शिक्षा

इंजीनियरिंग छात्रों के लिए तैयार की गई, भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित पुस्तक

NewsGram Desk

न्यूज़ग्राम हिन्दी:  केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय प्रचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित पुस्तक लेकर आया है। मंत्रालय ने फैसला किया है कि प्राचीन नगर नियोजन, पुरानी इंजीनियरिंग, खगोल विज्ञान, पुरानी वास्तुकला और तकनीक के बारे में इंजीनियरिंग के छात्रों को पढ़ाया जाएगा। इसके लिए एक नई पाठ्यसामग्री एआईसीटीई द्वारा तैयार की गई है। सोमवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 'भारतीय ज्ञान प्रणालियों का परिचय, अवधारणाएं और अमल' पर यह पाठ्यपुस्तक जारी किया है।

इस पाठ्यपुस्तक का पाठ्यक्रम भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरू द्वारा व्यास योग संस्थान, बेंगलुरू और चिन्मय विश्व विद्यापीठ, एर्नाकुलम के सहयोग से विकसित किया गया है। यह प्रोफेसर बी महादेवन, आईआईएम बेंगलुरू द्वारा लिखा गया है और एसोसिएट प्रोफेसर विनायक रजत भट, चाणक्य विश्वविद्यालय, बेंगलुरू, एवं चिन्मय विश्व विद्यापीठ, एर्नाकुलम में वैदिक ज्ञान प्रणाली स्कूल में कार्यरत नागेंद्र पवन आर एन इसके सह-लेखक हैं। यह पुस्तक हाल ही में एआईसीटीई द्वारा अनिवार्य किए गए भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर आवश्यक पाठ्यक्रम की आवश्यकता को पूरा करती है।

धर्मेंद्र प्रधान ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि लेखकों ने इस पुस्तक में भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक अकादमिक स्वरूप प्रदान किया है। प्रधान ने वैश्विक स्तर पर भारतीय ज्ञान, संस्कृति, दर्शन और आध्यात्मिकता के व्यापक प्रभाव के बारे में बताया।

उन्होंने प्राचीन भारतीय सभ्यता के बारे में बताया और इसके साथ ही यह भी जानकारी दी कि आखिकार किस तरह से इसने पूरी दुनिया को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। वेदों, उपनिषदों और अन्य भारतीय ग्रंथों के बारे में उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन विरासत अद्भभुत कृतियों से भरी हुई है। इसे संरक्षित, प्रलेखित और प्रचार-प्रसार करने की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने प्राचीन भारत की विज्ञान आधारित प्रथाओं और ज्ञान के विभिन्न उदाहरणों के बारे में भी बताया, जिन्हें हम आज भी आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक पा सकते हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय प्रचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित
एक पुस्तक लांच किया। (Twitter)

मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय शिक्षा प्रणाली में वैकल्पिक ज्ञान प्रणालियों, दर्शन और परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे तो हम अपने प्राचीन अतीत की अच्छी चीजों को अपनाते हैं, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने समाज में निहित समस्याओं के प्रति भी सचेत रहना चाहिए। एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना चाहिए जो प्राचीन अतीत के विशिष्ट ज्ञान व समकालीन मुद्दों के बीच उचित सामंजस्य सुनिश्चित करे।

वैसे तो यह पुस्तक मुख्य रूप से इंजीनियरिंग संस्थानों द्वारा उपयोग के लिए लिखी गई है, लेकिन यह अन्य विश्वविद्यालय प्रणालियों (लिबरल आर्ट्स, चिकित्सा, विज्ञान और प्रबंधन) की आवश्यकता को आसानी से पूरा करने में मदद करती है। भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) पर जारी पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों को अतीत के साथ फिर से जुड़ने, समग्र वैज्ञानिक समझ विकसित करने में सहयोगी रहेगी। विद्यार्थियों को पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बीच की खाई को पाटने में सक्षम बनाएगी।

केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने आयुर्वेद, प्राचीन काल में जहाजों के निर्माण, विमान संबंधी ज्ञान, सिंधु घाटी शहरों के वास्तुकार और प्राचीन भारत में मौजूद राजनीति विज्ञान के उदाहरणों का हवाला दिया। उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली का परिचय पर लिखी गई पुस्तक की सराहना की जिसका उद्देश्य भारतीय ज्ञान प्रणालियों की ज्ञानमीमांसा एवं सत्व शास्त्र को जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू करना है। इंजीनियरिंग एवं विज्ञान के छात्रों को इनसे कुछ इस तरह से परिचय कराना है जिससे कि वे इससे जुड़ाव महसूस कर सकें।

इसके महत्व को गंभीरता से समझ सकें और इस दिशा में आगे खोज कर सकें। सरकार ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के उत्थान के लिए उसकी जड़ें अवश्य ही मजबूत होनी चाहिए और इन जड़ों को संरक्षित करने के लिए पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणाली के बारे में जानकारियां जरूर होनी चाहिए।

अक्टूबर 2020 में स्थापित भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) प्रभाग दरअसल एआईसीटीई, नई दिल्ली में शिक्षा मंत्रालय (एमओई) के अधीनस्थ एक अभिनव प्रकोष्ठ है। इसका उद्देश्य आईकेएस के सभी पहलुओं पर अंतर-विषयक अनुसंधान को बढ़ावा देना, आगे शोध करने और समाज में व्यापक उपयोग के लिए आईकेएस को संरक्षित करना एवं प्रचार-प्रसार करना। हमारे देश की समृद्ध विरासत एवं कला व साहित्य, कृषि, मूल विज्ञान, इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन, अर्थशास्त्र, इत्यादि के क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय रूप से संलग्न होना है।

(आईएएनएस/JS)

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