एक ऐसा अंतिम संस्कार जिसमें आत्मा को भेजा जाता है सीधा स्वर्ग। [Wikimedia Commons] 
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‘स्काई बुरियल’: एक ऐसा अंतिम संस्कार जो आत्मा को स्वर्ग भेजता है?

एक ऐसा अंतिम संस्कार जिसमें आत्मा को भेजा जाता है सीधा स्वर्ग। आमतौर पर जब किसी की मृत्यु होती है तो या तो उसे जलाया जाता है या फिर उसे दफना दिया जाता है। जलाने की परंपरा हिंदू धर्म में है और दफनाने की परंपरा मुस्लिम और ईसाई धर्म में। लेकिन अंतिम संस्कार की एक ऐसी परंपरा भी है जिसमें ना तो दफनाया जाता है ना ही जलाया जाता है बल्कि उसे खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया जाता है

न्यूज़ग्राम डेस्क

एक ऐसा अंतिम संस्कार जिसमें आत्मा को भेजा जाता है सीधा स्वर्ग। आमतौर पर जब किसी की मृत्यु होती है तो या तो उसे जलाया जाता है या फिर उसे दफना दिया जाता है। जलाने की परंपरा हिंदू धर्म में है और दफनाने की परंपरा मुस्लिम और ईसाई धर्म में। लेकिन अंतिम संस्कार की एक ऐसी परंपरा भी है जिसमें ना तो दफनाया जाता है ना ही जलाया जाता है बल्कि उसे खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इस परंपरा के जरिए अंतिम संस्कार करने पर मनुष्य की आत्मा सीधा स्वर्ग जाती है। यह परंपरा कहीं और नहीं बल्कि तिब्बत की ही प्राचीन परंपरा है जिसे आज भी लोग अपनाते हैं। पर क्या ये परंपरा सच में आध्यात्म से जुड़ी है या सिर्फ एक प्राचीन रिवाज़? और अमेरिका जैसे देशों में इसे बैन क्यों किया गया? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी अंतिम संस्कार की पूरी कहानी।

क्या है तिब्बती स्काई बुरियल?

तिब्बत में अंतिम संस्कार की विवादित (Controversial) परंपरा है जिसे ‘स्काई बुरियल’ ('Sky Burial') या तिब्बती भाषा में झातोर (Jhator) कहा जाता है। इस परंपरा के अनुसार मृतक शरीर को तिब्बत की ऊंचे पठारों पर टुकड़े-टुकड़े कर छोड़ दिया जाता है ताकि गिद्ध या अन्य पक्षी इसका सेवन कर सके। ऐसा कहा जाता है कि तिब्बती परंपरा में मृतक शरीर को जलाने या दफनाने की बजाय प्रकृति को वापस लौटा दिया जाता है, और इस प्रक्रिया के करण मृतक शरीर की आत्मा सीधे स्वर्ग में ही जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक तिब्बत में पिछले 1100 सालों से ज्यादा वक्त से स्काई बुरियल की परंपरा चलती आ रही है। हिंदू धर्म (Hindu Religion) की तरह बौद्ध धर्म (Buddhism) के अनुयायी भी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। वे मानते हैं कि मृत्यु के बाद शरीर का कोई विशेष मतलब नहीं रह जाता, पर ऊंचाई पर अंतिम संस्कार से मरने वाले के स्वर्ग जाने का रास्ता खुल जाता है।

तिब्बत में अंतिम संस्कार की विवादित (Controversial) परंपरा है जिसे ‘स्काई बुरियल’ या तिब्बती भाषा में झातोर (Jhator) कहा जाता है। [Wikimedia Commons]

क्यों है तिब्बत में अंतिम संस्कार की ऐसी परंपरा?

हर धर्म की अपनी मान्यता होती है। वैसे तो बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोग बहुत सारे हैं लेकिन सभी इन परंपराओं को फॉलो नहीं करते केवल तिब्बत के बौद्ध ही ऐसी परंपराएं मानते हैं। कई बार किसी क्षेत्र की कोई खास परंपरा के पीछे वहां के भौगोलिक स्थिति भी उतनी ही मायने रखती है जीतने की धार्मिक महत्व। तो चलिए इसके पीछे के कारण जानते हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद आत्मा शरीर को छोड़ चुकी होती है। शरीर केवल एक ‘ख़ाली बर्तन’ है, उसका कोई भौतिक महत्व नहीं बचता । इसलिए उसे फेंकने या उसे विध्वंस करने से अच्छा है कि प्राकृतिक चक्र में उसका योगदान हो।

इसके अलावा तिब्बत की धरती समतल नहीं है। तिब्बत में पठार पाए जाते है मिट्टी बहुत कठोर होती है साथ ही जमीन जमी हुई होती है, ऐसे में शरीर को दफनाना या फिर जालना एक अच्छा विकल्प नहीं माना जाता क्योंकि वहां की धरती इसके लिए अनुकूल नहीं है। इसकी अपेक्षा तिब्बती बौद्ध प्रकृति को शरीर सौंप देना ही एक अच्छा विकल्प मानते हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की इस अनोखी प्रक्रिया के कारण जमीन, वृक्ष या हवा प्रदूषित नहीं होते। [Wikimedia Commons]

