दिल्ली घराने के शास्त्रीय गायक इकबाल अहमद खान की अलाप में शहर की संस्कृति और संगीत की आत्मा झलकती है। IANS
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वाह उस्ताद : दिल्ली घराने की धड़कन, जिनके सुरों में बसी शहर की आत्मा (स्मृति शेष)

नई दिल्ली का नाम आते ही दाग देहलवी, मिर्जा गालिब जैसे शायर और कवि याद आते हैं। इसके साथ दिल्ली घराने के शास्त्रीय गायक इकबाल अहमद खान की अलाप भी संस्कृति में जान भर देती थी।

Author : IANS

उस्ताद इकबाल अहमद खान (Iqbal Ahmed Khan) जब महफिल में होते थे, तो उनका खयाल गायन जितना विद्वतापूर्ण होता था, उनकी ठुमरी, दादरा, टप्पा और गजलें उतनी ही भावुक और जमीन से जुड़ी होती थीं। खयाल के उस्ताद होते हुए भी, उप-शास्त्रीय संगीत में उनकी महारत उन्हें भीड़ से अलग करती थी। उनकी ठुमरी में दिल्ली घराने की नजाकत थी, एक ऐसी मधुर लय, जो श्रोताओं को सीधा राग की आत्मा से जोड़ देती थी।

उनके जीवन का एक रोचक पहलू यह था कि उन्हें अक्सर अपने भीतर के कलाकार और शिक्षक के बीच संतुलन साधना पड़ता था। समीक्षकों ने एक बार टिप्पणी की थी कि जब वे संगीत परंपरा के इतिहास या किसी राग के सूक्ष्म नियमों को समझाने पर कम ध्यान केंद्रित करते थे, तब उनका कलाकार रूप शानदार प्रदर्शन करता था।

उनकी डिस्कोग्राफी में अमीर खुसरो द्वारा रचित और लिखे गए दुर्लभ तराना (जैसे 'चांदनी केदार तराना') शामिल हैं। उनके लिए, गाना केवल कला नहीं, बल्कि इतिहास को सुरक्षित रखना था। उनके सक्रिय करियर में पांच दशकों से अधिक का विस्तार था, जिसकी शुरुआत 1966 में हुई थी।

उस्ताद खान को संगीत (Music) की शुरुआती और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा अपने नाना, संगीत मार्तंड उस्ताद चांद खान साहब से मिली। यह उनकी वंशावली की शक्ति थी कि उन्हें एक ही परंपरा के भीतर कई मास्टर्स से सीखने का सौभाग्य मिला, उनमें उनके दादा, परदादा, चाचा (उस्ताद हिलाल अहमद खान, उस्ताद नसीर अहमद खान, उस्ताद जफर अहमद खान), और उनके पिता उस्ताद जहूर अहमद खान भी शामिल थे।

इसी प्रशिक्षण के बल पर वे आकाशवाणी के शीर्ष-ग्रेड गायक के रूप में उभरे। उस्ताद खान ने अपनी भूमिका को केवल मंच तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने 'दिल्ली दरबार' की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देना था।

इसके अलावा, उन्होंने मीडिया और थिएटर (Theater) के लिए संगीत भी तैयार किया, जिसमें टीवी धारावाहिक इंद्र सभा और वृत्तचित्र याद-ए-गालिब शामिल हैं। यहां तक कि उन्होंने भारत सरकार के ई-गवर्नेंस प्रभाग के लिए गुलजार द्वारा लिखे गए गीत के लिए भी संगीत तैयार किया।

उनके योगदान को भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मानों से मान्यता मिली, जिसमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2014) और मिर्जा गालिब पुरस्कार (2008) शामिल हैं।

उन्होंने डॉ. अंजली मित्तल और सोनिया मिश्रा जैसे शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घराने की शैली का प्रदर्शन और प्रचार किया।

17 दिसंबर, 2020 को उनका प्रस्थान एक संरक्षक की कथा का मार्मिक निष्कर्ष था। उनके निधन पर अमजद अली खान ने कहा था, "दिल्ली घराने के प्रमुख उस्ताद इकबाल अहमद खान साहब के निधन से हैरान और दुखी हूं। इंडियन आइडल 2020 के दौरान मेरी उनसे थोड़ी बातचीत हुई थी। वह संगीत और सभी संगीतकारों के बारे में बहुत दयालु और हमदर्द लगे।"

[AK]