कर्नाटक के मैसूर जिले के कुरुबारा सुरेश के जीवन की कहानी किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं है। इनकी कहानी शुरू होती है साल 2020 में, इसी साल सुरेश (Suresh) की पत्नी मल्लिगे (Mallige) अचानक घर से लापता हो गई। इसके बाद सुरेश अपनी पत्नी की गुमशुदगी की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई और उन्होंने उम्मीद किया कि पुलिस उसे ढूंढ निकालेगी। लेकिन कुछ ही दिनों में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल दी। बेट्टदारापुरा इलाके में एक महिला का कंकाल मिला। पुलिस ने बिना पूरी जांच किए यह मान लिया कि यह कंकाल मल्लिगे का है और उसके पति सुरेश ने ही उसकी हत्या की है। इसी आधार पर सुरेश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया।
आपको बता दें पुलिस ने उस कंकाल को मल्लिगे का शरीर साबित करने के लिए मल्लिगे की मां के खून के सैंपल से डीएनए टेस्ट किया, लेकिन रिपोर्ट आने से पहले ही पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी थी, पुलिस ने यह कहते हुए कि सुरेश ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है। फिर बाद में डीएनए का रिपोर्ट आया, जिसमें साफ साफ़ था कि वह कंकाल मल्लिगे (Mallige) का नहीं है। इसके बावजूद पुलिस अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हुई। उसके बाद सुरेश ने अदालत में अपनी बेगुनाही के लिए डिस्चार्ज एप्लीकेशन दाखिल की, लेकिन अदालत ने उसे खारिज कर दिया।
अदालत ने कहा कि पुलिस गवाहों और परिवार से दोबारा पूछताछ करे। गवाहों ने साफ कहा कि मल्लिगे जिंदा है और किसी दूसरे व्यक्ति के साथ भाग गई है। इसके बाद भी पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में बदलाव नहीं किया। सुरेश (Suresh) ने वह सब झेला जो किसी निर्दोष (Innocent) को नहीं झेलना चाहिए, करीब 1 साल 8 महीने उन्होंने जेल की सलाखों के पीछे बिताए, यह मुश्किल समय उन्होंने उस गुनाह के लिए बिताये, जो कभी उन्होंने किया ही नहीं था। आपको बता दें सुरेश ने अपनी इज्जत, समाज में विश्वास और परिवार की प्रतिष्ठा सबकुछ खो दिया। उनका कहना है कि "मैंने वो गुनाह नहीं किया था, जिसके लिए मुझे सज़ा मिली। मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई। अब सरकार को मेरी पीड़ा की कीमत चुकानी चाहिए।"
अप्रैल 2025 में इस केस ने एक नाटकीय मोड़ ले लिया, सुरेश एक मडिकेरी के होटल में खाना खा रहे थे, उसी वक्त उन्होंने एक महिला (Mallige) को होटल के अंदर आते देखा, दरअसल यह महिला कोई और नहीं, खुद मल्लिगे थी। उसके बाद सुरेश तुरंत उस होटल के ऑनर के पास गए और उनसे बात की, उन्होंने कहा कि कुछ देर के लिए मुझे वेटर का काम करने दें, होटल के ऑनर ने साफ इनकार कर दिया और उन्होंने कहा की मेरे होटल का यह नियम नहीं हैं, ऐसा करने से मेरे होटल की बदनामी होगी। इसके बाद सुरेश ने जब अपनी पूरी कहानी होटल के ऑनर से बताई तो वह मान गए और सुरेश को वेटर वाला कपड़ा उन्हें पहनने के लिए दे दिया।
