Deccan Queen : शुरुआत में इसके दो रैक चलाए जाते थे, जिनमें केवल सात कोच हुआ करते थे। (Wikimedia Commons) 
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देश की पहली लक्जरी ट्रेन, पहले नहीं थी भारतीयों को सफर करने की अनुमति

यह देश की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक इंजन का इस्तेमाल किया गया था। इतना ही नहीं बल्कि यह भी पहला ही मौका था, जब किसी ट्रेन में यात्रियों की सुविधा के लिए फर्स्ट और सेकंड क्लास में चेयर कारों की शुरुआत हुई थी।

न्यूज़ग्राम डेस्क

Deccan Queen : साल 1930 यानी अब से 94 साल पहले देश की पहली डीलक्स ट्रेन डेक्कन क्वीन की शुरुआत हुई थी। उस वक्त पुणे को डेक्कन कहा जाता था, इसी कारण मुंबई-पुणे के बीच शुरू हुई इस ट्रेन का नाम डेक्कन क्वीन या दक्कन की रानी पड़ गया था। लक्जरी सुविधाओं से लैस होने के साथ - साथ यह भारत की पहली सुपरफास्ट ट्रेन भी है, जिसे आज मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस से पुणे के लिए चलाया जा रहा है।

केवल 7 कोच से हुई थी शुरू

शुरुआत में इसके दो रैक चलाए जाते थे, जिनमें केवल सात कोच हुआ करते थे। एक का रंग सिल्वर तथा दूसरी रॉयल ब्लू कलर में थी। कोच के अंदर मौजूद फ्रेम्स को इंग्लैंड में बनाया गया था। जबकि इसकी बॉडी मुंबई स्थित वर्कशॉप में डेवलप की गई थी। डेक्कन क्वीन सिर्फ फर्स्ट और सेकंड क्लास में ही मौजूद थी। जब साल 1949 में फर्स्ट क्लास को बंद कर दिया गया, तब पैसेंजर्स की बढ़ती डिमांड के कारण साल 1955 में ट्रेन में थर्ड क्लस श्रेणी भी जोड़ी गई। ऐसे में, कोच की संख्या भी 7 से बढ़कर 12 हो गई और आज इसे 17 कोच के साथ चलाया जा रहा है।

इस ट्रेन में सिर्फ अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों और व्यवसायियों को ही सफर करने की इजाजत थी (Wikimedia Commons)

इलेक्ट्रिक इंजन से चलने वाली पहली ट्रेन

आपको जानकर हैरानी होगी कि यह देश की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक इंजन का इस्तेमाल किया गया था। इतना ही नहीं बल्कि यह भी पहला ही मौका था, जब किसी ट्रेन में यात्रियों की सुविधा के लिए फर्स्ट और सेकंड क्लास में चेयर कारों की शुरुआत हुई थी। कहा जाता है कि डेक्कन क्वीन देश की एकमात्र ऐसी ट्रेन है, जिसमें पैसेंजर्स के लिए बैठ कर खाना खाने के लिए टेबल कुर्सी वाली बोगी है। यहां एक बार में 32 पैसेंजर्स के बैठने की व्यवस्था है। इसके अलावा यहां माइक्रोवेव, पेंट्री और डीप फ्रीजर की सुविधा भी है।

इस ट्रेन से केवल अंग्रेज करते थें सफर

इस ट्रेन में सिर्फ अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों और व्यवसायियों को ही सफर करने की इजाजत थी, ऐसे में जब भारतीयों को अनुमति न होने के कारण धीरे-धीरे इसमें यात्रियों की संख्या घटने लगी, तो रेलवे को लाभ दिलाने के मकसद से 1943 में भारतीय नागरिकों को भी इसमें यात्रा की अनुमति दे दी गई। इसके बाद यात्रियों की संख्या में इजाफा हुआ और बाद में इसे साप्ताहिक से दैनिक ट्रेन में भी तब्दील कर दिया गया। आपको बता दें, पहली बार इसी ट्रेन में महिलाओं के लिए अलग कोच भी लगाया गया था।

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