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जटोली शिव मंदिर: जहां के पथरों को थपथपाने से आती है “डमरू की आवाज।”

Swati Mishra

भारत में अनेकों प्राचीन मंदिर हैं और इन मंदिरों से जुड़े कई रहस्यमयी तथ्य भी मौजूद हैं। देश – विदेश में करोड़ों ऐसे मंदिर हैं, जिन्हें लोग चमत्कारी और रहस्यमयी मानते हैं। उन मंदिरों से जुड़ा इतिहास और कहानियां लोगों को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। आज हम ऐसे ही एक मंदिर की बात करेंगे जिसे रहस्यमयी या चमत्कारी कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। तो आइए जानते हैं वह रहस्यमयी मंदिर आखिर कौन सा है?

भारत, हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) जिसे देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है, यहां के सोलन में भगवान शिव को समर्पित जटोली शिव मंदिर (Jatoli Shiv Temple) स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद पथरों को थपथपाने से भगवान शिव के डमरू की आवाज आती है। मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव इस स्थान पर आए थे। स्थानीय लोग मानते हैं कि एक बार भगवान शिव अपनी यात्रा के दौरान इस स्थान पर रुके थे। यहीं पर उन्होंने विश्राम किया था।

कहा जाता है कि कई बरस पहले सोलन के लोगों को पानी की कमी की समस्या से जूझना पड़ रहा था। पानी की भीषण कमी को देखते हुए और लोगों को इस संकट से उबारने के लिए एक बार स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और अपने त्रिशूल से प्रहार कर जमीन से पानी बाहर निकाला। और तब से लेकर आज तक जटोली के लोगों को पानी की कमी का सामना कभी नहीं करना पड़ा।

भगवान शिव को समर्पित जटोली शिव मंदिर का मुख्य द्वार | (Wikimeda Commons)

सन 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने इस मंदिर के निर्माण की आधार शिला रखी थी। हालांकि 1983 में स्वामी कृष्णानंद ने समाधि प्राप्त की, लेकिन उनके बाद भी मंदिर का निर्माण कार्य कभी नहीं रुका। 1974 में ही मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया था। आपको बता दें कि इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में करीब 39 साल का समय लगा था। इस मंदिर की एक और सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण में देश – विदेश के कई श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य के अनूठे मंदिर के लिए अपना सहयोग दिया और उन्हीं दान के पैसों से ही मंदिर का निर्माण हुआ। इसी वजह से मंदिर के निर्माण में तीन दशक से ज्यादा का समय लगा।

जटोली शिव मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती सहित हर तरह के देवी – देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में स्फटिक मणि से निर्मित शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद परमहंस की एक गुफा भी है। इस गुफा में भी एक शिवलिंग स्थापित है। दक्षिण द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की उचाईं 111 फुट है। लेकिन हाल ही में मंदिर ने 11 फीट का एक स्वर्ण कलश चढ़ाया गया है जिसके चलते मंदिर की कुल ऊंचाई 122 फुट हो गई है।

अत्यंत प्राचीन मंदिर होने के बावजूद इस मंदिर का अस्तित्व और उसका पौराणिक महत्व अब भी बना हुआ है। भारत के मंदिर ही उसकी धरोहर हैं और उससे जुड़ी सभी कहानियां, रहस्म्यी तथ्य सभी यथार्थ हैं।

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