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भारत की सबसे पहली स्वतंत्रता सेनानी: रानी अबक्का देवी!

Shantanoo Mishra

भारत एक ऐसा देश है जहाँ का हर एक छोर नई गाथा सुनाता है। यह वीर-भूमि भारत सदा से वीरों के गाथाओं को समेटती आ रही है। यहाँ हर पग पर किसी वीर ने अपने बचपन से लेकर जवानी तक सफर तय किया होगा, जिन पग पर आज हम आधुनिकरण के ढोंग की लकीर खींच उन्हें भुलाने की भरसक प्रयास कर रहे हैं। भारत देश न कभी दुर्बल था, है, और रहेगा। किन्तु धर्मनिरपेक्षता को अपनी ढाल बनाकर देश के ही इतिहासकारों ने इस देश के स्वर्णिम इतिहास को दबा दिया है और उन्हें युवाओं तक पहुँचने नही दिया।

आज उन्ही अतीत के दीवारों में से फिर एक वीर गाथा लेकर आया हूँ, जिसे पढ़कर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि हम सबसे कितना कुछ छुपाया गया है। यह गाथा है भारत की सबसे पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी की जिन्होंने भारत में आए पुर्तगलियों के दांतों तले चने चबवा दिए थे। यह गाथा है रानी अबक्का देवी(Abbakka Chowta) की।

रानी अबक्का देवी(Abbakka Chowta) की रियासत आज के कर्नाटक क्षेत्र में फैला हुआ था। उनकी राजधानी थी उल्लाल(Ullal) जो कि वर्तमान में मंगलोर(Mangalore) के नाम से जाना जाता है। यह उस समय की बात है जब पुर्तगाली(Portuguese) गोवा(GOA) पर अधिग्रहण कर वहां के हिन्दू निवासियों पर अत्याचार कर रहे थे। और अब वह उल्लाल को अपने कब्ज़े में लेना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने पहला हमला मंगलोर(Mangalore) के तट पर किया और मंगलोर बंदरगाह को नष्ट कर दिया।

किन्तु पुर्तगालियों(Portuguese) को यह नहीं पता था कि वह किस शेरनी के मुँह में हाथ डाल रहे हैं। युद्धकौशल और रणनीति रचना में निपुण रानी अबक्का((Abbakka Chowta)) केवल पुर्तगालियों द्वारा आक्रमण के फ़िराक में थीं, क्योंकि गोवा में पुर्तगालियों(Portuguese) द्वारा किए बर्बरता को वह भूली नहीं थी। साथ ही रानी अबक्का के सेना में वह वीर तैनात थे जो अपने देश और जनता की सुरक्षा के लिए किसी भी खतरे को बे-हिचक मोल ले सकते थे। और इस युद्ध में उल्लाल का साथ दे रहे थे पड़ोसी राज्य के बंग राजवंश और अन्य स्थानीय शासक।

उल्लाली तलवारों ने पुर्तगालियों को झुकने पर मजबूर कर दिया था।(Unsplash)

पुर्तगालियों(Portuguese) ने इधर हमला किया और उधर भूखे शेरों की भांति उल्लाल(Ullal) के वीर, पुर्तगालियों पर टूट पड़े और उन्हें पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर कर दिया। यह एक बार नहीं 6 बार हुआ। पुर्तगालियों(Portuguese) ने 1525 से लेकर 1569 तक छह बार उल्लाल पर हमला किया मगर कभी सफल नहीं पाए। जान बचाकर भागने के सिवा उनके पास और कोई चारा न बचा। हालांकि, इस बीच वर्ष 1568 में पुर्तगाली सेनापति जोआओ पेइकोतो के नेतृत्व में पुर्तगाली फ़ौज उल्लाल पर कब्ज़ा करने में सफल हो गई थी। जिसके पश्चात रानी अबक्का(Abbakka Chowta) ने एक मस्जिद में शरण ली थी।

पुर्तगाली आक्रमण के बाद उसी रात्रि को रानी ने अपने 200 विश्वसनीय और युद्धकौशल में पारंगत वीरों को एकत्र किया और पुनः उल्लाल को अपने अधीन ले लिया। यह ही नहीं पुर्तगाली एडमिरल मस्कारेन्हस को उसके अंजाम तक भी पहुंचा दिया गया। इस अचंभित कर देने वाले विजय के पश्चात रानी अबक्का(Abbakka Chowta) के शौर्य के किस्से दूर-दूर तक फैलने लगे। उल्लाल के वीरों के शौर्य का लोहा हर कहीं माना जाने लगा।

किन्तु छल के आगे न कभी किसी वीर की बुद्धिमता आगे बढ़ी है और न ही शौर्य का इस्तमाल हो पाया है। वर्ष 1569 में पुर्तगलियों ने फिर उल्लाल पर आक्रमण किया। इस बार रानी अबक्का का साथ दे रहे थे अहमद नगर और ज़मोरिन के सुल्तान। रानी अबक्का की सेना वह युद्ध जीतने के बिलकुल करीब थी किन्तु रानी के ही पति ने धोखा दिया और पुर्तगालियों से हाथ मिलाकर छल से रानी को कैद कर लिया। बंदीगृह से भी रानी ने आंदोलन को जारी रखा और अंत में वीरगति को हँसते-हँसते गले लगा लिया। यह वीर गाथा थी रानी अबक्का देवी की जो अंतिम साँस तक स्वतंत्रता के लिए लड़ती रहीं।

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