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Transparency web series: स्वराज से लेकर भ्रष्टाचार तक का सफर(भाग-4)

NewsGram Desk

अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) का जन्म 16 Aug 1968 में हरियाणा के हिसार क्षेत्र में हुआ था। शुरू से ही अरविंद एक शांत स्वभाव के व्यक्ति रहे हैं। समाज से उनका बेहद लगाव रहा है। आईआईटी खड़गपुर से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद समाज सेवा के लिए भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) से जुड़े। उसके बाद धीरे – धीरे उन्होंने राजनीति में फैल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी थी।

समाज के प्रति जैसा झुकाव शुरुआती दिनों में अरविंद का था, तब सब कहा करते थे की अरविंद राजनीति में कुर्सी पाने के लिए नहीं आए हैं। उनके द्वारा जनता से किए गए सभी वादों को वो पूरा करेंगे। अरविंद केजरीवाल का शुरू में ध्यान केवल भ्रष्टाचार (Corruption) मिटाने पर था। लेकिन धीरे – धीरे ऐसा क्या हुआ कि आज वो खुद भ्रष्टाचार के ढेर पर बैठे हैं? झाडू हाथ में ले जिस कचरे को वो राजनीति से साफ करने आए थे। आखिर क्यों आज उस गंदगी का एक हिस्सा बन चुके हैं?

2006 – 2007 से ही अरविन्द केजरीवाल ने "स्वराज" के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। कैसे समाज में भ्रष्टाचार को खत्म कर स्वराज स्थापित किया जाए। इन अहम मुद्दों पर अरविंद ने सोचना शुरू कर दिया था। यहां तक उनके द्वारा लिखी एक किताब भी है जिसका नाम है "स्वराज।" जब समाज में परिवर्तन कि बातें होने लगी। आवाज उठाए जाने लगे तब एक NGO रजिस्टर हुआ था PCRF के नाम से। लेकिन आज इस NGO का क्या हुआ? PCRF का क्या हुआ?

अरविंद केजरीवाल ने एक बार अपने अनशन के दौरान भाषण दिया था कि "भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, जय प्रकाश आंदोलन के 30 साल के बाद यह मौका आया है। यह आर या पार की लड़ाई है। हमें इस मौके को खोना नहीं है। इन भाषणों से जनता में जोश पैदा करने वाले। दिल्ली की गद्दी हासिल करते ही मूक क्यों हो गए?

उस वक्त आंदोलन का लोगों पर इतना प्रभाव था कि देश – विदेश से लोग अपना काम अपना परिवार तक छोड़ कर केवल पार्टी को अपना समर्थन देने आए थे। जब पार्टी का गठन हुआ तो अरविंद केजरीवाल ने जनता से कहा कि हम आम आदमी को मौका देना चाहते हैं। जो लोग भी हमसे जुड़ना चाहते हैं। हमारे पास आए। ये हैरानी की ही बात है कि उस वक्त लोग लाइनों में लग – लग कर पार्टी की मेंबरशिप ले रहे थे। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि आज वह सभी समर्थक अपने – अपने घर जा चुके हैं और आज आम आदमी पार्टी से नाराज़ हैं?

अरविंद केजरीवाल कहते थे, हम बड़े बंगले में नहीं रहेंगे। VIP सिक्योरिटी नहीं लेंगे। AC में बैठ कर नहीं जनता के बीच रह कर काम करेंगे। अपने लोगों को नहीं बल्कि आम जनता को मौका देंगे। फिर उन सभी वादों और भाषणों को क्यों दरकिनार कर दिया उन्होंने? अगर टिकट का लालच नहीं था तो आज क्यों दिल्ली कि गद्दी पर बैठे हैं? क्या शुरू से उनका मकसद गद्दी हासिल करना था? क्यों जनता के साथ उन्होंने विश्वासघात किया?

जब अन्ना आंदोलन (Anna Movement) लोगों में प्रचलित हुआ। लोगों ने बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया। तब पार्टी के एक सदस्य संजय सिंह जैसे लोगों के दिमाग में यह बात आने लगी थी कि, पार्टी के अंदर मुस्लिम, हिन्दू, पंडित, किन्नर और भी समुदाय के लोग होने चाहिए। एक तरफ अरविंद केजरीवाल कहते थे कि हमें सही मायनों में धर्मनिपेक्षता को स्थापित करना होगा। हिन्दू – मुस्लिम के भेद को खत्म करना होगा। वहीं दूसरी तरह उनकी पार्टी के लोग और वह खुद भी जाति भेद उत्पन्न करते थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उन्हीं के पार्टी के एक सदस्य जितेन्द्र सिंह तोमर, जिन्हें सिर्फ इसलिए नेता बनाया गया क्योंकि वह एक राजपूत थे। आखिर क्यों?

क्यों अरविंद केजरीवाल जब मुस्लिम इलाकों में जाते थे तो कहते थे यहां बात करो Batla House की। और जब हिन्दू इलाकों में आते थे तो उनके भाषण और हाव – भाव दोनों बदल जाते थे? क्यों अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, अफजल गुरु के बारे में कोई कुछ नहीं बोलेगा क्योंकि इससे मुसलमान नाराज हो जाते हैं?

हमें हमारे सभी प्रश्नों के जवाब Transparency: Pardarshita web series के माध्यम से मिलेंगे। क्या है अरविंद केजरीवाल का असली चेहरा। इसे हम ट्रांसपेरेंसी के भाग – 4 जान पाएंगे। आगे हम जानेंगे कि असल मायनों में "स्वराज" क्या होता है। गांधीवादी विचारधारा से लोग कैसे परिवर्तित हुए। उन्होंने कैसे समाज में भी परिवर्तन किए।

भारतीय दर्शकों के लिए MX Player पर निशुल्क उपलब्ध है।

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डॉक्यूमेंट्री को https://transparencywebseries.com/ पर भी देखा जा सकता है।

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