Mizuko Kuyo : सानज़ू नदी के तट पर साई नो कवारा नामक स्थान पर मूर्ती के रूप में स्थापित किया जाता है। (Wikimedia Commons) 
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जापान में जन्म से पहले मर गए बच्चे के लिए किया जाता है यह अनुष्ठान

न्यूज़ग्राम डेस्क

Mizuko Kuyo : एक मां के लिए उसका बच्चा बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और ऐसे में एक बच्चे को खोना बहुत दर्दनाक होता है, भले ही वह बच्चा अभी पैदा भी नहीं हुआ हो तब भी यह दर्द असहनीय होता है। असल में मिसकैरेज, अबॉर्शन या अन्य किसी कारण से अपने बच्चे को खोने वाले माता पिता इस दर्द को अच्छे से समझते हैं। ऐसे जोड़े के लिए जापान में मिजुको कुयो नाम का अनुष्ठान है, जिसकी परंपरा को स्थानीय लोग सदियों से निभाते आ रहे हैं, जिसमें जन्म से पहले मर गए बच्चों का शोक मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह दर्दनाक है।

अनुष्ठान में उनको प्रसाद चढ़ाया जाता है साथ ही लाल रंग के कपड़े भी पहने जाए जाते हैं। (Wikimedia Commons)

क्या है मिजुको कुयो?

amusingplanet की रिपोर्ट के अनुसार, जापान में अबॉर्शन, मिसकैरेज और जबरन गर्भपात या अन्य किसी तरह से बच्चे को खोने पर शोक मनाने के लिए एक पारंपरिक बौद्ध समारोह होता है, जिसे मिजुको कुयो नाम दिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ वॉटर चाइल्ड मेमोरियल सर्विस है। यह पूरे जापान के मंदिरों में और लोगों के घरों में निजी तौर पर भी किया जाता है।

ऐसे बच्चे स्वर्ग नहीं जा पाते

बौद्ध विश्वास के अनुसार, जो बच्चा पैदा होने से पहले मर जाता है। वह स्वर्ग नहीं जा सकता, क्योंकि उसे कभी भी अच्छे कर्मों का पुण्य करने का अवसर नहीं मिला, इसलिए ऐसे बच्चों को सानज़ू नदी के तट पर साई नो कवारा नामक स्थान पर मूर्ती के रूप में स्थापित किया जाता है। उस दर्द के लिए जो उन्होंने अपने माता-पिता को पहुंचाया साथ ही लोग अपना दुख और पश्चाताप भी व्यक्त करते हैं।

जापान, चीन और थाइलैंड के सिवाय पूरी दुनिया में इस तरह का अनुष्ठान कहीं भी नहीं किया जाता है। (Wikimedia Commons)

बोधिसत्व जिज़ो लेकर जाते है परलोक

असल में इन मूर्तियों को बोधिसत्व जिज़ो का रूप माना जाता है। अनुष्ठान में उनको प्रसाद चढ़ाया जाता है साथ ही लाल रंग के कपड़े भी पहने जाए जाते हैं। बोधिसत्व जिज़ो, एक देवता जिसके बारे में यह मान्यता है कि वह मृत भ्रूणों और बच्चों को परलोक में लेकर जाते है। बोधिसत्व जिज़ो को इन बच्चों का संरक्षक बताया जाता है। वह इन मृत बच्चों पर नजर रखता है और उनको राक्षसों से बचाता है और उनको अपने साथ स्वर्ग की यात्रा करने में भी मदद करता है। जापान, चीन और थाइलैंड के सिवाय पूरी दुनिया में इस तरह का अनुष्ठान कहीं भी नहीं किया जाता है।

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