कई घरों में जब पुरुष (पिता या भाई) घर पर नहीं होते, तो नॉन वेज ही नहीं पकता।  (AI)
शोध और अध्ययन

महिलाओं की थाली में क्यों नहीं होती उसकी पसंद?

भारत जैसे देश में जहां भोजन को संस्कृति (Culture), परंपरा ( Tradition ) और रिश्तों ( Relationships) से जोड़ा जाता है, वहां महिलाओं के खाने और उनकी थाली की चर्चा शायद ही कभी होती है। क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाएं क्या खाना चाहती हैं, उन्हें क्या पसंद है, और वे कब खाती हैं I

Priyanka Singh

महिलाएं (Women) और खाना: इंतज़ार और त्याग

चेन्नई के रहने वाले प्रशांत बताते हैं कि उनकी मां ने ज़िंदगी भर अपने पति के खाने के बाद ही खाना खाया। नॉन वेज रविवार को बना था लेकिन मां ने खुद शाम पांच बजे खाना खाया, जब पिताजी घर लौटे। यही रिवाज़ उनकी मां ने सालों निभाया।

कई महिलाओं (Women) ने कहा कि उन्हें बचपन से ही यह सिखाया गया कि पहले परिवार, फिर खुद। खाने में भी यही सिद्धांत चलता रहा, सबको खिलाने के बाद बचा हुआ खाना। आनंदी नाम की एक महिला (Women) बताती हैं कि शादी के वक्त उनकी मां ने उन्हें सलाह दी कि खुद के लिए खाना न बनाना, सबके बाद बचा हुआ खाना ही खाना।

ससुराल में भूख और शर्म

सत्या, जो एक किसान परिवार से आती हैं, बताती हैं कि शादी के बाद जब उन्होंने एक बार दोपहर को भूख लगने पर खुद के लिए खाना बना लिया, तो सास ने कहा, "किसान के घर में कोई चार बजे खाना खाता है क्या ?" इसके बाद उन्होंने शाम को खाना ही छोड़ दिया। यह केवल एक घर की बात नहीं है। बहुत-सी महिलाओं (Women)ने बताया कि उनके हिस्से की थाली में बचा हुआ खाना आता है I खासकर मांसाहारी भोजन में, सबसे अच्छा हिस्सा पुरुषों के लिए होता है।

कई घरों में जब पुरुष (पिता या भाई) घर पर नहीं होते, तो नॉन वेज ही नहीं पकता। यानी महिलाओं (Women)की पसंद से खाने का कोई लेना-देना ही नहीं होता। तमिलनाडु के कुछ इलाकों में, जहां मातृसत्तात्मक व्यवस्था है, जैसे कयालपट्टिनम, वहां महिलाएं (Women) परिवार की मुखिया होती हैं, और वहां थोड़ा अलग माहौल देखा गया है। लेकिन यह अपवाद है, सामान्य नहीं।

महिलाओं (Women) के खान-पान को लेकर समाज केवल दो बार चिंतित होता है, पहली बार जब उन्हें पीरियड्स शुरू होते हैं, और दूसरी बार जब वे गर्भवती होती हैं।

महिलाओं (Women) के खान-पान को लेकर स्वास्थ्य की चिंता कब होता है ?

महिलाओं (Women) के खान-पान को लेकर समाज केवल दो बार चिंतित होता है, पहली बार जब उन्हें पीरियड्स शुरू होते हैं, और दूसरी बार जब वे गर्भवती होती हैं। क्युकि समाज में बच्चों के जन्म को प्राथमिकता दी जाती है, इसीलिए महिलाओं (Women)की देखभाल भी इन्हीं दो समयों में होती है। लेकिन मेनोपॉज़ (जब पीरियड्स बंद हो जाते हैं) जैसी अवस्था पर कोई ध्यान नहीं देता। पीरियड्स, मेनोपॉज़ या महिलाओं (Women) की उम्र बढ़ने के बाद खाने में क्या बदलाव होना चाहिए, इस पर कोई बात नहीं करता। समाज मानता है कि जैसे ही महिला (Women) की प्रजनन क्षमता खत्म हुई, उसकी ज़िंदगी भी खत्म हो गई।

