अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर के संबंध में अस्पष्ट और अवास्तविक जानकारी को आधार बनाकर वर्षो से भारत को घेरने की रणनीति पर पाकिस्तान काम करता रहा है, मगर उसे हर बार मुंह की खानी पड़ती है और उसके मंसूबे धरे के धरे रह जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में सेना की मौजूदगी के अस्पष्ट और अवास्तविक आंकड़ों और दैनिक आधार पर होने वाली कथित हिंसा की प्रकृति का जिक्र करते हुए जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की कथित खराब स्थिति को पेश करने की कोशिश करता रहा है पाकिस्तान । हालांकि पाकिस्तान के ऐसे लगातार प्रयासों ने न केवल वर्षों से नीरस और फालतू आख्यान का निर्माण किया है, बल्कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा संपर्क किए जा रहे लोगों को परेशान भी किया है।
पाकिस्तानी नैरेटिव को एक 'कोलाहल' या 'फालतू के शोर' जिसे अंग्रेजी में 'काकोफोनी' कहा जाता है यूरोपीय संघ (ईयू) हलकों में, के रूप में जाना जाता है। इस शब्दजाल का उपयोग यूरोपीय संघ के सदस्यों के बीच आम हो गया है, जो कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान द्वारा किए गए दबाव को नजरअंदाज करते हैं। पश्चिमी देश तेजी से यह मानने लगे हैं कि कश्मीर मुद्दे में उनकी कोई भूमिका नहीं है और इस मामले को दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए सुलझाना होगा।
जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर विभिन्न देशों में अपने समकक्षों को नियमित आधार पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा उच्चतम स्तर पर पत्र भेजने की पारंपरिक प्रथा ने केवल इस मुद्दे को बेमानी और नीरस बना दिया है। इस प्रकार पाकिस्तानी सरकार द्वारा बनाए जा रहे दबाव का उलटा असर हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की कथित खराब स्थिति को पेश करने की कोशिश करता रहा है पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की कथित खराब स्थिति को पेश करने की कोशिश करता रहा है पाकिस्तान
जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की कथित खराब स्थिति को पेश करने की कोशिश करता रहा है पाकिस्तान (wikimedia commons)
इसके अलावा, इस तरह के प्रयासों से यह अहसास हुआ है कि यह पाकिस्तान द्वारा सामना की जाने वाली आंतरिक समस्याओं से वैश्विक ध्यान हटाने के लिए मोड़ने की रणनीति का हिस्सा है। प्रवृत्ति का सावधानीपूर्वक विश्लेषण इंगित करता है कि समय के साथ, कश्मीर मुद्दे ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय/संस्थाओं के साथ अपनी पकड़ खो दी है।
यूएनएचआरसी, अपने नेतृत्व स्तर पर पाकिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में गंभीर रूप से चिंतित प्रतीत होता है, जिसमें निरंतर नजरबंदी के रूप में आम लोगों के उत्पीड़न, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अधिकारों से वंचित करना, सार्वजनिक सभा पर प्रतिबंध, पत्रकारों द्वारा सामना किए जाने वाले दबाव आदि शामिल हैं। इसके साथ ही सामान्य अपराध से निपटने के गैरकानूनी साधनों के कथित उपयोग भी जगजाहिर हैं।कुछ मामलों में जहां पाकिस्तानी पक्ष ने कश्मीर का मुद्दा उठाया है, वहीं संबंधित विदेशी एजेंसी ने पाकिस्तानी पक्ष से मानवाधिकार के मोर्चे पर पहले अपना घर साफ करने को कहा है।
यूएनएचआरसी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की स्थिति के बारे में भी चिंतित है, जो मानवाधिकारों की स्थिति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में दयनीय बनी हुई है।
पिछले दो महीनों में, पाकिस्तान में मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन सामने आया है और यूएनएचआरसी को लगता है कि अल्पसंख्यकों की आवाज को दबाने के प्रयासों सहित विभिन्न मोचरें पर घोर मानवाधिकार उल्लंघन पर पाकिस्तानी सरकार द्वारा आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है।
जबरन किसी को गायब कर देना और यातना देने के पाकिस्तानी इतिहास को देखते हुए इसकी सख्त जरूरत है। इससे पहले पाकिस्तान में मौजूद जमीनी स्थिति का गहन मूल्यांकन करना होगा।
पाकिस्तान को मानवाधिकारों की भावना को बनाए रखने में अफगानिस्तान की सहायता करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, यह यूएनएचआरसी को भी लगता है और खासकर महिलाओं और लड़कियों के मामले में यह जरूरी हो जाता है। यूएनएचआरसी को लगता है कि अफगानिस्तान में यूएनएचआरसी की कार्यात्मक आवश्यकताओं को भी पाकिस्तान द्वारा सहायता और सुविधा प्रदान की जानी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान की अफगानिस्तान में सरकार पर महत्वपूर्ण पकड़ है।
यूरोपीय राष्ट्रों और पाकिस्तान में काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच यह भी अहसास है कि पाकिस्तान पर पहले अपने घर में हो रही गड़बड़ी को दूर करने के लिए दबाव डाला जाए।(आईएएनएस-PS)