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डॉ भीम राव अंबेडकर के ‘हिंदू धर्म’ और ‘स्वतंत्रता’ से जुड़े आखिर क्या राज़ हैं?

Swati Mishra

डॉ. भीम राव अंबेडकर (Dr. Bhim Rao Ambedkar) को हमारे संविधान (Constitution) के पिता के रूप में जाना जाता है। संविधान का मसौदा तैयार करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंबेडकर जी की दृष्टि में देश के सभी नागरिक पहले भारतीय माने जाते हैं, उनकी अन्य पहचान बाद में महत्व रखती है। चाहे उनकी जाति और धर्म कोई भी हो। 

एक प्रसिद्ध समाज सुधारक के रूप में अंबेडकर जी भारत में ही नहीं बल्कि भारत के बाहर भी काफी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने, असमानता, अन्याय, दलित समुदाय के सदस्यों के साथ भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज को हमेशा बुलंद किया है। अंबेडकर जी अपने कथनों के लिए भी काफी जाने जाते हैं।

"यदि मुझे लगता है कि, संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं सबसे पहले इसे जलाऊंगा।" 

"यदि आप एक सम्मानजनक जीवन जीने में विश्वास रखते हैं, तो आप स्वयं सहायता में विश्वास रखिए, जो सबसे अच्छी आदत है।"

अंबेडकर जी ने कई ऐसी बातें कही हैं, जो आम जन को काफी प्रभावित करती हैं। लेकिन उनका यह कथन "मैं हिन्दू पैदा हुआ था, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि, मैं एक हिन्दू के रूप में नहीं मरूंगा।" कई सवाल खड़े कर देता है। क्या अम्बेडकर हिन्दू धर्म के विरोधी थे?

समाज में समानता को बढ़ावा देने वाले अंबेडकर ने क्या जातिगत विभेद को उत्पन्न किया था? कई लोगों को इन सवालों के जवाब मिले भी होंगे लेकिन अब भी कई लोग इन सवालों के बंधन में बंधे होंगे।

आइए जानते हैं अंबेडकर से जुड़े रोचक तथ्य!

हिन्दू धर्म (Hinduism) का एक अंतर्निहित हिस्सा होने के बावजूद, अंबेडकर ने हिन्दू धर्म का सदैव विरोध किया है। उनका मानना था कि, यह धर्म दलितों के लिए जाति व्यवस्था को बदनाम करने का एकमात्र तरीका था। इसलिए उन्होंने बाद में चलकर बौद्ध धर्म धारण कर लिया था। इस धर्म को अपनाने के पीछे एक कारण यह था कि बौद्ध धर्म, तर्कसंगत, नैतिकता और न्याय के अपने मूल मूल्यों को पूरा करता था। अंबेडकर ने कहा था, "मुझे ब्रह्मा, राम, कृष्ण, विष्णु में कोई विश्वास नहीं है। ना मैं उनकी पूजा करूंगा। मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूं। यह सरासर पागलपन है। मैं हिन्दू (Hindu) धर्म का त्याग करता हूं और बौद्ध धर्म को अपने धर्म के रूप में अपनाता हूं। 

अंबेडकर जी ने अपनी एक किताब "पाकिस्तान ऑर दी पार्टीशन ऑफ इंडिया" (Pakistan or the Partition of India) में बताया है कि, अगर हिन्दू राज हकीक़त बनता है, तब वह भारत के किए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। उनका कहना था कि, हिन्दू धर्म, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। अंबेडकर ने हिंदुत्व को पूरी तरीके से खारिज किया है। उन्होंने कहा कि, हिंदुत्व के पास मनुष्यता को देने के लिए कुछ भी नहीं है। अपनी किताब "जातिभेद का उच्छेद" में उन्होंने बताया कि, क्यों वह हिन्दू धर्म से घृणा करते हैं। उन्होंने लिखा है कि, "मैं हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से इसलिए घृणा करता हूं, क्योंकि यह गलत आदर्शों को पोषित करता है। हिन्दू धर्म के प्रति उनकी घृणा का सबसे बड़ा कारण जाति व्यवस्था है। जाति हिन्दुओं का आधारभूत प्राण है, जिसने सारा वातावरण गंदा कर दिया है। हिन्दू धर्म वेद, स्मृतियां,यज्ञ – कर्म,शुद्धता, नियम, शिष्टाचार जैसे अनेक विषयों की खिचड़ी मात्र है। अंबेडकर जी ने अपनी इस किताब मे स्पष्ट कहा है कि "यदि मुसलमान क्रूर थे, तो हिन्दू नीच रहे हैं।" 