जब वो महिला होटल के अंदर आई और बैठी तो सुरेश वेटर के रूप में उस महिला के सामने आए और उससे पूछा की मैडम ये रहा मैन्यू कार्ड आपको जो भी ऑडर करना है आप कर सकते हैं। उसके बाद जब वो महिला उस वेटर को देखती है, तो वह देखते ही सन्न रह जाती हैं, और वो अपना मुँह छुपकर भागने की कोशिश करती है। वो जैसे ही भाग कर होटल के गेट तक पहुँचती है, वैसे ही पुलिस मौके पर पहुंच जाती है और मल्लिगे को हिरासत में लेकर अदालत के सामने पेश कर देती है। जब अदालत ने मल्लिगे से पूछताछ की, तो सच सामने आ गया। उसने खुद बताया कि वह अपने पति को बताए बिना घर से भाग गई थी और अब किसी और आदमी के साथ रह रही है। उसने कहा कि उसे यह भी नहीं पता था कि सुरेश को हत्या के आरोप में जेल भेज दिया गया है।
मल्लिगे (Mallige) पिछले दो साल से शेट्टीहल्ली गांव में रह रही थी, जो मडिकेरी से सिर्फ 25-30 किलोमीटर की दूरी पर था। पुलिस ने उसे खोजने की कोई गंभीर कोशिश ही नहीं की थी। अब सवाल यह उठता है की आखिर वह कंकाल किसका था ? पुलिस ने बिना सबूत झूठी चार्जशीट क्यों दाखिल की ? क्या किसी की जान और इज्जत इतनी सस्ती है कि गलत जांच के लिए कोई जिम्मेदार न ठहराया जाए ? कोर्ट ने इस पूरे मामले को बेहद गंभीर मानते हुए जांच अधिकारियों और एसपी को तलब किया, लेकिन उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं था।
25 अप्रैल 2025 को अदालत ने सुरेश (Suresh) को निर्दोष (Innocent) करार दिया। कोर्ट ने माना कि पुलिस ने बिना सबूत के जल्दबाज़ी में झूठी रिपोर्ट तैयार की थी।उसके बाद अदालत ने गृह विभाग को आदेश दिया कि सुरेश को मुआवज़े के तौर पर 1 लाख रुपये दिए जाएं और जांच अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की जाए। लेकिन सुरेश के लिए यह मुआवज़ा बेहद छोटा था, आखिर उन्होंने अपनी जिंदगी के 20 महीने जेल में गँवा दिए थे।
सुरेश (Suresh) ने अब कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि सरकार को उन्हें 5 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देना चाहिए। इसके बाद उनका कहना है कि "मैंने समाज में अपना सम्मान, अपना परिवार और अपना मानसिक संतुलन खो दिया। सरकार ने मुझे अपराधी बना दिया, जबकि मैं पीड़ित था।" उन्होंने यह भी मांग की है कि सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें "आरोपी" नहीं बल्कि "पीड़ित" के रूप में दर्ज किया जाए।अदालत ने पुलिस विभाग को सख्त फटकार लगाई और कहा कि ऐसी लापरवाही करके भविष्य में कभी किसी भी निर्दोष (Innocent) की जिंदगी बर्बाद न करें।
कोर्ट ने एसपी को आदेश दिया कि 17 अप्रैल तक इस मामले की पूरी रिपोर्ट सौंपें और जांच करें कि इतने बड़े झूठे केस की ज़िम्मेदारी किसकी थी। सुरेश के वकील पांडु पुजारी ने कहा है कि अदालत के अंतिम आदेश के बाद वो मानवाधिकार आयोग और एसटी आयोग में भी शिकायत दर्ज कराएंगे, ताकि सुरेश को पूरा न्याय मिल सके। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि हमारी जांच व्यवस्था की खामियों का आईना है। बिना पुख्ता सबूत, बिना डीएनए रिपोर्ट का इंतजार किए, एक व्यक्ति को "हत्यारा" घोषित कर देना यह न्याय नहीं है, यह अन्याय की पराकाष्ठा है।
निष्कर्ष
इस पुरे मामले के बाद आज जब सुरेश जेल से बाहर हैं, तो उनके पास ना नौकरी बची है, ना समाज में इज्जत। लेकिन फिर भी उनमें उम्मीद बाकी है। वह कहते हैं की "सरकार अगर चाहती है कि आम आदमी कानून पर भरोसा रखे, तो उसे मेरी तरह के मामलों में कड़ी कार्रवाई करनी होगी। मेरी जिंदगी लौटा नहीं सकती, पर न्याय जरूर दे सकती है।"
यह कहानी सिर्फ सुरेश की नहीं है, बल्कि यह कहानी हर उस इंसान की है जो सिस्टम की गलती की कीमत अपनी जिंदगी से चुकाता है। [Rh/PS]