Asia Games:-कहते हैं कि जब कोई एक व्यक्ति जीत हासिल करता है तो उसके साथ-साथ उसका परिवार उसका समाज और उसका पूरा देश भी जीत जाता है।[Pixabay] 
राष्ट्रीय

एशियाड प्लेयर्स के स्ट्रगल की ऐसी कहानी जिसे सुन कर आप भी चौंक जायेंगे

आज इंदौर की सुदीप्ति हजेला, जयपुर की दिव्याकृति सिंह, मुंबई के विपुल ह्रदय छेड़ा और कोलकाता के अनुश अगरवाला का घुड़सवारी के ड्रेसेज में स्वर्ण पदक संघर्ष और त्याग की कहानी है।

न्यूज़ग्राम डेस्क, Sarita Prasad

कहते हैं कि जब कोई एक व्यक्ति जीत हासिल करता है तो उसके साथ-साथ उसका परिवार उसका समाज और उसका पूरा देश भी जीत जाता है। हम बात कर रहे हैं उन घुड़सवारों के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत और अपने त्याग के बल पर भारत को घुड़सवारी में स्वर्ण पदक जिताया। आज इंदौर की सुदीप्ति हजेला, जयपुर की दिव्याकृति सिंह, मुंबई के विपुल ह्रदय छेड़ा और कोलकाता के अनुश अगरवाला का घुड़सवारी के ड्रेसेज में स्वर्ण पदक संघर्ष और त्याग की कहानी है।

क्या क्या सहना पड़ा इन प्लेयर्स को

इन घर स्वरों के जीवन में एक ऐसा समय आया था कि जब इन्हें और उनके घर स्वरों को एशियाड में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा रही थी और यदि उसे वक्त यह अदालत का दरवाजा न खटखटाते, तो इन्हें कभी भी एशिया में हिस्सा लेने का मौका मिलता ही नहीं। परेशानी सिर्फ इतनी ही नहीं थी इसके अलावा चीन ने भारत में घोड़े को भेजने से भी इंकार कर दिया था।जिसके चलते इन घुड़सवारों को दो या उससे अधिक वर्षों से घोड़ों के साथ यूरोप में रहना पड़ा। शहर से दूर जंगल जैसे इलाकों में अकेले रहकर खुद खाना बनाना पड़ा और घोड़ों की भी सेवा करनी पड़ी। यही नहीं सुदीप्ति को तो जमीन गिरवीं रखकर लिए गए लोन से 75 लाख का घोड़ा दिलवाया गया।

घुड़सवारों ने एशिया में हिस्सा लेने से पहले या हिस्सा लेने पर भी यह न सोचा था की इन्हें कभी स्वर्ण पदक भी मिलेगा यह चारों टॉप 3 में आने की प्लानिंग कर रहे थे।[Pixabay]

कैसे आई स्वर्ण पदक की इच्छा

इन चारों घुड़सवारों ने एशिया में हिस्सा लेने से पहले या हिस्सा लेने पर भी यह न सोचा था की इन्हें कभी स्वर्ण पदक भी मिलेगा यह चारों टॉप 3 में आने की प्लानिंग कर रहे थे।लेकिन सोमवार रात को प्रशिक्षकों के साथ हुई बैठक में इन्हे यह अहसास हुआ कि वे स्वर्ण भी जीत सकते हैं। यहां पहली बार चारों के दिमाग में स्वर्ण जीतने की बात आई और चारों ने मंगलवार को ऐसा इतिहास रचा दिखाया। रणनीति के तहत सुदीप्ति को सबसे पहले, उसके बाद दिव्याकृति को फिर ह्रदय को अंत में सबसे अनुभवी अनुष को उतारा गया।

बच्चों से छुपाई अपनी अपनी तकलीफे

सुदीप्ति के पिता मुकेश मानते हैं कि यह बेहद महंगा खेल है। इसके लिए उन्होंने जमीन गिरवीं रखकर लोन भी लिया, लेकिन कभी बेटी को इस बारे में नहीं बताया, जिससे उस पर किसी तरह का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़े। उन्होंने 75 लाख रुपये में घोड़ा लिया है।

राजेश पट्टू का क्या कहना था

एशियाई खेलों में तीन बार पदक जीत चुके, अर्जुन अवार्डी कर्नल राजेश पट्टू चारों घुड़सवारों के प्रदर्शन से हैरान हैं। वह कहते हैं कि जिन हालातों में इन घुड़सवारों ने तैयारियां कीं और जिन विपरीत परिस्थतियों का इन्हें सामना करना पड़ा, उसमें स्वर्ण जीतना कल्पना से परे है।

च्छे घोड़े की कीमत एक करोड़ रुपये से भी अधिक होती है।[Pixabay]

कर्नल पट्टू बताते हैं कि घुड़सवारी में डे्रसाज का घोड़ा सबसे महंगा होता है। अच्छे घोड़े की कीमत एक करोड़ रुपये से भी अधिक होती है।सुदीप्ति को दो साल पहले पेरिस से 50 किलोमीटर दूर पामफोऊ में भेजा गया। वहां उसके लिए अकेले रहना मुश्किल था। प्रैक्टिस के बाद उसे खुद खाना बनाना पड़ता था और घोड़े का भी ख्याल रखना पड़ता था। एशियाई खेलों के लिए चीन से घोड़े भेजे गए हैं। जर्मनी में सात दिन तक उन्हें कोरेंटाइन रखा गया।

भगवान जगन्नाथ का रथ खींचती हैं जो रस्सियाँ, उनके पीछे छिपा है एक आदिवासी समाज!

मोहम्मद शमी को कोर्ट से बड़ा झटका : पत्नी-बेटी को हर महीने देने होंगे 4 लाख रुपये !

जिसे घरों में काम करना पड़ा, आज उसकी कला को दुनिया सलाम करती है – कहानी दुलारी देवी की

सफलता की दौड़ या साइलेंट स्ट्रगल? कोरिया में डिप्रेशन की असली वजह

जहां धरती के नीचे है खजाना, वहां ऊपर क्यों है गरीबी का राज? झारखंड की अनकही कहानी