क्या चल रहा है बिहार राजनीति में? यह सवाल समझ से परे है। बिहार का मिज़ाज कुछ और बताता है और वास्तविकता कुछ अलग दर्शाती है। बिहार की मतगणना जारी है किंतु जो रुझान 3 दिन पहले दिखाए गए थे, आज उससे उलट दिख रहे हैं। इसका मतलब यह निकाल सकते हैं कि "मुँह में पान और मन में राम", ऐसा इसलिए कि अब तक के रुझान में NDA, बढ़त के साथ बहुमत का आंकड़ा छूती दिख रही है। पिछले एग्जिट पोल में RJD सत्ता में आ रही थी और अब पिछड़ रही है।
यहां तक की RJD नेताओं ने जश्न की तैयारी भी शुरू कर दी थी, दफ्तर को सजा-धजा कर बस नतीजे मिलने भर की देरी थी। मगर जब न्यूज़ चैनलों पर भाजपा और जेडीयू को बढ़त में देखा गया तब उनका ख़ुशी का माहौल निराशा में परिवर्तित हो गया।
बिहार की राजनीति कभी भी रुझान के दम पर नहीं चली है। ऐसा इसलिए कि पिछले चुनाव में NDA को पूर्ण-बहुमत से सरकार बनाते दर्शाया गया था और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने रुझान में बढ़त मिलने की ख़ुशी में मिठाइयां बंटवा दी थीं, पर नतीजा उलट निकला और महागठबंधन, सरकार बनाने में सफल हुई थी। यह पूरा खेल अमेरिकी चुनाव से मिलता दिख रहा है क्योंकि ट्रम्प को शुरुआत में मज़बूत बताया गया किन्तु नतीजा आज हमारे पास है।
पहला- लोग भीतर से नितीश कुमार से खुश नहीं हैं किन्तु उन्हें लालू राज में हत्याओं का भी दौर याद है और उन्हें यह भी डर है कि वही दौर दोबारा न आए। उदाहरण के रूप में आप अगर नितीश कुमार के विरोधी हैं तब आप अंतिम क्षण तक उनका विरोध करेंगे किन्तु आपके समक्ष कई और विकल्प भी मौजूद हैं जैसे भाजपा ; इस बार अलग लड़ रही है LJP एवं महागठबंधन। लेकिन पोलिंग बूथ में जाते ही कई लोग मत और विरोध को छोड़ कर विकल्प को देखते हैं कि "क्या वह सत्ता संभाल पाएगा?" यह सवाल कई लोगों का अंत तक पीछा करता है।
दूसरा- इस बार बिहार चुनाव में महिला फैक्टर अपना दम दिखा रहा है। एग्जिट पोल में अधिकांश पुरुषों का मत जाना गया, और वहीं महिलाओं पर इतना ध्यान नहीं दिया गया किंतु अब तक के रुझान से यह ज्ञात होता दिख रहा है कि भाजपा और NDA को महिलाओं ने डूबने से बचाया हुआ है।