Renuka Aradhya Success Story - रेणुका और पिता घर-घर जाकर लोगों से चावल, आटा और दाल मांगते थे इसी से उनके घर का गुजारा होता था।[Wikimedia Commons] 
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घर - घर जाकर दाल चावल मांगने वाला आज खुद की है करोड़ों की कम्पनी।

अपनी किस्मत पर रोना या अपनी परिस्थिति को कोसना बहुत आसन है परंतु मेहनत करके अपने जीवन में कुछ कर दिखाना बहुत मुश्किल । आज हम ऐसे व्यक्तित्व के बारे में आपको बताएंगे जो युवाओं के लिए प्रेरणा बने ।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Renuka Aradhya Success Story - मेहनत सीढ़ियों की तरह होती है और भाग्य लिफ्ट की तरह लिफ्ट तो किसी भी समय बंद हो सकती है पर सीढ़िया हमेशा ऊंचाई की ओर ही ले जाती हैं । अपनी किस्मत पर रोना या अपनी परिस्थिति को कोसना बहुत आसन है परंतु मेहनत करके अपने जीवन में कुछ कर दिखाना बहुत मुश्किल । आज हम ऐसे व्यक्तित्व के बारे में आपको बताएंगे जो युवाओं के लिए प्रेरणा बने ।

बचपन से कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए रेणुका आराध्या ने आज इतनी बड़ी सफलता हासिल की है। कैसे एक समय भीख मांगने वाले शख्स ने करोड़ों रुपयों की कंपनी खड़ी कर दी।

कठिन परिस्थितियों को झेला

रेणुका आराध्या बेंगलुरु के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। एक गरीब पुजारी परिवार में रेणुका का जन्म हुआ था और बचपन बहुत कठिन परिस्थितियों में गुजरा था। आर्थिक हालत बुरी होने के कारण इनको अपने पढ़ाई के लिए दूसरों के घर काम करना पड़ा । किसी तरह से उन्होंने 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह पास के मंदिर में पुजारी के रूप में काम किया करते थे। पूजा के बाद रेणुका और पिता घर-घर जाकर लोगों से चावल, आटा और दाल मांगते थे इसी से उनके घर का गुजारा होता था।

कभी गार्ड तो कभी बने ट्रैवल ऐजेंट

इस बीच वे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी और मजदूरी करते रहे। रेणुका हमेशा से जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी छोड़ दी और ड्राइविंग सीखना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने एक ट्रैवल एजेंसी ज्वाइन कर इस ट्रैवल एजेंसी में वह विदेशी पर्यटकों को घुमाने का काम करते थे ।

अपनी पहली कार, टाटा इंडिका, रुपये में खरीदने के लिए अपनी बचत का निवेश किया। [Wikimedia Commons]

कैसे बनाई अपनी कंपनी

2000 में आराध्या ने अपनी खुद की गाड़ी खरीदी। उनकी पत्नी ने अपना पीएफ पैसा निकाल लिया और उन्होंने अपनी पहली कार, टाटा इंडिका, रुपये में खरीदने के लिए अपनी बचत का निवेश किया। 3.2 लाख और स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने पांच और कारें जोड़ीं और उन्हें सिटी टैक्सी से जोड़ा।उनके एक ड्राइवर, वेंकटेश पेरुमल ने, आराध्या को एक अन्य कंपनी, इंडियन सिटी टैक्सी खरीदने के लिए प्रेरित किया, जो संकटकालीन बिक्री पर थी। उन्होंने ऋण जुटाकर और अपने पास मौजूद सभी कारों को बेचकर 6.75 लाख रुपये कमाए। इंडियन सिटी टैक्सी में 35 कारें जुड़ी हुई थीं। आराध्या ने अपनी नई कंपनी का नाम 'प्रवासी कैब्स' रखा। यह सब इतना आसान नहीं था और एक उद्यमी के रूप में उन्हें संघर्ष करना पड़ा।

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