By: विवेक त्रिपाठी
गोरक्षपीठ सिर्फ उपासना का स्थल नहीं है, बल्कि जाति, पंथ मजहब के विभेद से परे ऐसा बड़ा केन्द्र हैं, जहां सांस्कृतिक एकता की नजीर देखने को मिलती है। बात चाहे पीठ के आंतरिक प्रबंधन की हो, या फिर जन सरोकारों की। यहां कभी भी जाति या धर्म की दीवार आड़े नहीं आती है।
पीठ की सामाजिक समरसता की एक जीवंत तस्वीर प्रतिवर्ष विजयादशमी के दिन पूरी दुनिया के सामने होती है। इस गोरखनाथ मंदिर से निकलने वाली शोभायात्रा में मुस्लिम समाज द्वारा शोभायात्रा की अगुवाई कर रहे गोरक्षपीठाधीश्वर का आत्मीय अभिनंदन किया जाता है।
योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के साथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। इसकी तीन पीढ़ियों ने लगातार समाज को जोड़ने और जाति, धर्म से परे असहाय को संरक्षण देने का काम किया है। योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के बारे में कभी वीर सावरकर ने कहा था कि यदि महंत दिग्विजयनाथ जी की तरह अन्य धमार्चार्य भी देश, जाति व धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुन: जगद्गुरू के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है। अपने समय में दिग्विजयनाथ उन सभी रूढ़ियों के विरोधी थे, जो धर्म के नाम पर समाज को तोड़ने का कार्य कर रही थीं। रही बात योगीजी के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की तो उनकी तो पूरी उम्र ही समाज को जोड़ने में गुजर गई। सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए। उनके शिष्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने गुरु की ही परंपरा का अनुसरण करते हैं। न जाने कितनी बार सार्वजनिक रूप से उन्होंने कहा कि वे किसी जाति, पंथ या मजहब के विरोधी नहीं हैं। बल्कि उनका विरोध उन लोगों से है जो राष्ट्र के विरोधी हैं।
कई दशकों से मंदिर को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय बताते हैं कि एक दशक पहले बात है। योगी तब गोरखपुर के सांसद थे और पीठ के उत्तराधिकारी। गोरखपुर के सबसे व्यस्ततम बाजार गोलघर में बदमाशों ने इस्माईल टेलर्स की दुकान पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर पूरे शहर को दहला दिया था। योगी उस समय किसी कार्यक्रम में थे, जैसे ही उन्हें सूचना मिली वह गोलघर पहुंच गए और खराब कानून व्यवस्था को लेकर अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए। लोगों को हैरानी हो रही थी कि हिन्दुत्व का इतना बड़ा ध्वजवाहक एक मुस्लिम व्यापारी के समर्थन में सड़क पर कैसे बैठ सकता है। कुछ लोगों ने योगी से पूछा भी, जिस पर योगी ने कहा कि व्यापारी मेरे लिए सिर्फ व्यापारी है और मैं गोरखपुर को 1980 के उस बदनाम दौर की ओर हरगिज नहीं जाने दूंगा।
गोरक्षपीठ की शोभा यात्रा [wikimedia commons]
उन्होंने बताया कि फरवरी 2014 के आम चुनाव में गोरखपुर में नरेंद्र मोदी की रैली होनी थी। फर्टिलाइजर का मैदान इस बड़ी रैली के अनुकूल था और सुरक्षित भी। योगी के प्रयास के बावजूद राजनीतिक वजहों से रैली के लिए वह मैदान नहीं मिल सका। उसी से सटे मानबेला में गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया था। समय कम था और सामने दो बड़ी चुनौतियां। पहली उस जमीन के आसपास के गांव अल्पसंख्यक बहुल आबादी के थे, दूसरा उस जमीन को रैली के लिए तैयार करना था। गांव वालों को जब योगी के इस संशय के बारे में पता चला तो वह खुद उनसे मिलने आए। भरोसा दिलाया कि वह रैली की सफलता में न केवल हर संभव मदद करेंगे बल्कि बढ़-चढ़कर भाग भी लेंगे। यही हुआ भी और यह घटना उस समय अखबारों की सुर्खियां बनी।
मकर संक्रांति से शुरू होकर माह भर चलने वाले खिचड़ी मेले में तमाम दुकानें अल्पसंख्यकों की ही होती हैं। गोरखनाथ मंदिर से जुड़े प्रकल्पों में भी जाति, पंथ और मजहब का कोई भेदभाव नहीं है। हिंदू धर्म की सभी जातियों के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी अहम भूमिका में हैं। गोरखनाथ मंदिर में निर्माण और सम्पत्ति की देखरेख करने वाले दो जिम्मेदार अल्पसंख्यक समुदाय के ही हैं। (आईएएनएस, MS)