सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस संधि को बदला जाए? [Sora Ai] 
इतिहास

सिंधु जल संधि: नेहरू का शांति दांव या रणनीतिक भूल?

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत और पाकिस्तान जैसे दो दुश्मन देशों के बीच एक ऐसी संधि भी है जो 60 सालों से ज्यादा समय से बिना टूटे चली आ रही है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं “सिंधु जल संधि” की, जो दुनिया की सबसे सफल जल संधियों में मानी जाती है। पर अब यह संधि विवादों के घेरे में है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस संधि को बदला जाए?

न्यूज़ग्राम डेस्क

क्या आपने कभी सोचा है कि भारत और पाकिस्तान जैसे दो दुश्मन देशों के बीच एक ऐसी संधि भी है जो 60 सालों से ज्यादा समय से बिना टूटे चली आ रही है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं “सिंधु जल संधि” (“Indus Water Treaty”) की, जो दुनिया की सबसे सफल जल संधियों में मानी जाती है। पर अब यह संधि विवादों के घेरे में है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस संधि को बदला जाए? क्या पाकिस्तान इसका गलत फायदा उठा रहा है? सिंधु जल संधि (“Indus Water Treaty”) एक ऐसा उदाहरण है जहाँ पानी जैसे संसाधन को लेकर दो दुश्मन देश भी आपसी समझौते से शांति बनाए रख सके। पर आज की बदलती राजनीतिक और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ इस संधि को चुनौती दे रही हैं।

क्या है सिंधु जल संधि?

सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को हुई एक बेहद अहम समझौता है। इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान (President Ayub Khan) ने हस्ताक्षर किए थे। इसका उद्देश्य था कि दोनों देशों के बीच नदियों के पानी को लेकर झगड़े न हों और जल का बंटवारा स्पष्ट रूप से तय हो जाए। इस संधि के तहत तय हुआ कि सिंधु नदी प्रणाली की तीन पश्चिमी नदियों जैसे झेलम, चिनाब और सिंधु का पानी पाकिस्तान को मिलेगा, जबकि तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत उपयोग करेगा। भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग का अधिकार दिया गया, जैसे कि सिंचाई, पीने का पानी और जलविद्युत उत्पादन।

इस संधि को अपनाने का मुख्य कारण था कि 1947 के विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जल वितरण (Water Division) को लेकर विवाद लगातार बढ़ रहा था। दोनों देशों की कृषि और जनजीवन इन नदियों पर निर्भर था, इसलिए एक स्पष्ट समझौता करना ज़रूरी हो गया। इस समझौते का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) के बीच युद्ध और तनाव की स्थिति के बावजूद यह संधि आज भी लागू है। इसे दुनिया की सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय जल संधियों में गिना जाता है, क्योंकि इसने दोनों देशों के बीच जल विवाद को नियंत्रित रखा।

संधि की ज़रूरत क्यों पड़ी ?

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि 1947 में आज़ादी और बँटवारे के बाद जल वितरण का बड़ा संकट खड़ा हो गया था। सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियाँ पंजाब और कश्मीर से होकर गुजरती हैं, लेकिन इनका पानी पाकिस्तान की ज़मीन को सींचता था। जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए, तो नदियों का नियंत्रण भारत के पास रहा, जबकि पानी पर निर्भरता पाकिस्तान की ज़्यादा थी।

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि [X]

भारत ने एक बार पाकिस्तान की नहरों का पानी रोक भी दिया था, जिससे वहाँ कृषि और पीने के पानी की भारी समस्या पैदा हो गई। इसी वजह से पानी को लेकर दोनों देशों में लगातार विवाद बढ़ने लगा और तनाव युद्ध जैसी स्थिति तक पहुँच गया। इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने के लिए विश्व बैंक की मध्यस्थता में दोनों देशों ने बातचीत की और 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए।यानी, यह संधि दोनों देशों के बीच जल विवाद को खत्म करने और आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी थी।

जब 1960 में हुई थी इस संधि को लेकर बहस

जब नेहरू ने 30 नवंबर, 1960 को लोकसभा में संधि पेश की, तो सभी दलों के सांसदों ने इसकी कड़ी आलोचना की। 150 मिनट तक बहस चली, जिसमें सदस्यों ने सरकार पर 'तुष्टीकरण और समर्पण' का आरोप लगाया। कांग्रेस सांसद एचसी माथुर ने कहा कि राजस्थान को 'बहुत बुरी तरह से धोखा दिया गया' है, क्योंकि उसकी नहर परियोजनाओं को 5 मिलियन एकड़-फीट पानी नहीं मिलेगा। इकबाल सिंह ने चेतावनी दी कि पंजाब में अनाज उत्पादन कम हो जाएगा।

जब नेहरू ने 30 नवंबर, 1960 को लोकसभा में संधि पेश की [Sora Ai]

एसी गुहा ने कहा कि सिंधु बेसिन की भारत में 26 मिलियन एकड़ जमीन में से केवल 19% की सिंचाई होती है, जबकि पाकिस्तान की 39 मिलियन एकड़ जमीन में से 54% की सिंचाई होती है। फिर भी, भारत को केवल 20% पानी मिला। उन्होंने कहा, 'जमीन के आधार पर, भारत को कम से कम 40% पानी मिलना चाहिए था।’ अशोका मेहता ने संधि को 'दूसरा विभाजन' ('Second Partition') बताया। उन्होंने कहा कि देश को उन लोगों ने धोखा दिया है जिन पर उसे भरोसा था। तब अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने और बहस करने की बात कही। उन्होंने सद्भावना बनाने के लिए संसाधनों को देने के फैसले पर सवाल उठाया। केवल कुछ लोगों ने नेहरू का समर्थन किया। इनमें एस कृष्णस्वामी, जो मद्रास (अब तमिलनाडु) के कांचीपुरम से कांग्रेस सांसद थे, ने संधि को 'अत्यधिक रचनात्मक और ऐतिहासिक रूप से मार्शल योजना के बाद दूसरा सबसे बड़ा सहकारी प्रयास' बताया। वहीं सदन को जवाब देते हुए, नेहरू ने कहा कि वे 'दुखी और निराश' हैं। उन्होंने इसे 'अत्यंत संकीर्ण मानसिकता' बताया।

