स्वास्थ्य रिपोर्टिंग में सनसनी फैलाने की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर पत्रकारिता जगत के लोग चिंतित हैं। भोपाल में माखनलाल चतुवेर्दी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय एवं यूनिसेफ द्वारा आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने पत्रकारों से इस गंभीर विषय पर संतुलित रिपोर्टिंग का आह्वान किया है। स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता लाने के मकसद से फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत जनस्वास्थ्य और तथ्यपरक पत्रकारिता पर आधारित कार्यशाला विष्वविद्यालय और यूनिसेफ ने आयोजन किया। इस मौके पर कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा स्वास्थ्य पत्रकारिता करते समय अनावश्यक सनसनी नहीं फैलानी चाहिए। पत्रकार को इस गंभीर विषय पर संतुलित रिपोटिर्ंग करनी चाहिए।
कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि स्वास्थ्य संचार बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, विश्वविद्यालय के पत्रकारिता पाठ्यक्रम में इस विषय को जल्द ही शामिल करने के प्रयास किए जाएंगे। स्वास्थ्य पत्रकारिता में विषय विशेषज्ञता का होना बहुत जरूरी है। यह सीधे-सीधे जन स्वास्थ्य एवं जन सरोकार से जुड़ा विषय है, इसलिए इसमें लापरवाही नहीं बरती जा सकती। स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता की जिम्मेदारी सिर्फ पत्रकार की ही नहीं बल्कि सरकार एवं एनजीओ की भी है। इसीलिए सभी को अपनी जिम्मेदारी को भलीभांति निभाना चाहिए।
साक्ष्य आधारित पत्रकारिता आज के समय में अहम।(Pixabay)
यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने कहा कि साक्ष्य आधारित पत्रकारिता आज के समय में बहुत आवश्यक है। कोविड-19 में बिना डाटा के बहुत रिपोटिर्ंग हुई है और बिना साक्ष्य के तथ्य सोशल मीडिया में भी पहुंचे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार संजय देव ने कहा कि स्वास्थ्य पत्रकारिता करते समय पत्रकार को पूर्वाग्रहों से बाहर निकलकर पत्रकारिता करनी चाहिए। चूंकि स्वास्थ्य पत्रकारिता मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा विषय है, इसलिए इसे समझने की जरूरत है। पत्रकारों को सजग रहते हुए रिपोटिर्ंग करनी चाहिए।
कार्यशाला में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार संजय अभिज्ञान ने कहा कि पत्रकारिता का उद्देश्य सच के लिए एवं जीवन के लिए लिखना है यदि ऐसा नहीं किया गया तो लोग विष को अमृत समझ लेंगे। इसलिए स्वास्थ्य पत्रकारिता करते समय पाठकों को संशय में नहीं रहने देना चाहिए।(आईएएनएस)