इस लेख में राउलाने मेला (Raulane Mela) क्या है और क्यों मनाया जाता है, इसका सरल और पूरा विवरण है।
इसमें बताया गया है कि सौणी नाम की आत्माएँ कैसे सर्दियों में गाँव की रक्षा करती हैं और त्योहार में उन्हें कैसे विदा किया जाता है।
लेख में मेले की परंपराएँ, नृत्य, वेशभूषा, धार्मिक अनुष्ठान और इसके सांस्कृतिक महत्व को आसान भाषा में समझाया गया है।
राउलाने मेला क्या है?
राउलाने मेला हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के किन्नौर क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक बहुत ही पुराना और खास त्योहार है। यह मेला लगभग पाँच दिनों तक चलता है और इसे सर्दियों के अंत पर मनाया जाता है। किन्नौर जैसी ठंडी जगहों में सर्दियाँ बहुत कठिन होती हैं, इसलिए लोग मानते हैं कि इन दिनों कुछ दिव्य आत्माएँ जिन्हें सौणी कहा जाता है, उनके गाँव की रक्षा करती हैं। जब सर्दियाँ खत्म होती हैं, तो लोग इन सौणी आत्माओं का धन्यवाद करते हैं और उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करते हैं। यही परंपरा राउलाने मेले की असली पहचान है।
सौणी कौन होते हैं?
किन्नौरी लोककथाओं में सौणी को आसमान से आने वाली दिव्य आत्माएँ माना जाता है। माना जाता है कि जब चारों तरफ बर्फ जम जाती है और रास्ते बंद हो जाते हैं, तब यही सौणी लोग, जानवर, और यात्रियों की रक्षा करते हैं। वे प्रकृति के रक्षक माने जाते हैं। इसलिए Raulane Mela के दौरान लोग इन दिव्य संरक्षकों का पूरा सम्मान करते हैं। यह त्योहार सिर्फ पूजा नहीं है, बल्कि यह लोगों के उन विश्वासों को भी दिखाता है जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं।
राउला और राउलाने: मेले के मुख्य पात्र
राउलाने मेले में सबसे खास भूमिका दो पुरुष निभाते हैं, जिन्हें राउला (दूल्हा) और राउलाने (दुल्हन) कहा जाता है। भले ही दोनों पात्र पुरुष निभाते हैं, पर वे सौणी आत्माओं का रूप माने जाते हैं।
इनकी वेशभूषा बहुत अनोखी होती है। वे पूरे शरीर को कपड़ों से ढक लेते हैं, ऊनी कपड़े, लंबे ओवरकोट, मोटे दस्ताने और ऐसा मुखौटा पहनते हैं जिससे उनका चेहरा बिल्कुल दिखाई नहीं देता। उनका लुक इतना रहस्यमयी होता है कि उन्हें देखकर ही लगता है जैसे कोई स्वर्गिक प्राणी गाँव में आया हो।
जब वे गाँव की गलियों में ड्रम और ढोल की आवाजों के बीच चलते हैं, तो पूरा माहौल एकदम जादुई बन जाता है। बच्चे, बुज़ुर्ग, और महिलाएँ सब इन्हें देखने के लिए इकट्ठा होते हैं।
मेले की शोभायात्रा और धार्मिक अनुष्ठान
Raulane Mela का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी शोभायात्रा होती है। राउला और राउलाने गाँववालों के साथ नाचते-गाते हुए पूरे गाँव में घूमते हैं। लोग ढोल, नगाड़े और पारंपरिक किन्नौरी संगीत के साथ इस यात्रा को बेहद खास बनाते हैं।
यह शोभायात्रा आखिर में नागिन नारायण मंदिर पर पहुँचती है, जहाँ एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है। यहाँ राउला और राउलाने अपनी रहस्यमयी नृत्य-क्रिया करते हैं, जिसे देखने के लिए पूरा गाँव इकट्ठा होता है। यह नृत्य किसी साधारण नाच की तरह नहीं होता, बल्कि इसे आत्माओं और मनुष्यों के बीच एक पवित्र संवाद माना जाता है।
अंत में, दोनों पात्र प्रतीकात्मक रूप से गाँव से विदा हो जाते हैं, जो यह दिखाता है कि अब सौणी आत्माएँ स्वर्ग लौट रही हैं और गर्मियों का मौसम आने वाला है।
क्यों खास है राउलाने मेला?
राउलाने मेला (Raulane Mela) सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह किन्नौर की संस्कृति, आस्था और प्रकृति के साथ वहाँ के लोगों के रिश्ते का सुंदर प्रतीक है। यह त्योहार बताता है कि लोग वातावरण के साथ कैसे तालमेल बनाकर रहते हैं।
यह मेला बिल्कुल अप्रचलित या बदला हुआ नहीं है। कई त्योहार समय के साथ बदल जाते हैं, पर राउलाने मेला आज भी अपने पुराने स्वरूप में ही मनाया जाता है। यही इसकी सबसे सुंदर बात है। यह गाँववालों को अपनी पहचान, अपनी जड़ों और अपनी मान्यताओं से जोड़कर रखता है।
साथ ही, यह मेला मौसम के बदलने और खेती-बाड़ी शुरू होने का भी संकेत देता है। यानी यह त्योहार एक नई शुरुआत का प्रतीक भी है।
निष्कर्ष
Raulane Mela किन्नौर की उस सांस्कृतिक धरोहर का सबसे बड़ा उदाहरण है जहाँ प्रकृति, आस्था और परंपरा एक साथ चलती हैं। सर्दियों के रक्षक सौणी आत्माओं को सम्मान देकर विदा करने की यह परंपरा न सिर्फ सुंदर है, बल्कि यह हमें प्रकृति से जुड़कर जीने की कला भी सिखाती है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि मौसम, धरती, और देवताओं के साथ हमारा रिश्ता कितना गहरा है।
अगर आप संस्कृति, लोककथाओं और अनोखी परंपराओं को समझना चाहते हैं, तो राउलाने मेला देखने का अनुभव कभी नहीं भूलेंगे।
RH