अंबेडकर ने हिंदू धर्म, उनके भगवान, उनके प्रति आस्था का हमेशा विरोध किया है। यह भारत का दुर्भाग्य है कि, महान समाज सुधारक, जो समाज में समानता स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने सबसे अधिक जाति घृणा को बढ़ावा दिया है।

"यदि मुझे लगता है कि, संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं सबसे पहले इसे जलाऊंगा।" : डॉ. भीम राव अंबेडकर| (Wikimedia Commons)

इसके अतिरिक्त बाबा साहेब का एक और सत्य है जिसे जान लेना बहुत जरूरी है। हिन्दू धर्म के खात्मे के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। भारत ने अपनी स्वतंत्रता (Independence) के लिए न जाने कितने संघर्ष किए हैं। कितने बलिदानों को सहा है। परंतु संविधान के जनक माने जाने वाले अंबेडकर का भारत की आजादी के पीछे एक सच आज भी मौजूद है। अंबेडकर भारत की आजादी के पक्ष में बिल्कुल नहीं थे। 

उस समय अंबेडकर ने तत्कालीन वायसराय से कहा कि, यदि भारत स्वतंत्र हुआ तो यह सबसे बड़ी आपदाओं में से एक होगा। अंबेडकर भारत की आजादी के सख्त खिलाफ थे। 

  • (Ambedkar told the Viceroy that "If India became independent it would be one of the greatest disasters that could happen." (Source : Worshipping False Gods: Ambedkar, and the facts which have been erase, Book by Arun Shourie Page No – 408)

अंबेडकर ने ब्रिटिश इंडिया के प्राइम मिनिस्टर को लिखे अपने पत्र में भारत की आजादी का विरोध करते हुए कहा कि, सत्ता के हस्तांतरण (भारत की आजादी) के लिए उदास वर्ग (निम्न वर्ग) चिंतित नहीं है। मुझे एक बार स्पष्ट करने की अनुमति दें। निम्न वर्ग चिंतित नहीं है। अनाड़ी नहीं है। उन्होंने यह दावा करने के लिए कोई आंदोलन शुरू नहीं किया है कि, ब्रिटिश लोगों से लेकर शक्तियां तत्काल भारतीयों को हस्तांतरित कर दी जाए।  

(Prime Minister, permit me to make one thing clear. The Depressed Classes are not anxious, they are not clamorous, they have not started any movement for claiming that there shall be an immediate transfer of power from the British to the Indian people. (Source: Writing and Speeches of Ambedkar, VOl pp.66)

हिन्दू धर्म के प्रति उनकी घृणा का सबसे बड़ा कारण जाति व्यवस्था है। (सांकेतिक चित्र, Wikimedia Commons)

अंबेडकर ने अपने जीवन में एक बार भी भारत को आजादी की मांग नहीं की, हमेशा ब्रिटिशों के पक्ष में रहे। उन्हें याद दिलाया कि अछूतों की मदद केवल ब्रिटिश कर सकते हैं। इसलिए ब्रिटिश रुल संभव है। "भारत में ब्रिटिश शासन ने अछूतों की सहायता के लिए अपने अस्तित्व का श्रेय दिया है।"

(British Rule in India owes its very existence to the help rendered by the Untouchables. (Source: Writing and Speeches of Ambedkar VOl X, pp. 496)

अंबेडकर ने हर संभव तरीके से भारत की स्वतंत्रता का विरोध किया था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को एक "बेईमान आंदोलन कहा" और कहा की अछूत इसका हिस्सा बिल्कुल नहीं हैं। उन्होंने कहा, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए। 

(If Hindu Raj become a fact, it will, no doubt, be the greatest calamity for his Country. No matter what the Hindus say, Hinduism is a menace to liberty, equality and fraternity. (Source: Ambedkar, Pakistan or Partition P.354 and P.355)

हमारा इतिहास, अंबेडकर के हितैषी और स्कूल में दी जाने वाली शिक्षाओं में अंबेडकर के केवल एक सच से रूबरू कराया जाता है कि, उन्होंने जाती व्यवस्था का विरोध किया था। लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि, जातिगत विभेद को बढ़ावा देने वाले अंबेडकर ही हैं। यह भारत का दुर्भाग्य ही है, की भारत की स्वतंत्रता का विरोध करने वाले व्यक्ति आज भारत रत्न से सुशोभित हैं। भारत का एक सबसे पूजनीय चेहरा माने जाते हैं।

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