वास हो जाता है क्योंकि उसको लगता है कि यह आसान तरीका है इन चीजों से बचने का। जबकि, मेडिकल साइंस इसकी अनुमति नहीं देती है। अभी कुछ दिन पहले एक कैंसर के ऊपर ही आर्टिकल पढ़ा था, क्या बकवास लिखा गया था उसमे, और इसे मैंने बताया कि वह गलत जानकारी देकर जुर्म कर रहे हैं। कई लोग इम्यूनोथेरेपी बेचते हैं जिनको खुद उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं। यदि कैंसर का इलाज करना इतना आसान है, तो जो कर रहा है वह नोबेल पुरुस्कार का हकदार है। करीब हर साल दुनिया में एक करोड़ लोग केवल कैंसर से मर रहे हैं, यदि कोई यह दावा करता है कि वह इस बीमारी का इलाज कर सकता है तो वह अपराध कर रहा है। यदि आप मदद नहीं कर सकते तो भ्रम तो ना फैलाएं। एक और बात बता दूँ कि असली चिकित्सा देने वाले कभी दावा नहीं थोपते यह सब तो वही करते हैं जिनके पास कोई पुख्ता आधारशिला ही नहीं है। लेकिन जो भोले भाले लोग हैं, वह बाबागिरी में फस जाते हैं और खासकर कैंसर में बाबागिरी नहीं मदद करेगी किसी को।

शान्तनू: कुछ ऐसे लक्षण भी हैं जिसे गूगल सीधा कैंसर जोड़ देता है, और लोग जल्दी घबरा जाते हैं, उनके लिए आपकी क्या राय है?

डॉ. अभिषेक: गूगल एक दौतिक या डिप्लोमेटिक सर्च इंजन है, आप यदि किसी आतंकवादी की अच्छाई भी उससे पूछोगे तो वह उसपर भी कई आर्टिकल आपके सामने रख देगा। तो गूगल वह माध्यम नहीं है जिसपर आप पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि उसपर जो डाला जाता है वह सही सूत्रों द्वारा नहीं होता है। यह बात सही है कि कई ऐसे लक्षण हैं जो कैंसर से मेल खाते हैं, जैसे आप फेफड़ों को देख लीजिए। फेफड़े शरीर का एक अंग है, वहां पर जो क्रियाएं होंगी वह ऐसा नहीं है कि वह विशेष रूप से फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा हुआ हो, कोई भी फेफड़ों से सम्बंधित रोग हो तो उसमे खांसी होगा, उसमे बलगम आ सकता है, खून आ सकता है। सर्विकल कैंसर जो गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर है वहां खून आ सकता है, वहां बहाव आ सकता है उसका कारण कोई इन्फेक्शन भी हो सकता है। इसका सबसे सही तरीका यह है कि आप अपने डॉक्टर के पास जाएं और उससे सुझाव लें। वह अपने स्तर पर आपको सभी जानकारी दे देगा कि आपको कैंसर है या नहीं या जाँच की जरूरत है या नहीं। अब किसी 20 साल वाले को गांठ है तो मैं कहूंगा कि उसे फैब्रोडीनोमा है, लेकिन किसी 60 साल वाले व्यक्ति गांठ या सूजन होगी तो मैं कहूंगा कि यह कैंसर है। किसी भी बीमारी को जानने के लिए सही प्रशिक्षण हो वह बहुत जरूरी है। तो जब कभी भी आपको कोई भी लक्षण दिखाई दे जो कैंसर से मेल खाते हैं तो आप सही डॉक्टर को जरूर दिखाएं, जिससे कैंसर या अन्य बीमारी का पता लग सके।

शान्तनू: अंत में हमारे पाठकों कुछ कहना चाहते हैं?

डॉ.अभिषेक: यही कि आप सभी स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें। और कभी भी आपको कैंसर से सम्बंधित सहायता या जानकारी चाहिए हो तो वह मुझे ईमेल( doc.abhishankar@gmail.com) कर सकते हैं। मुझे आपकी मदद करने में बहुत खुशी होगी।

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