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पश्चिमी मीडिया, भारतीय महामारी के घावों पर क्रूरता से नमक छिड़क रही हैं।

NewsGram Desk

भारतीय मीडिया (Indian Media) के कुछ लोग हमेशा पश्चिमी मीडिया (Western Media) के खुलेपन की प्रशंसा करते रहे हैं, लेकिन पश्चिमी मीडिया द्वारा भारतीय महामारी के प्रति की गईं हालिया रिपोर्टों ने भारतीय लोगों को गुस्से में डाल दिया है। भारत में कुछ विद्वान और टिप्पणीकार पश्चिमी मीडिया में भारतीय महामारी की त्रासद स्थिति की जबरदस्त प्रस्तुति से बेहद असंतुष्ट हैं। जो बात उन्हें विशेष रूप से गुस्सा दिलाती है वह यह है कि पश्चिमी मीडिया वाले न केवल आईसीयू में कैमरे ले गए, बल्कि श्मशान घाटों के क्लोज-अप शॉट्स भी लिए और आक्रामक व्यक्तिगत गोपनीयता और गरिमा की जो ये चीजें हैं, वे अपने देश में रिपोर्टिग करते समय नहीं करेंगे।

बीबीसी भारत में तैनात सबसे बड़ा विदेशी मीडिया है, जिसके भारत में 1,000 से अधिक पत्रकार और कर्मचारी हैं। बीबीसी ने हाल ही में भारत के 'शहर लॉकडाउन', 'वैक्सीन की कमी' और 'चिकित्सा सहायता के वितरण में भ्रष्टाचार' आदि पर खूब रिपोर्टिग की है। जिसका इशारा महामारी से लड़ने में भारत सरकार की अक्षमता को बताना है। गंगा (Ganga) नदी के तट पर श्मशान घाट पर सीएनएन की रिपोर्ट ने 'पूरी दुनिया को भारतीय महामारी का सबसे क्रूर दृश्य दिखाया है।'

उधर अमेरिका (America) के 'टाइम', 'वाशिंगटन पोस्ट' और अन्य मीडिया ने यह भी कहा कि भारत में महामारी के नवीनतम प्रकोप की जिम्मेदारी, सरकार की वैक्सीन कूटनीति का परिणाम है, क्योंकि उसने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन को मजबूत करने के लिए कोई उपाय नहीं किया है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' ने 8 मई को एक संपादकीय प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया कि अगर भारत में 1 अगस्त तक कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत हुई, तो वर्तमान सरकार को आपदा की जिम्मेदारी लेनी होगी।

भारत में महामारी पर पश्चिमी मीडिया की अतिरंजित रिपोटरें के जवाब में, भारतीय समाज में विरोध जारी है। कुछ भारतीय मीडिया ने टिप्पणी की कि पश्चिमी मीडिया रिपोर्टो ने भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, जबकि कुछ भारतीय सरकारी अधिकारियों ने बताया कि पश्चिमी मीडिया अपने देश में महामारी के दुखद दृश्यों की रिपोर्ट करते समय अधिक सतर्क है। यह भारत के प्रति पश्चिमी मीडिया के अहंकार को दर्शाता है।

पश्चिमी मीडिया घरेलू रिपोर्ट करता है, तो उन्हें घरेलू राजनीति के प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए। (सांकेतिक चित्र, Pexels)

भारत के नीति अनुसंधान केंद्र के प्रसिद्ध टिप्पणीकार ब्रह्म चेलानी ने लिखा है कि सामाजिक त्रासदियों की रिपोर्ट करते समय मीडिया को पीड़ितों की भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। पश्चिमी मीडिया आम तौर पर अपने देश में इस नियम का सख्ती से पालन करता है, लेकिन गैर-पश्चिमी समाज पर रिपोर्टिग करते समय उन्हें कोई संकोच नहीं होता है।

उल्लेखनीय है कि जब पश्चिमी मीडिया घरेलू रिपोर्ट करता है, तो उन्हें घरेलू राजनीति के प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए। हालांकि, भारत में महामारी की रिपोर्ट करते समय उन्हें किसी भी सामाजिक वास्तविकता पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में, भारतीय समाज और पश्चिमी मीडिया के बीच संघर्ष ने ध्यान आकर्षित करना शुरू कर दिया।

उदाहरण के लिए, भारतीय पुलिस ने हाल ही में भारत में 'ट्विटर' के कार्यालयों की जांच की। इसका कारण यह था कि भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के खाते को 'कंट्रोल्ड मीडिया' के रूप में चिह्न्ति किया गया। पिछले महीने, भारत सरकार ने भी ट्विटर और फेसबुक को महामारी से मोदी सरकार के अप्रभावी संचालन की आलोचना करने वाले पोस्ट हटाने के लिए कहा। इन घटनाओं ने पश्चिमी मीडिया की आलोचना भी शुरू कर दी है कि "भारत सरकार छवियों को बचाने पर ध्यान केंद्रित करती है, लेकिन जीवन नहीं।"

पश्चिमी मीडिया का भारत में अत्यधिक प्रभाव रहा है, और सामान्य भारतीय नेटिजन्स पूरी तरह से 'फेसबुक' और 'ट्विटर' जैसे पश्चिमी सोशल मीडिया पर निर्भर रहे हैं। लेकिन जब भी कोई बड़ा बदलाव होता है, तो पश्चिमी मीडिया कभी भी भारतीय लोगों की भावनाओं और गरिमा पर विचार नहीं करता है। एक विकासशील देश और एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत को अपनी छवि और अधिकार बनाए रखना चाहिए, जो कि देश के सुचारु शासन के लिए एक पूर्वापेक्षा भी है।

इंटरनेट के युग में, अफवाहें और झूठी खबरें सरकार में लोगों के विश्वास को गंभीर रूप से कमजोर कर देंगी, सामाजिक दहशत को बढ़ा देंगी, और अधिक अशांति और आपदाएं पैदा करेंगी। इसी दृष्टि से पश्चिमी मीडिया की तथाकथित 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' रिपोर्टे भारतीय महामारी के घावों पर क्रूरता से नमक छिड़क रही हैं।

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) (आईएएनएस-SM)

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