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पटरी पर धीरे-धीरे लौटने लगी है बिहारी प्रवासी मजदूरों की जिंदगी, कइयों ने बताई अपनी कहानी

NewsGram Desk

वैशाली के रहने वाले सूरज कुमार उन आठ लोगों के एक समूह में शामिल थे, जो राष्ट्रीय राजधानी पहुंचने की खातिर जय प्रकाश नारायण इंटरनेशल एयरपोर्ट पहुंचे हुए थे। शनिवार को आईएएनएस के साथ हुई बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि वह दिल्ली में जहां काम करते हैं, वहां से उन्हें और बाकी सदस्यों को हवाई टिकट भेजा गया है ताकि वह यहां आकर दोबारा अपना काम शुरू कर सकें, जो कोरोनावायरस महामारी के चलते पिछले कुछ समय से रूका हुआ था।

सूरज ने कहा, "हम लोगों को निमार्णाधीन आवासीय और कमर्शियल बिल्डिंग में मार्वल पत्थर बिठाने का काम आता है। दिल्ली में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है इसलिए अब हमारे ठेकेदार को काम शुरू कराने के लिए हमारी मदद चाहिए। अभी कुछ ही ट्रेनें चल रही हैं, इस वजह से हमें हवाई टिकट भेजे गए हैं और तीन महीने की अग्रिम सैलरी भी दी गई है।"

समूह के एक और सदस्य राम महतो कहते हैं, "मार्च में जब लॉकडाउन लगाया था, वह अनुभव हमारे लिए काफी दर्दनाक था। हम दिल्ली में आनंद विहार बस टर्मिनल तक पहुंचने के लिए 35 किमी पैदल चले थे। फिर हम किसी तरह लखनऊ जाने वाली यूपी के एक रोडवेज बस में सवार हुए और दोबारा तीन दिन तक इंतजार करने के बाद वैशाली में अपने गांव तक पहुंचने के लिए हमने गोरखपुर, छपरा और अन्य जिलों में से होकर 650 किलोमीटर पैदल चलने का फैसला किया।"

लॉकडाउन के वक़्त ट्रेन से सफर करते परवासी मजदूर (VOA)

वह आगे कहते हैं, "जून में जब पहली दफा अनलॉक की प्रक्रिया का ऐलान किया गया, तभी से हम नौकरी की तलाश में जुट गए थे। काम की तलाश में हम पटना और मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में भी गए। हमें मार्वल बिठाने का काम आता है, लेकिन बावजूद इसके हम मजदूरी तक करने को तैयार हो गए थे, पर काम नहीं मिला।"

इन्हीं में से एक सुनील कुमार कहते हैं, "हमारा किस्मत अच्छा है कि ठेकेदार ने हमसे खुद संपर्क किया है और टिकट भी भेजे हैं। एक इंसान के लिए 6,500 रुपये का टिकट खरीदना हमारे बस की बात नहीं है।"

इस तस्वीर से साफ है कि बिहार के प्रवासी मजदूर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे कई अन्य राज्यों में लौटने लगे हैं और यह अब राज्य के विपक्षी दलों के लिए एक चुनावी मुद्दा बन गया है।

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