भारत एक प्रबुद्ध देश है, जहाँ पर संस्कृति भी विचारों से जन्म लेती है। 'अतिथि देवो भव' या 'वसुधैव कुटुंबकम' यह भारतीय संस्कृति का लम्बे समय हिस्सा रही हैं, यह विचार संस्कृति के रूप में पहचाने जाने से पहले हर एक भारतीय के विचारों में उपस्थित थीं और हमें आज की तरह इन संस्कृतियों का उदाहरण देकर भारत की महानता बताने की आवश्यकता नही थी। लेकिन आज के समय में इन्ही विचारों में मजहबी कट्टरता के जहर को घोला जा रहा है, समय-समय पर अलगाववाद को मोहरा बना कर इस्लामिक आतंकवाद, देश में हिंसा और अराजकता को जन्म दे रहा है। और समाज पर इस आघात का मोल आम नागरिक चुका रहा है। किन्तु अब सवाल यह है कि,
इस सवाल पर चर्चा से पहले आपको यह बताना आवश्यक है कि हिन्दुओं के प्रति घृणा कई समय से फैलाई जा रही है, जिनमें सबसे आगे रहते हैं औवेसी भाई, आजम खान, इमाम बुखारी, अमानतुल्ला खान और ऐसे कई राजनेता जिनके कई जगह आपको भड़काऊ भाषण सुनाई दे जाएंगे, और उनका सीधा हमला हिन्दुओं के लिए होता है और उनके प्रति घृणा फैलाना होता है। आपको याद होगा कि यह वही लोग हैं जिन्होंने 'गाजियाबाद वाले चचा' की घटना को असहिष्णुता का चोगा पहनाया था और अब उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण पर पकड़े गए दो आरोपियों पर इन सभी के मुँह पर ताला, हथकड़ी सब पड़ गया है । साथ ही वह लोग जो लिबरलों का हितैषी बता-बता कर हिन्दुओं को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं उनके गले से भी हाय-तौबा का लड्डू निगला नहीं जा रहा है।
बहरहाल, अब बात करते हैं सवाल पर। प्रश्न यह था कि क्या इस्लामिक कट्टरवाद देश में जीत सकता है? इस प्रश्न का उत्तर इतिहास स्वयं दे रहा है, और आगे भी देता रहेगा। भारत के ही कई हिन्दू एवं राजपूत शासकों ने इस्लामिक आक्रमणकर्ताओं को समय-समय पर हराया है और उन्हें उनकी औकात से परिचित कराया है। यहाँ तक कि इस्लाम को भारत में पैर जमाने के लिए 500 साल का समय लग गया था, जबकि कहा यह जाता है कि कई अन्य देशों में इस्लामिक आक्रमणकर्ताओं ने बहुत जल्दी कब्जा कर लिया था। भारत में किसी भी मुगल या अन्य मुस्लिम शासक का शासन लंबे समय तक नहीं रहा था। इसके पीछे कारण है 'ताकत का झूठा गुमान' और यही अभिमान मुगलों के पतन का कारण भी रहा है।
अब आप और हम अतीत से निकलकर वर्तमान को देखने की कोशिश करते हैं, और मैं आपसे यह सवाल करता हूँ कि, क्या किसी इस्लामिक देश ने उन्नती की है? अफगानिस्तान में कई वर्ष पूर्व जब इस्लामिक आक्रमणकारी आए तो उन्होंने हजारों वर्ष पुराने बौद्ध एवं हिन्दू संस्कृति को नष्ट कर दिया था। वहां आज भी उन संस्कृति के अवशेष उपस्थित हैं, साथ ही अफगानिस्तान की स्थिति आज के आधुनिक युग में भी कुछ खास नहीं बदली है। अफगानिस्तान के साथ भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान, जिसका बटवारा ही धर्म के नाम पर हुआ था, वह आज भी खुद को बदनामी से नहीं बचा पाता है, 'आतंकिस्तान', 'आतंक पर पलने वाला' न जाने किन-किन नामों से जाना जाता है। भारत को भी सोने की चिड़िया से बदलकर उसे लूटने वाले कौन थे? इन सभी मुद्दों पर विचार करना आवश्यक है।
पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान आतंकियों की वजह से न ही आगे बढ़ रहा है और न वहां के स्थिति में सुधर आ रहा है।(फाइल फोटो)
अब आप कहेंगे की सऊदी अरब, जहाँ से इस्लाम जन्मा है वह तो बहुत फल-फूल रहा है। तो आपको बता दूँ कि वहां का नेतृत्व आधुनिकता के साथ चलने वाला है। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने यहाँ तक कह दिया है कि 'हदीस' को वह नहीं मानते हैं। अब इसपर भी तरह-तरह के आशंकाएं बढ़ गई हैं। कहा यह जा रहा है कि सऊदी के क्राउन प्रिंस को मारने के लिए कई इस्लामिक गुट आतुर बैठे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि मोहम्मद बिन सलमान का यह रवैया इस्लाम के लिए खतरा है। अब आप बताएं कि जहाँ एक तरफ देश के लिब्रलधारी, मुस्लिमों की हालत पर हाय-तौबा मचाते हैं, किन्तु वह उस समय मूक-बधिर दिखाई देते हैं जब धर्मांतरण का मुद्दा उठता है, जब मुस्लिम महिलाओं की आजादी का मुद्दा उठता है और इसी भ्रम को मोहम्मद बिन सलमान तोड़ना चाहते हैं, सऊदी में महिलाओं को समान अधिकार देकर। अब जहाँ कट्टरवादियों को महिलाओं के आजादी से आपत्ति हो वहां विकास की बात करना अपमान ही है। हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने लड़कियों के कपड़ों पर सवाल उठाया था।
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अब जो इस्लमिक देश सऊदी अरब पर मदद की आस लगाए बैठे हैं उनके लिए भी सऊदी के नेतृत्व ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। जो पाकिस्तान इस्लाम की दुहाई देता हुआ उनसे मदद मांगता, और खाली कटोरी भरने की गुहार करता है उसे भी सऊदी अरब बदनाम करके खाली हाथ वापस भेजता है। सऊदी छोड़िए भारत सहित ऐसे कई लेखक एवं विद्वान हैं जिन्होंने इस्लाम को समझा है और आज वह उसका भंडाफोड़ कर रहे हैं। तारेक फतेह, सलमान रशीदी, इब्न वर्राक, अनवर शेख यह कुछ ऐसे लेखक हैं जिन्होंने कट्टरता के खिलाफ विश्व को आईना दिखाया है। लेकिन भारत में लिबरल इतिहासकारों द्वारा केवल उन क्रूर हत्यारों को महान बताया जाता है जिन्होंने लाखों हिन्दुओं की हत्या की।
बहरहाल, आपको बता दें कि अस्तित्व की लड़ाई में हिन्दू अभी भी कोसों दूर खड़ा है और यदि वह जागरूक नहीं हुआ तो उसको पछाड़ने का सपना देखने वाले, देश को बर्बाद करने का भी सपना देखेंगे।
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