IIT Mandi ने फैटी लीवर और टाइप-2 मधुमेह के बीच जैव रसायन संबंधों का लगाया पता
IIT Mandi ने फैटी लीवर और टाइप-2 मधुमेह के बीच जैव रसायन संबंधों का लगाया पता  IANS
शोध और अध्ययन

IIT Mandi ने फैटी लीवर और टाइप-2 मधुमेह के बीच जैव रसायन संबंधों का लगाया पता

न्यूज़ग्राम डेस्क

IIT Mandi के शोधकर्ताओं ने लीवर में वसा जमा होने से जुड़े रोग और टाइप-2 मधुमेह (टी2डीएम) के बीच जैव रसायन संबंधों का पता लगाया है। इस खोज से ऐसी नयी तकनीक विकसित की जा सकेगी जिससे गैर अल्कोहल वसायुक्त लीवर (एनएएफएलडी) वाले लोगों में मधुमेह के खतरों का पता लगाया जा सकेगा। इस शोध के परिणामों से लीवर में वसा जमा होने के कारण होने वाले मधुमेह के लिये नयी जांच एवं चिकित्सकीय युक्ति तैयार की जा सकेगी या वसा जमा होने के कारण प्रेरित मधुमेह को उत्क्रमित किया जा सकेगा। यह शोध भारत के लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में एनएएफएलडी तेजी से बढ़ रहा है और हाल के सर्वेक्षण में यह बात प्रदर्शित हुई है कि 40 प्रतिशत भारतीय वयस्क इससे प्रभावित हैं। एनएएफएलड अक्सर टाइप-2 मधुमेह से जोड़ कर देखा जाता है और करीब 5 करोड़ भारतीयों को यह दोनों रोग हैं ।

इस शोध के परिणाम 'डायबिटिज' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है। इस शोध पत्र को स्कूल आफ बायोसाइंस एंड बायोइंजिनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रोसेनजीत मंडल ने अपने सहयोगियों सुरभी डोगरा, प्रिया रावत, डा.पी विनीत डेनियल तथा सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी, कोलकाता के डा. पार्थ चक्रवर्ती तथा आईपीजीएमईआर और एसएसकेएम अस्पताल, कोलकात के डा. देवज्योति दास, सुजय के मैती, अभिषेक पॉल, डा.कौशिक दास और डा.सौविक मित्रा के सहयोग से तैयार किया है।

शोध के महत्व को रेखांकित करते हुए डा. प्रोसेनजीत मंडल ने कहा, एलएएफएलडी इंसुलीन प्रतिरोधक और टी2डीएम का स्वतंत्र रूप से पूर्वानुमान लगाता है। हालांकि एनएएफएलडी किस प्रकार से इंसुलीन का उत्सर्जन करने वाले अग्नाशयिक बीटा कोशिका के कामकाज को प्रभावित करता है, इसके बारे में पूरी तरह से स्थिति एवं समझ स्पष्ट नहीं थी। हमने बीटा कोशिका के फेल होने और लीवर पर कार्बोहाइड्रेट से उत्पन्न वसा जमा होने के बीच संबंधों का पता लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया।

बहुसंस्थागत शोध दल ने वसा खिलाये गए चूहों और एनएएफएलडी से पीड़ित मरीजों के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया। दोनों नमूनों में कैल्सियम को बांधे रखने वाले प्रोटीन पाये गए जिन्हें एस100ए6 बताया गया। यह प्रोटीन वसा युक्त लीवर द्वारा उत्सर्जित होता है और लीवर एवं अग्लाशय के बीच संवाद सेतु का काम करता है। एस100ए6 इंसुलीन उत्सर्जित करने की बीटा कोशिका क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और इस प्रकार से मौजूदा टी2डीएम को बढ़ाते हैं। जैव रसायन स्तर पर एस100ए6 अग्नाशयिक बीटा कोशिका पर उन्नत ग्लाइकेशन अंतिम उत्पाद (आरएजीई) के रिसेप्टर को सक्रिय कर देते हैं, जिससे इंसुलिन का निकलना रूक जाता है।

शोध कार्य की जानकारी देते हुए आईआईटी मंडी की सुरभी डोगरा ने कहा, हमारे शोध में एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आई कि एस100ए6 के ह्रास से इंसुलीन का निकलना और चूहों में ब्लड ग्लूकोज का नियमन बेहतर हुआ जो यह स्पष्ट करता है कि एस100ए6 एनएएफएलडी में मधुमेह के रोगनिदान शरीर क्रिया विज्ञान (पैथोफिजियोलॉजी) में योगदान करता है।

चिकित्सकीय स्तर पर यह अध्ययन यह प्रदर्शित करता है कि रक्त से प्रवाहित होने वाले एस100ए6 को हटाने से बीटा कोशिका के कामकाज के संरक्षण में मदद मिलती है। इसके साथ ही, चूंकि जिस जैव रसायन मार्ग से एस100ए6 काम करता है, उसका पता चल गया है।
(आईएएनएस/PS)

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