अभिनेत्री तबस्सुम (Tabbassum) बताती है कि उनकी मां का जन्म एक मुसलमान (Muslim) घराने में एक मौलवी के घर हुआ। जब वह 12 साल की थी तो उनके पिताजी ने उन्हें अरबी, कुरान शरीफ और फारसी पढ़ा दी। यह सब पढ़ने के बाद असगरी बेगम (Asgari Begum) ने अपने पिताजी से हिंदू (Hindu) धर्म के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। वह रामायण, महाभारत, वेद पुराण, उपनिषद आदि पढ़ना चाहती थी। 12 साल की बच्ची के मुंह से यह बात सुनकर उनके पिताजी गुस्से से आगबबूला हो उठे।
आगे अभिनेत्री बताती है कि उनकी मां खुश किस्मत थी जो उन्हें स्वामी श्रद्धानंद (Swami Shraddhanand) के बारे में पता चला जो उस वक्त शुद्धि का चक्कर चला रहे थे। यह जानने के बाद असगरी बेगम घर से भाग गई। वह बड़े गर्व से कहती थी कि मैं किसी की मोहब्बत या किसी की दौलत के नशे में नहीं भागी हूं बल्कि अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए भागी हूं जब मैं उर्दू, फारसी अरबी पढ़ सकती हूं तो संस्कृत क्यों नहीं? मन में संस्कृत, वेद पुराण, महाभारत, रामायण आदि पढ़ने की इच्छा लिए वह स्वामी जी की शरण में जा पहुंची और वहां पर उनकी इच्छा अनुसार असगरी को हिंदू धर्म में दीक्षित किया गया। वहां उनका नाम शांति देवी (Shanti Devi) रख दिया गया। लेकिन समाज ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और लोग आते रहे और कहते रहे हमारी असगरी बेगम हमें वापस करो जिन्हें आपने शांति देवी बना दिया है।
जब यह मामला कोर्ट में गया तो कोर्ट ने भी स्वामी जी का पक्ष लिया। इसी बीच ख्वाजा हसन निजामी (Khwaza Hasan Nizami) जैसे लोगों ने मुसलमानों को स्वामी जी के विरुद्ध भड़का दिया। जिससे उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगी और अंत में अब्दुल रशीद (Abdul Rashid) ने उन्हें गोली मार दी। गांधीजी (Gandhi ji) अब्दुल रशीद को अपना भाई कहा करते थे।
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