बचपन से ही फिल्में और अभिनय उनके दिल के बहुत करीब थे। यही कारण था कि उन्होंने 17 साल की कम उम्र से ही अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। उनका यह फैसला जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ।
प्रदीप कुमार का जन्म 19 जनवरी 1925 को कोलकाता (Kolkata) में हुआ था। बचपन से उनका झुकाव अभिनय की तरफ अधिक था। स्कूल और मोहल्ले में नाटक और नाटकों में भाग लेना उनके लिए एक खास शौक बन गया। छोटी उम्र में ही उन्होंने महसूस किया कि फिल्मी दुनिया उनका सपना है और इसी सपने के पीछे वे अपने पूरे जीवन तक चलेंगे। 17 साल की उम्र में लिया गया यह फैसला उनके लिए जैसे जीवन का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम था।
उनकी फिल्मी यात्रा बंगाली सिनेमा (Bengali Cinema) से शुरू हुई। बंगाली फिल्म निर्देशक (Director) देवकी बोस (Devki Bose) ने एक नाटक में उनके अभिनय को देखा और प्रभावित होकर उन्हें अपनी फिल्म 'अलकनंदा' (1947) में मुख्य भूमिका का मौका दिया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट नहीं हुई, लेकिन प्रदीप कुमार का अभिनय और उनकी स्क्रीन पर मौजूदगी दर्शकों और फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींचने में सफल रही। इसके बाद उन्होंने कई बंगाली फिल्मों में काम किया, जिनमें 'भूली नाय' और 'स्वामी' जैसी फिल्में शामिल थीं।
बंगाली फिल्मों के बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर रुख किया। साल 1952 में प्रदीप कुमार ने फिल्म 'आनंद मठ' में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद उन्होंने 1953 में फिल्म 'अनारकली' में बीना राय के साथ और 1954 में 'नागिन' में वैजयंतीमाला के साथ मुख्य भूमिका निभाई। इन फिल्मों ने उन्हें बड़े पर्दे पर पहचान दिलाई। उनकी शाही और आकर्षक छवि के कारण दर्शकों ने उन्हें तुरंत पसंद किया।
प्रदीप कुमार ने मधुबाला और मीना कुमारी जैसी बड़ी अभिनेत्रियों के साथ भी कई सफल फिल्में की। मधुबाला के साथ उन्होंने आठ फिल्मों में काम किया, जिनमें 'राज हठ', 'शिरीन-फरहाद', और 'यहूदी की लड़की' शामिल हैं। वहीं, मीना कुमारी के साथ उन्होंने सात फिल्में की, जिनमें 'चित्रलेखा', 'बहु-बेगम', और 'भीगी रात' प्रमुख हैं।
उम्र बढ़ने के साथ उन्हें प्रमुख भूमिकाओं के बजाय सहायक भूमिकाएं निभानी पड़ीं। इसके बावजूद उन्होंने बड़े-बड़े अभिनेताओं जैसे अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan), सनी देओल (Sunny Deol) और मनोज कुमार (Manoj Kumar) के साथ भी काम किया। प्रदीप कुमार की कला और मेहनत ने उन्हें सिर्फ बॉक्स ऑफिस (Box Office) की सफलता ही नहीं दिलाई, बल्कि दर्शकों के दिलों में एक खास जगह भी दी।
प्रदीप कुमार को उनके योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया। उन्होंने 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार (lifetime Achievement Award) जीता। पर्दे पर मिली सफलता के बावजूद उनका निजी जीवन दुखों से भरा रहा। वे अक्सर अकेलेपन से गुजरते थे। लंबी बीमारी के बाद प्रदीप कुमार का निधन 27 अक्टूबर 2001 को कोलकाता में हुआ। उन्होंने 76 साल की उम्र में आखिरी सांस ली।
[AK]