Leech : जोंक फाइलम एनेलिडा और क्लास हिरुडीनिया के उभयलिंगी परजीवी हैं। जोंक की 600 से अधिक प्रजातियाँ हैं। इनमें से एक अल्पसंख्यक रक्तभक्षी हैं। ऐतिहासिक रूप से, जोंक का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता रहा है, जिसका सबसे पहला प्रमाण 1500 ईसा पूर्व दर्ज किया गया है।
अधिकांश जोंक मीठे पानी के आवासों में रहते हैं, जबकि कुछ प्रजातियाँ स्थलीय या समुद्री वातावरण में पाई जा सकती हैं। सबसे प्रसिद्ध प्रजातियाँ, जैसे कि औषधीय जोंक, हिरुडो मेडिसिनलिस , हेमाटोफैगस हैं जोंक का उपयोग प्राचीन काल से लेकर 19वीं शताब्दी तक चिकित्सा में रोगियों से रक्त निकालने के लिए किया जाता रहा है।
जोंक का शरीर 32 टुकड़ों मे बंटा हुआ होता है और प्रत्येक टुकड़े का अपना दिमाग होता है। दरअसल, ये 32 दिमाग नहीं होते हैं ब्लकि एक ही दिमाग होता है जो 32 टुकड़ों में बंटा हुआ होता है। जोंक के 3 जबड़े होते हैं और प्रत्येक जबड़े मे 100 दांत होते हैं। इन्हीं दांतों की मदद से वो इंसान की बॉडी में से खून चूसती है। एक जोंक तकरीबन अपने वजन से 10 गुना ज्यादा खून चूस सकती है।
जोंक की 5 जोड़ी यानी 10 आंखे होती है। हालांकि इसकी आंखे भी साधारण ही होती है, जिनसे ये पहचानते है की अंधेरा है या उजाला है, गति कितनी है और खुरदुरा आकार है। एक जोंक का शरीर 32 टुकड़ों में बंटा होने के बावजूद भी जुड़ा रहता है। प्रत्येक टुकड़े का अपना तंत्रिका गैन्ग्लिया होता है, जो अगले टुकड़े से जुड़ा हुआ होता है।
लीच थेरेपी एक अनोखी उपचार पद्धति है जिसे हिरुडोथेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। लीच थेरेपी बहुत लंबे समय से चल रहा है। प्राचीन मिस्र, भारत, अरब और ग्रीक जैसे देशों में त्वचा रोगों, प्रजनन और दांत से जुड़ी समस्याओं, तंत्रिका तंत्र में परेशानी और सूजन को दूर करने के लिए इस थेरेपी का उपयोग किया जाता है। लीच यानी जोंक हीमेटोफैगस जीव हैं। इसके लार और अन्य स्रावों में कई जैविक रूप से सक्रिय यौगिक पाए जाते हैं। ये यौगिक कई बीमारियों के इलाज में कारगर होते हैं।