खाना बनाना और खाना, दो अलग बातें

त्योहारों और खास मौकों पर सबसे स्वादिष्ट और पौष्टिक हिस्सा पुरुषों के लिए होता है। महिलाएं (Women) खाना पकाती हैं, परोसती हैं, लेकिन सबसे अंत में खाती हैं। कोई मर्द यह नहीं कहता कि "तुमने खाना बनाया, अब मैं परोसता हूं।" महिलाएं (Women) दही-चावल या मट्ठे के साथ बचा-खुचा खाना खाकर दिन निकाल देती हैं,और शिकायत भी नहीं करतीं।

सिनेमा और साहित्य में भी महिलाओं (Women) की 'शुद्ध' छवि

सिनेमा और किताबों में भी महिलाओं (Women) को खाना बनाते तो दिखाया जाता है, लेकिन खाते हुए नहीं। अगर खाती हैं तो केवल शाकाहारी खाना। फ़िल्म "इंग्लिश विंग्लिश" में भी ऐसा ही एक दृश्य है जहां महिला का पूरा परिचय लड्डू बनाने से होता है। हान कांग की नोबेल विजेता किताब द वेजिटेरियन में भी पति जब पत्नी के घर को याद करता है तो उसे सिर्फ़ मांस की खुशबू, रसोई की आवाज़ें और महिलाओं (Women) की बातें याद आती हैं, यानी खाना और महिला (Women) की भूमिका बस इतनी ही मानी जाती है।

सिनेमा और किताबों में भी महिलाओं (Women) को खाना बनाते तो दिखाया जाता है, लेकिन खाते हुए नहीं।

सोशल मीडिया: दिखावे की दुनिया

आजकल सोशल मीडिया पर महिलाओं (Women) के खाना बनाते हुए वीडियो वायरल होते हैं। लेकिन वहां भी वे अपने लिए नहीं, पति के लिए खाना बनाती हैं। बदलाव की उम्मीद सोशल मीडिया से थी, लेकिन वही पुराने जेंडर रोल्स बार-बार दिखाए जा रहे हैं।

भूख और एनीमिया ,आंकड़ों की सच्चाई

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFPUSA) के मुताबिक, दुनिया में 69 करोड़ भूख से जूझ रहे लोगों में 60% महिलाएं (Women) हैं। पारंपरिक सोच है कि महिलाएं (Women) सबसे अंत में खाएं और संकट के समय अपना हिस्सा भी दूसरों को दें। भारत का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, 2019-2021) बताता है कि 15-49 साल की उम्र की 53% महिलाएं(Women) एनीमिया से ग्रस्त हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 22.7% है। गर्भवती महिलाओं(Women) में एनीमिया की दर 50% से भी ज़्यादा है।

डॉ. मीनाक्षी बजाज बताती हैं कि किशोरावस्था, गर्भावस्था और मेनोपॉज़ में महिलाओं (Women) को ज़्यादा पोषण की ज़रूरत होती है, जैसे कैल्शियम, विटामिन D और फाइबर, लेकिन इस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।

निष्कर्ष

यह रिपोर्ट बताती है कि समाज में महिलाओं (Women) की थाली पर चर्चा न होना कोई छोटी बात नहीं है। यह हमारी सोच, परंपराओं और व्यवस्था का गहरा हिस्सा है। समय आ गया है कि हम महिलाओं (Women) के खाने, उनकी पसंद और उनके स्वास्थ्य को गंभीरता से लें। महिलाओं (Women) की थाली में सिर्फ़ खाना नहीं, सम्मान, बराबरी और आत्मनिर्भरता भी होनी चाहिए। [Rh/PS]

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