Indus Water Treaty [X]

उन्होंने कहा कि संधि 'उच्च सिद्धांत' का मामला है। यह 12 साल की कड़ी बातचीत का नतीजा है। उन्होंने कहा कि संसद को 'समय-समय पर महत्वपूर्ण घटनाक्रमों' के बारे में बताया गया था। 83 करोड़ रुपये के भुगतान पर उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा भारत के इंजीनियरों ने निकाला था। पाकिस्तान ने 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की मांग की थी। सिंचाई मंत्री हाफिज मोहम्मद इब्राहिम ने सांसदों को बताया कि भारत के वार्ताकारों ने 'राष्ट्रीय हितों के लिए कड़ी लड़ाई लड़ी।’ नेहरू ने भारतीय इंजीनियरों की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने बातचीत के दौरान 'बहुत मेहनत' की और 'अच्छे फैसले' लिए। उन्होंने सांसदों को याद दिलाया कि 1948 का समझौता केवल एक समझ थी, संधि नहीं। उन्होंने कहा, 'कुछ लोग कहते हैं कि हमने बहुत सारा पानी दे दिया, लेकिन हमें बड़ा चित्र देखना चाहिए। सहयोग के बिना, कोई भी देश सही मायने में तरक्की नहीं कर सकता।’

क्यों फिर से विवादों में आ गई सिंधु जल संधि?

साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसका मक़सद दोनों देशों के बीच पानी को लेकर झगड़े को ख़त्म करना था। इस संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु बेसिन की लगभग 80% नदियों का पानी दिया गया, जबकि भारत के हिस्से सिर्फ तीन नदियों का पानी आया। अब, इतने सालों बाद, यह संधि फिर से विवाद का विषय बन गई है।

साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी। [X]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह संधि भारत के किसानों और रणनीतिक हितों के ख़िलाफ़ थी। मोदी ने इसे नेहरू की "ऐतिहासिक गलती" बताया और कहा कि नेहरू ने एक तरह से देश का दूसरा विभाजन किया। बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि यह संधि बिना संसदीय मंज़ूरी के लागू की गई थी। कुछ नेताओं का आरोप है कि नेहरू ने अमेरिका और विश्व बैंक के दबाव में यह संधि की और पाकिस्तान को न सिर्फ़ पानी, बल्कि 83 करोड़ रुपये भी दिए, जिसकी कीमत आज हज़ारों करोड़ हो चुकी है। आलोचकों का कहना है कि इससे भारत का कृषि और रणनीतिक लाभ कमजोर हो गया और किसानों के हितों को नुकसान पहुँचा। यानी, 1960 में जिस मुद्दे को निपटाने के लिए यह संधि हुई थी, वही अब फिर से राजनीतिक बहस और विवाद का बड़ा कारण बन गया है।

अंतरराष्ट्रीय नजरिया

संधि जल समझौते को पूरे विश्व भर में सबसे अधिक टिकाऊ संधि के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह एक ऐसी संधि थी भारत और पाकिस्तान के बीच जो कि इन दोनों देशों के बीच हुए तीन युद्धों के कारण भी नहीं टूटा था । इसे कई बार टिकाऊ कूटनीति का उदाहरण भी दिया जाता है परंतु अभी हाल की राजनीति एवं आतंकी हमले को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह चिंता जताई जा रही है कि कहीं यह संधि टूट न जाए जिससे पूरे दक्षिण एशिया की जल सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

संधि जल समझौते को पूरे विश्व भर में सबसे अधिक टिकाऊ संधि के रूप में जाना जाता है [Sora Ai]

क्या भारत संधि को खत्म कर सकता है?

तकनीकी रूप से, भारत इस संधि को एकतरफा खत्म नहीं कर सकता क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसमें विश्व बैंक की गारंटी शामिल है। हालांकि, भारत के पास यह अधिकार है कि वह पश्चिमी नदियों के पानी का पूरा उपयोग करे – जैसे कि अधिक डैम बनाना, पानी को स्टोर करना आदि – बशर्ते वह संधि की शर्तों के अनुसार हो।

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हालिया घटनाएं एवं संधि पर इसके प्रभाव

अभी हाल ही में जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद एनडीए सरकार द्वारा संधि जल समझते को निलंबित कर दिया गया है एवं इसके तहत किए गए प्रत्येक बातों को मारने से इनकार कर दिया गया है और इसके साथ ही संधि जल समझौता को लेकर राजनीति एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई है। बीजेपी के द्वारा नेहरू द्वारा किए गए इस जल संधि को भारत का सबसे बड़ा भूल बताया गया । नरेंद्र मोदी ने बताया कि नेहरू ने एक बार देश बांट दिया और दूसरी बात 80% से भी ज्यादा पानी पाकिस्तान को देकर भारत की कृषि अर्थव्यवस्था एवं किसानों दुर्दशा को खराब किया है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कटाक्ष करते हुए यह बोला कि यह संधि न केवल भारत के हित के खिलाफ थे बल्कि संसद की अवमानना भी थी क्योंकि यह संधि संसद के आदेशों के विरुद्ध जाकर की गई थी। [Rh/SP]

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