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भगवान परशुराम के जीवन से वह सीख जिसे आज हमें सीखना चाहिए!

Shantanoo Mishra

हर वर्ष हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) मनाई जाती है, इस दिन अक्षय तृतीया (Akshya Tritiya) पर्व भी मनाया जाता। भगवान परशुराम विष्णु के छटे अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। भगवान विष्णु के अवतरित होने के पीछे यह कारण दिया जाता है कि उनका जन्म राजाओं द्वारा किए जा रहे अन्याय के विनाश के लिए हुआ था।

भगवान परशुराम को भगवान विष्णु से रक्षक का गुण और भगवान शिव से संहारक का गुण प्राप्त हुआ था। वह महर्षि जमदाग्नि के चार पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र थे, जिनको सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है। भक्तों में यह मान्यता है कि आज भी भगवान परशुराम जीवित हैं।

भगवान परशुराम (Wikimedia Commons)

भगवान परशुराम ने शिव की घोर तपस्या कर कई अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। मान्यता यह है कि भार्गव (भगवान परशुराम के कई नामों में से एक) ने कई गावों को बसाया था और गुजरात से केरल राज्य तक अपने बाण से समुद्र को पीछे धकेल भूमि का निर्माण किया था।

भगवान परशुराम का नाम राम भी था। राम एक आदर्श पुत्र थे, उन्होंने सदैव अपने माता-पिता का सम्मान किया। किन्तु आम धारणाओं में यह कथा प्रसिद्ध है कि परशुराम ने अपनी माँ का वध कर दिया था। जिसके पीछे की कथा जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। भगवान परशुराम को माँ का वध करने का आदेश उनके पिता महर्षि जमदाग्नि से मिला था। महर्षि जमदाग्नि ने अपने चारों पुत्रों को ऐसा करने का आदेश दिया। किन्तु, इसका पालन केवल परशुराम ने किया। जिसके पश्चात उनके पिता अति प्रसन्न हुए और कोई भी वर मांगने का आदेश दिया। इस पर अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए भगवान परशुराम ने अपनी माँ को पुनः जीवित करने का वर माँगा। जिस पर उनके पिता और अधिक प्रसन्न हुए और सभी ख्याति और ज्ञान उनको प्राप्त हो ऐसा वर दिया। किन्तु, परशुराम पर माँ के वध का पाप था जिससे मुक्त होने के लिए उन्होंने भगवन शिव की घोर तपस्या की और भगवान शिव द्वारा दिए गए वरदान से वह इस पाप से मुक्त हुए।

भगवान परशुराम ने कभी दान करने की योग्यता को अपने से अलग होने नहीं दिया। इसके पीछे भी एक कथा है कि भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ से सम्पूर्ण सृष्टि को जीत लिया था। किन्तु उन सभी को दान कर दिया गया। उन्होंने न्याय को सर्वोपरि माना जिस वजह से उन्हें 'न्याय देवता' भी कहा जाता है।

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