आज के समय में इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चूका हैं। सुबह उठते ही मोबाइल हाथ में लेना और दिन का अंत उसी पर करना हमारी लाइफ का हिस्सा बन गया है। ऐसे में आए दिन कई नए-नए शब्द हमारे सामने आते रहते हैं। इन्ही शब्दों में से एक है “डिजिटल अरेस्ट” (Digital Arrest)। सुनने में यह शब्द थोड़ा डरावना लगता है, जैसे कोई ऑनलाइन रहते-रहते अचानक पुलिस पकड़ लिया हो। लेकिन इसका हकीकत क्या है, यह समझना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है।
इसे अच्छे से समझने के लिए और यह कितना ख़तरनाक साबित हो सकता है ये जानने के लिए हम एक उदहारण को जानते हैं। हाल ही में दिल्ली में एक रिटायर्ड बैंककर्मी नरेश मल्होत्रा को लगभग एक महीने तक वर्चुअल कैद (Virtual Confinement) में रखा गया, “डिजिटल अरेस्ट” के नाम पर ₹23 करोड़ से ज़्यादा की ठगी हुई। इस मामले से यह सवाल उठाता है कि क्या वास्तव में “डिजिटल अरेस्ट” अस्तित्व में है, या यह सिर्फ़ एक नया धोखा है?
क्या है डिजिटल अरेस्ट ?
हम बता दें कि भारत के कानून या किसी भी देश के संविधान में “डिजिटल अरेस्ट” नाम का कोई आधिकारिक प्रावधान (Official Provision) नहीं है। पुलिस या किसी भी कानूनी एजेंसी द्वारा सीधे मोबाइल स्क्रीन पर यह बोल कर कि “आप गिरफ्तार हैं” आपको क़ैद नहीं किया जा सकता। गिरफ्तारी की प्रक्रिया केवल कानून और कोर्ट के आदेशों के अनुसार ही होता है। इसका मतलब यह है कि डिजिटल अरेस्ट वास्तव में एक कानूनी टर्म नहीं है, बल्कि यह एक ठगी का नया तरीका है।
जानिए कैसे फंसाते हैं ठग?
यह जानना आपके लिए बहुत जरूरी है कि आख़िर किस प्रकार ठग हमें अपनी जाल में फसते हैं। पहले तो धोखेबाज़ अक्सर किसी सरकारी संस्था, पुलिस, या साइबर क्राइम सेल के नाम पर कॉल या मैसेज करते हैं। और धमकी देते हुए आपको कहेंगे कि आपने कोई अपराध किया है, या आपके दस्तावेज़ फर्जी हैं। फिर वे मोबाइल पर ही “डिजिटल अरेस्ट” (Digital Arrest) का फर्जी नोटिस भेजते हैं। इतना ही नहीं डराने के लिए वीडियो कॉल पर नकली पुलिस वर्दी पहनकर भी सामने आते हैं। उनका मकसद साफ होता है,डर पैदा करके आपसे पैसे निकलवाना। कई लोग बिना सोचे-समझे इस जाल में फंस जाते हैं और ठगों के खाते में पैसे ट्रांसफर कर देते हैं।
सोशल मीडिया और अफ़वाहें
इससे जुड़े सोशल मीडिया की अगर बात करें तो इस पर यह शब्द बहुत ही अलग तरीके से दिखाए या बताये जाते है। कई बार लोग बिना जांच-पड़ताल किए किसी वीडियो या फोटो को शेयर कर देते हैं, जिससे “डिजिटल अरेस्ट” सच लगने लगता है। लेकिन हकीकत में यह सिर्फ अफवाह और धोखाधड़ी होता है।
कानूनी और साइबर सुरक्षा का पहलू
हमारे भारत में कई ऐसी बॉडी है जैसे की आईटी एक्ट और साइबर क्राइम सेल (IT Act and Cyber Crime Cell) , जो इंटरनेट पर होने वाले अपराधों की जांच करती है। यदि किसी पर आरोप होता है तो पुलिस को उसे गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार है, लेकिन यह केवल भौतिक गिरफ्तारी (Physical Arrest) ही हो सकती है, न की मोबाइल स्क्रीन पर दिखाकर। इसलिए यदि कोई आपको “डिजिटल अरेस्ट” का डर दिखाए, तो समझ लीजिए कि सामने वाला ठग है।
इससे कैसे बचे ?
किसी भी अनजान कॉल या ईमेल पर भरोसा न करें। पुलिस या सरकारी एजेंसियां कभी भी फोन पर पैसे नहीं मांगतीं। यदि आपको ऐसा कोई कॉल या नोटिस मिले, तो तुरंत ही 1930 पर साइबर हेल्पलाइन (Cyber Helpline) या अपने स्थानीय पुलिस से संपर्क करें। आपकी सुरक्षा के लिए आपकी जागरूकता ही सबसे बड़ा बचाव है।
निष्कर्ष
यह बात ध्यान में रहे कि “डिजिटल अरेस्ट” नाम का कोई वास्तविक कानून नहीं है। यह सिर्फ धोखेबाज़ों (Fraudsters) की बनाई हुई चाल है, जो डर और अफवाहों का सहारा लेकर भोले-भाले लोगों को फंसाते हैं। इसलिए हमें समझना होगा कि असली गिरफ्तारी केवल कानून के तहत होती है, मोबाइल स्क्रीन के नोटिस से नहीं। इसलिए अगली बार जब आपको कोई कहे कि आप “डिजिटल अरेस्ट” में हैं, तो डरने की बजाय सतर्क रहिए और सही कदम उठाइए। आपके इन्हीं कदमो से ऐसे बढ़ते हुए अपराध का अंत इसलिए ऐसी परिस्थति में डरे नहीं बल्कि समझदारी से साथ कदम उठाए।
[Rh/SS]