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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुए लोग ​एक तिहाई ग्रीन हाउस उर्त्सजन के लिए जिम्मेदार ​

NewsGram Desk

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुये लोग यानी जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है, उनका रहन-सहन इस प्रकार का हो गया है कि एक तिहाई World Green House Emissions लिए जिम्मेदार बन गये हैं। जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्मे लोग, जिन्हें 'बेबी बूमर' भी कहा जाता है, वे अपने तौर-तरीकों के कारण कार्बन फुटप्रिंट छोड़ने में सबसे आगे हैं।

60 साल से अधिक उम्र के लोग घरों , ऊर्जा और खाने के मद में अधिक खर्च करते हैं, जिसके कारण ग्रीनहाउस गैस का उर्त्सजन भी बढ़ जाता है। ग्रीनहाउस गैस पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये हानिकारक है। साल 2005 में 60 साल से अधिक आयु के लोग एक चौथाई ग्रीन हाउस गैस उर्त्सजन के लिये जिम्मेदार थे लेकिन 2015 तक यह बढ़कर 33 प्रतिशत के करीब हो गया।

वर्ष 2005-2015 के दौरान 30 साल से कम आयुवर्ग के लोगों ने अपने वार्षिक उर्त्सजन में 3.7 टन , 30 से 44 आयुवर्ग के लोगों ने 2.7 टन और 45 से 59 साल के आयुवर्ग के लोगों ने 2.2 टन की कमी लायी लेकिन 60 साल से अधिक आयुवर्ग के लोगों के उर्त्सजन में मात्र 1.5 टन की कमी देखी गयी। नॉर्वे यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एजर हर्टविच ने कहा कि पहले के बुजुर्ग कंजूस हुआ करते थे। जिस पीढ़ी ने द्वितीय विश्व युद्ध देखा था, वह हर संसाधन सोच समझकर इस्तेमाल करती थी। ये नये बुजुर्ग बिल्कुल अलग हैं।

उन्होंने कहा," बेबी बूमर पीढ़ी ही अब नये बुजुर्ग हैं। उनके उपभोग का तरीका 1928 से 1945 के बीच जन्मी पीढ़ी से अलग है। आज के बुजुर्ग घरों, ऊर्जा और खाने पर अधिक खर्च करते हैं।" यूनिवर्सिटी की शोध टीम ने 2005, 2010 और 2015 में आयुवर्ग के आधार पर ग्रीनहाउस गैस उर्त्सजन का सर्वेक्षण किया। उन्होंने इसमें करीब 32 देशों के लोगों को शामिल किया।

शोध से पता चलता है कि नॉर्वे, ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बुजुर्ग कार्बन फुटप्रिंट छोड़ने के मामले सबसे आगे हैं। शोध में इस बात पर चिंता व्यक्त की गयी है कि जब दुनिया की अधिकतर आबादी बुजुर्ग है तो ऐसे में उनका कार्बन फुटप्रिंट अधिक होना चिंता की बात है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि बुजुर्ग लोगों का कार्बन फुटप्रिंट अधिकतर स्थानीय होता है लेकिन युवा वर्ग चूंकि अधिकतर आयातित वस्तुओं का उपभोग करते हैं, इसी कारण उनका कार्बन फुटप्रिंट दूसरे देशों में दिखायी देता है।

शोधकर्ता हेरन झेंग का कहना है कि विकसित देशों में बुजुर्गो ने काफी संपत्ति अर्जित कर ली है और उनमें से अधिकतर की संपत्ति का मूल्य बहुत बढ़ गया है। इसी कारण वे अपनी अधिक खपत को जारी रख पाते हैं। इस आयुवर्ग के अधिकतर लोग अकेले रहते हैं और इनकी ऊर्जा खपत बहुत अधिक होती है। ऐसा सभी देशों में नहीं होता है लेकिन कुल मिलाकर ऐसा ही प्रचलन देखने को मिलता है।

–आईएएनएस{NM}

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