भारत के इतिहास को लिबरल और वामपंथी इतिहासकारों ने समय-समय पर तोड़-मरोड़ कर सभी के समक्ष रखा है। चाहे वह मुगलों को हिन्दू मंदिरों का रक्षक बताने में हो या टीपू सुल्तान जैसे क्रूर शासक को महान बताने में, इन सभी ने हर सम्भव प्रयास किया कि देश की जनता और नवयुवकों तक गलत और आधा-अधूरा इतिहास पहुंचे। और इन सब मनगढ़ंत इतिहास के पीछे इनका एक ही तर्क सामने आता है, यह की देश में सौहार्द की स्थिति बनी रहे। किन्तु इस तर्क का न तो सर है और न ही पैर, बस इनके द्वारा एक धर्म विशेष को खुश करने के लिए यह हतकंडे अपनाए गए और कुछ वर्षों तक यह सफल भी रहे। लेकिन अब जब देश के युवा और राष्ट्रवादी नागरिक जागरूक हो रहे हैं, तब सभी तथ्यों को कुरेद-कुरेद कर निकाला जा रहा है। इसका प्रयास पहले भी किया गया था, किन्तु देश में कुछ ऐसे तत्व थे जिन्होंने इन इतिहास को जनता तक पहुंचने नहीं दिया।
आज इतिहास से जुड़ा एक ऐसा ही सत्य आप सबके सामने लाया जाएगा जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। किन्तु एक सवाल यह कि क्यों जोधा अकबर के झूठे प्रेम संबंध को दिखाकर मुगलों का बखान किया जाता है? जबकि ऐसे कई राजपूती शासक थे जिनका विवाह मुस्लिम महिलाओं के साथ हुआ था, लेकिन न तो उनकी चर्चा हुई है और न ही किसी उदारवादी इतिहासकार ने इस पर लिखने या कहने की चेष्टा की है। आज हम आपको कुछ ऐसे राजपूती राजाओं से परिचय कराएंगे, जिनकी पत्नी या तो मुगल थीं या उनके प्रेम में कायल थीं।
जिन मुगलों के अत्याचार को देश ने सहा उन्हें महान कहें?(काल्पनिक चित्र, Unsplash)
अब सवाल यह है कि क्यों जोधा अकबर की जोड़ी को इतिहासकारों ने प्रेम की तस्वीर या 'खूबसूरत' प्रेमी जैसे शब्दों से सम्बोधित किया। साथ ही इन दोनों के प्रेम को कितनी चतुराई से फिल्म में दिखाया गया यह हम सबने देखा है। उसमें यह बताने का प्रयास हुआ कि मुगलों ने ही भारत में शांति और सौहार्द को बरकरार रखा। जबकि 'वास्तविक' इतिहास कुछ और ही कहता है। इतिहास को देखें तो जो लिब्रलधारी जोधा अकबर के नाम पर इतराते हैं, उन्ही जोधा बाई का नाम अकबर ने मरियम-उज़-ज़मानी रखा था। अब आप कहेंगे कि नाम में क्या रखा है, तो उसका भी जवाब सुनिए! कई इतिहासकार इस बात से साफ मुकर जाते हैं कि जोधा बाई नामक कोई राजपूती महिला अकबर की पत्नी थी। जब इतिहासकारों के मन में इस बात का संशय है कि जोधा बाई का कोई अस्तित्व था भी या नहीं, तब इनकी प्रेम कहानी को किस आधार पर लिब्रलधारियों ने अपने एजेंडा का अभिन्न अंग बना लिया?
(उक्त दिए गए तथ्य सर्व समाज की राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के सितंम्बर मास 2019 में छपे आलेख से लिए गए हैं।)