आज भारत जिन महानगरों और स्मार्ट सिटीज़ के लिए जाना जाता है, कभी इसी धरती पर ऐसे शहर भी बसते थे, जिनकी चमक दूर-दूर तक फैली हुई थी। ये शहर सिर्फ़ ईंट-पत्थर की बस्तियाँ नहीं थीं, बल्कि व्यापार, संस्कृति, विज्ञान और आस्था के बड़े केंद्र हुआ करते थे। आज हम आपको भारत के 7 ऐसे शहरों (7 lost cities of India) के बारे में बताएंगे जो एक समय चमक–दमक और अपनी खासियत की वजह से विख्यात थे लेकिन धीरे-धीरे भारत की धरती से लुप्त होते गए। आज उन लुप्त शहरों को याद तो किया जाता है या इतिहास के पन्नों में उनके बारे में जिक्र जरूर मिल जाता है लेकिन इनका अस्तित्व खत्म हो चुका है। इन शहरों में से आज कुछ समुद्र के नीचे हैं, कुछ खंडहरों में बदल चुके हैं और कुछ सिर्फ़ किंवदंतियों में ज़िंदा हैं।
द्वारका (Dwarka) को प्राचीन भारत का एक अत्यंत उन्नत नगर माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी, जहाँ भव्य महल, योजनाबद्ध सड़कें और समुद्र से जुड़ा विशाल बंदरगाह था। द्वारका व्यापार, कला और संस्कृति का बड़ा केंद्र मानी जाती थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रीकृष्ण के बाद द्वारका का विनाश हो गया। कहा जाता है कि समुद्र ने सात दिनों में पूरे नगर को अपने भीतर समा लिया, जिससे यदुवंश का अंत हो गया। इसे धर्म और समयचक्र से जोड़ा जाता है। वहीं, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कुछ विद्वान मानते हैं कि समुद्र स्तर में वृद्धि, भूकंप या तटीय भू-धंसाव के कारण द्वारका डूबी होगी। आधुनिक समुद्री रिसर्च में गुजरात तट के पास पानी के नीचे संरचनाओं के अवशेष भी मिले हैं, जिन्हें प्राचीन द्वारका से जोड़ा जाता है।
लोथल (Lothal) प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था, जो लगभग 2400 ईसा पूर्व गुजरात में स्थित था। यह शहर अपनी उन्नत डॉकयार्ड (Dockyard) के लिए विश्व प्रसिद्ध था, जिसे दुनिया के सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक माना जाता है। यहां से मनके, जवाहरात और गहनों जैसे सामान का व्यापार मेसोपोटामिया, फारस की खाड़ी और अन्य दूर-दूर देशों के साथ होता था, जो सिंधु सभ्यता की आर्थिक शक्ति को दर्शाता है।
लोथल केवल एक व्यापारिक केंद्र नहीं था, बल्कि इसकी ड्रेनेज सिस्टम (Drainage System), गोदाम और टाउन प्लानिंग यह दर्शाती है कि यह सभ्यता शहरी योजना में कितनी उन्नत थी। जहां तक इसके गायब होने का सवाल है, तो सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य शहरों की तरह लोथल का पतन भी धीरे-धीरे हुआ। मुख्य कारण माना जाता है कि नदी के मार्ग बदलने, पूरक जल स्रोतों में कमी और बाढ़-सूखे जैसी पर्यावरणीय बदलावों ने यहां की अर्थव्यवस्था और कृषि को प्रभावित किया, जिससे लोग धीरे-धीरे यहां से चले गए। वैज्ञानिक शोध (Scientific Research) भी बताते हैं कि बड़े-बड़े जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और सूखे (Drought) ने इस सभ्यता के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज केवल खंडहर और खुदाई से मिले अवशेष ही लोथल की महानता और उसकी तकनीकी सफलता की गवाही देते हैं।
विजयनगर (Vijaynagar), जिसे आज हम हम्पी के नाम से जानते हैं, कभी दक्षिण भारत का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली शहर हुआ करता था। 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच यह विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी। विदेशी यात्रियों के अनुसार यह शहर सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात, भव्य मंदिरों, बाजारों और मजबूत किलों से भरा हुआ था। उस समय इसे दुनिया के सबसे अमीर शहरों में गिना जाता था।
विजयनगर के गुम होने का सबसे बड़ा कारण 1565 में तालिकोटा का युद्ध (War of Talikota) माना जाता है। इस लड़ाई में दक्कन की सल्तनतों ने विजयनगर को हराया और इसके बाद शहर को बेरहमी से लूटा और नष्ट कर दिया गया। कई वर्षों तक चली लूट-पाट और आगजनी ने इस महान शहर को खंडहर में बदल दिया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अत्यधिक वैभव और अहंकार भी इसके पतन का कारण बना। आज विजयनगर के अवशेष उसकी भव्यता और विनाश दोनों की कहानी सुनाते हैं।
फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri) मुगल सम्राट अकबर द्वारा 16वीं शताब्दी में बसाया गया एक भव्य और योजनाबद्ध शहर था। यह कुछ समय के लिए मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रहा। लाल बलुआ पत्थर से बने इसके महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-ख़ास, बुलंद दरवाज़ा और पंचमहल इसकी वास्तुकला की भव्यता को दर्शाते हैं। यह शहर प्रशासन, धर्म और संस्कृति का बड़ा केंद्र था। इतिहासकारों के अनुसार फतेहपुर सीकरी के गुम होने का सबसे बड़ा कारण पानी की कमी थी। यहाँ के जलस्रोत समय के साथ सूखने लगे, जिससे इतने बड़े शहर का टिक पाना मुश्किल हो गया। इसके अलावा उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर बढ़ते खतरों के कारण अकबर को राजधानी लाहौर स्थानांतरित करनी पड़ी।
लोक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि शेख सलीम चिश्ती की भविष्यवाणी पूरी होने के बाद शहर का महत्व समाप्त हो गया। कुछ लोग इसे अकबर की बदली हुई राजनीतिक प्राथमिकताओं से भी जोड़ते हैं। आज फतेहपुर सीकरी एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो सत्ता, वैभव और अस्थायित्व की कहानी सुनाती है।
कालीबंगा (Kalibanga) राजस्थान में स्थित सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण नगर था, जो लगभग 2600 ईसा पूर्व में आबाद था। यह शहर अपनी अनोखी नगर योजना, पक्की ईंटों से बने घरों और अग्नि वेदियों (Fire Altars) के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य हड़प्पा स्थलों से अलग बनाती हैं। कालीबंगा सरस्वती (घग्गर-हकरा) नदी के किनारे बसा था, जिससे कृषि और जीवन आसान था। कालीबंगा के गायब होने का सबसे बड़ा कारण नदी का सूख जाना माना जाता है।
जब सरस्वती नदी का प्रवाह कमजोर पड़ा, तो पानी की कमी से खेती और जीवन दोनों प्रभावित हुए। इसके अलावा भूकंप, जलवायु परिवर्तन और बार-बार आने वाले सूखे ने भी इस शहर को उजाड़ने में भूमिका निभाई। कुछ मान्यताओं के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं को दैवीय संकेत मानकर लोग इस क्षेत्र को छोड़कर चले गए। आज कालीबंगा के अवशेष एक उन्नत लेकिन लुप्त सभ्यता की कहानी कहते हैं, जो प्रकृति पर अत्यधिक निर्भर थी।
तक्षशिला (Takshashila) प्राचीन भारत का एक अत्यंत प्रसिद्ध नगर और विश्व का पहला महान शिक्षा केंद्र माना जाता है। यह आज के पाकिस्तान में स्थित था और ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी से लेकर कई सदियों तक ज्ञान, व्यापार और राजनीति का बड़ा केंद्र रहा। यहाँ चाणक्य जैसे आचार्य और चंद्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) जैसे शासक शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। तक्षशिला में आयुर्वेद, राजनीति, युद्धकला और दर्शन की पढ़ाई होती थी, जिससे इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली।
तक्षशिला के खत्म होने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से लगातार विदेशी आक्रमण, खासकर हूणों के हमले, इस शहर के विनाश का प्रमुख कारण माने जाते हैं। इन आक्रमणों ने विश्वविद्यालयों, मठों और नगर संरचनाओं को नष्ट कर दिया। इसके साथ ही सत्ता परिवर्तन और व्यापार मार्गों के बदलने से भी शहर की अहमियत घटती चली गई। कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि ज्ञान की अवहेलना और राजनीतिक अस्थिरता इसके पतन का संकेत बनी। आज तक्षशिला के खंडहर एक महान लेकिन लुप्त हो चुके ज्ञान-नगर की कहानी सुनाती है।
पुमपुहार (Pumpuhar), जिसे कावेरीपट्टनम भी कहा जाता है, प्राचीन तमिलनाडु का एक अत्यंत समृद्ध बंदरगाह था। यह चोल साम्राज्य की राजधानी और समुद्री व्यापार का बड़ा केंद्र माना जाता था। संगम साहित्य के अनुसार यहाँ विदेशी व्यापारी आते थे, विशाल बाजार, सुंदर सड़कें और उन्नत नगर व्यवस्था मौजूद थीं। यह शहर कला, संस्कृति और व्यापार का संगम था। पुमपुहार के गायब होने के पीछे सबसे बड़ा कारण समुद्री आपदा माना जाता है।
ऐतिहासिक और साहित्यिक स्रोत बताते हैं कि एक भीषण सुनामी या समुद्र के जलस्तर में अचानक वृद्धि के कारण शहर का बड़ा हिस्सा समुद्र में समा गया। कुछ विद्वान इसे भूकंप से जुड़ी प्राकृतिक घटना भी मानते हैं। लोक मान्यताओं में कहा जाता है कि शासकों के अहंकार और अधर्म के कारण प्रकृति ने शहर को दंड दिया। आज समुद्र के भीतर मिले अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि पुमपुहार कभी एक जीवंत और भव्य नगर था, जो समय और प्रकृति के आगे टिक न सका।