तिब्बती बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार की इस अनोखी प्रक्रिया के कारण जमीन, वृक्ष या हवा प्रदूषित नहीं होते। माना जाता है कि यह एक पारिस्थितिक रूप से संतुलित तरीका है। इन कारणों से ही कई सालों से बौद्ध भिक्षु या बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोगों का अंतिम संस्कार इन्हीं प्रक्रियाओं के द्वारा संपन्न किया जाता है।

यह माना जाता है कि यह आत्मा का शरीर छोड़कर दूसरों को पोषण देना “सबसे बड़ा दान” होता है। इसके साथ ही स्काई बुरियल की परंपरा सभी को अस्थिरता एवं मृत्यु की अनिवार्यता की याद दिलाता है ।

कैसे होती है अंतिम संस्कार की प्रक्रिया?

तिब्बती बौद्ध धर्म (Buddhism) में कई ऐसी मान्यताएं हैं जिनके बारे में अधिकतर लोगों को जानकारी ही नहीं है। अब जैसे इस अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को ही ले लीजिए यह प्रक्रिया काफी जटिल और बिल्कुल अनोखी है। इन प्रक्रियाओं के बारे में काफी कम लोगों को ही जानकारी है तो आईए जानते हैं कि तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं की अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को कैसे संपन्न किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि जब किसी बौद्ध भिक्षु की मौत हो जाती है तो उसके शरीर को एक सफेद कपड़े में बांधकर तीन-चार दिन घर के किसी कोने में रख दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान घर के सभी लोग और बौद्ध भिक्षु मंत्र उच्चारण करते हैं ताकि शरीर और आत्मा शांति से स्वर्ग की यात्रा कर सके।

शरीरों के टुकड़ों को जौ के आटे में मिलाकर किसी प्लेटफार्म या सुरंग पर रखा जाता है ताकि गिद्ध से आकर्षित हो जाए। [Wikimedia Commons]

इसके बाद एक अच्छे दिन को चुना जाता है जिसका चुनाव कोई ज्योतिषी या फिर तिब्बती परंपरा के द्वारा कोई बौद्ध भिक्षु ही करेंगे और फिर उस शरीर को तिब्बत के ऊंचे पठारों पर ले जाया जाता है, जहां चट्टानें हों। वहां भूतेश्वर मंत्र, गंध और जुगार जलाए जाते हैं, ताकि गिद्ध आ जाएँ और आत्मा मार्ग चिह्नित हो सके।

एक व्यक्ति जिसे रोग्यपा (Health Care) कहते है, उसके द्वारा मृत शरीर को टुकड़ों में काटा जाता है। इसके बाद मृत शरीरों के टुकड़ों को जौ के आटे में मिलाकर किसी प्लेटफार्म या सुरंग पर रखा जाता है ताकि गिद्ध से आकर्षित हो जाए। लोक मान्यता है कि अगर पूरी तरह से खाया नहीं गया, तो उसकी आत्मा पर प्रश्न उठ सकता है ।

अंत में परिवार या भिक्षु स्थान की पूजा करते हैं और पर्वत जगत तथा आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं ।

अमेरिका में बैन है यह परंपरा

अमेरिका जैसे कई देशों में अंतिम संस्कार के इस तरीके पर बैन है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर अमेरिका में किसी तिब्बती बौद्ध की मौत होती है और स्काई बरियल करना चाहते हैं परमिट लेकर शव तिब्बत ले आते हैं। आपको बता दें कि तिब्बती लोगों के अंतिम संस्कार का तरीका काफी हद तक पारसी लोगों से मिलता है (Zorastrians), जो शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' (The 'Tower of Silence') में छोड़ देते हैं। हालांकि पारसी, शव के टुकड़े नहीं करते।

अमेरिका जैसे कई देशों में अंतिम संस्कार के इस तरीके पर बैन है। [Wikimedia Commons]

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हर देश की अपनी अलग-अलग परंपरा होती है वैसे ही तिब्बत की अंतिम संस्कार की परंपरा थोड़ी अलग है जहां पर आत्मा को शांतिपूर्वक स्वर्ग में भेजते हैं। इसके साथ ही यह भी मानता है कि यदि शरीर के टुकड़ों को गिद्ध नहीं खाता है तो ऐसे ऐसे में उसकी आत्मा पर सवाल उठाते हैं। यह सिर्फ शव से संबंधित प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु की एक दिव्य कड़ी है, जहाँ शरीर प्रकृति में विलीन हो जाता है और आत्मा स्वतंत्र रूप से चल पड़ती है। [Rh/SP]

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