Summary
1978 में कांग्रेस के दो कार्यकर्ताओं भोलानाथ पांडे और देवेंद्र पांडे ने इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 410 को हाईजैक किया।
सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस ने उनके खिलाफ मुकदमे वापस लेकर उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिया और दोनों विधायक बने।
यह मामला भारतीय लोकतंत्र में अपराध और राजनीति के गठजोड़ पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
भारत का लोकतंत्र भी बड़ा अजीब है, यहाँ एक आरोपी को भी कानून ये हक़ देता है कि वो चुनाव लड़े और सत्ता के शिखर पर काबिज हो जाए। धनंजय सिंह, अनंत सिंह और अमृत पाल सिंह, ये ऐसे जीते जागते चेहरे हैं, जिनके ऊपर दर्जनों अपराध के मामले दर्ज हैं लेकिन इसके बावजूद भी ये चुनाव लड़कर लोकसभा या विधानसभा में पहुँच जाते हैं। ऐसे उदाहरण लोकतंत्र के सामने एक गंभीर नैतिक चुनौती खड़ी करते हैं।
1999 में एक फिल्म आई थी शूल, उसमें एक सीन के दौरान एक डायलॉग सामने आता है कि इस देश में गुंडा ही नेता बनता है और नेता ही गुंडा। ये कहीं ना कहीं भारतीय लोकतंत्र की सच्चाई बयां करती है। ऐसा ही एक वाकया 1978 में हुआ था जहाँ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के 2 कार्यकर्ताओं ने प्लेन हाईकजैक कर लिया और बाद में उन्हें ईनाम स्वरुप पार्टी की तरफ से चुनाव का टिकट दे दिया। क्या है पूरा मामला आइये समझते हैं?
ये बात 20 दिसंबर 1978 की है। इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 410 कोलकाता से दिल्ली जा रही थी। इसे पालम एयरपोर्ट पर उतरना था और इसमें कुल 132 यात्री सवार थे। अचानक दो युवक अपनी सीट से उठते हैं और कॉकपिट की ओर बढ़ते हैं। दोनों कांग्रेस के कार्यकर्ता थे और उनके हाथ में हथियार थे। दोनों ने प्लेन हाईकजैक कर लिया। इन दोनों का नाम भोलानाथ पांडे और देवेंद्र पांडे था। दोनों का मकसद था इंदिरा गाँधी की रिहाई।
दरअसल, हुआ ये था कि आपातकाल जैसे ही खत्म हुआ, उसके बाद देश में आम चुनाव हुए। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। मोरारजी देसाई की सरकार ने 19 दिसंबर 1978 को इंदिरा गांधी को लोकसभा से निष्कासित कर जेल भेज दिया। इसके अगले ही दिन भोलानाथ पांडे और देवेंद्र पांडे ने एक प्लेन हाईजैक कर लिया लेकिन उनके पास असली हथियार नहीं थे। दोनों ने खिलौना पिस्तौल और काले कपड़े में लिपटी एक क्रिकेट की गेंद जो ग्रेनेड जैसी दिख रही थी, उसके दम पर प्लेन हाईजैक कर लिया।
दोनों प्लेन को नेपाल ले जाने की फिराक में थे लेकिन ईंधन की कमी के कारण विमान वाराणसी में उतारा गया। करीब 13 घंटे उनके साथ बातचीत चली। जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव आए, तब जाकर दोनों ने सरेंडर किया। हालांकि, इसमें किसी की जान नहीं गई लेकिन ये एक गंभीर आपराधिक विमान अपहरण था।
अब यहाँ कहानी में एक नया ट्वीट्स भी आता है। साल 1980 में आम चुनाव होते हैं और इंदिरा गाँधी फिर से सत्ता में वापसी करती हैं। जैसे ही उनकी सत्ता में वापसी होती है, भोलानाथ पांडे और देवेंद्र पांडे पर चल रहे मुकदमे को वापस ले लिया जाता है और यही से भारतीय राजनीति के कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि इन दोनों को 1980 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए टिकट दिया जाता है और दोनों जीत भी जाते हैं।
बलिया के दोआबा जो अब बैरिया के नाम से जाना जाता है, यहाँ से दो बार विधायक बने। 1980 से 1985 तक और 1989 से 1991 वो जीतकर विधानसभा पहुंचे। वहीं, देवेंद्र पांडे 1980 से 1985 और 1985 से 1989 तक विधायक रहे। भोलानाथ को युवा कांग्रेस का महासचिव और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सचिव भी बनाया गया जबकि देवेंद्र पांडे उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।
हालांकि, कहानी यहाँ खत्म नहीं होती है। भोलानाथ पांडे को कांग्रेस पार्टी लोकसभा का चुनाव लड़ने का भी मौका देती है। सलेमपुर लोकसभा सीट से उन्हें 1991, 1996, 1999, 2004, 2009 और 2014 में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की ओर से टिकट दिया जाता है। हैरानी की बात है कि भोलानाथ को लगातार 6 बार टिकट दिया गया लेकिन वो एक बार भी जीत ही नहीं पाए।
9 महीने और 28 दिन तक लखनऊ की जेल में बंद रहने वाले देवेंद्र पांडे का निधन हो चुका है। उनकी मृत्यु 23 सितंबर 2017 को 67 साल की उम्र में हुआ था। बताया जाता है कि उनकी मृत्यु का कारण हृदय गति रुकना (Heart Attack) था। आखिरी समय में वो अपने लखनऊ के विभूति खंड स्थित आवास पर थे जहाँ उन्होंने अंतिम साँस ली। उनके सीने में अचानक दर्द शुरू हुआ, इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश की गई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
वहीं, भोलानाथ पांडे की अगर हम बात करें, तो वो भी आज इस दुनिया में जीवित नहीं है। 23 अगस्त 2024 को उन्होंने अंतिम साँस ली। मृत्यु के समय उनकी आयु लगभग 71 वर्ष थी। भोलानाथ का निधन लंबी बीमारी के कारण हुआ था। पिछले काफी समय से उनका इलाज लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (RMLIMS) में चल रहा था लेकिन वो बीमारी को मात नहीं दे सके और लखनऊ में ही उनका निधन हुआ। मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गांव (बलिया जिले में) ले जाया गया और यहीं उनका अंतिम संस्कार हुआ। उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को याद भी किया।
यह भी पढ़ें: आखिर कौन थे संत निकोलस, जो बन गए सांता क्लॉज? सफेद दाढ़ी-लाल ड्रेस में गिफ्ट बाँटने वाले की स्टोरी
भोलानाथ और देवेंद्र पांडे ने जो किया वो ये सोचने को मजबूर करती है कि कहीं नियम-कानून तोड़ने वालों के हाथ में तो सत्ता नहीं जा रही है। ये सवाल इसलिए भी वाजिब है, क्योंकि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दोनों की हरकतों को सही ठहराने की कोशिश की। दिवंगत कांग्रेस नेता वसंत साठे ने कहा था कि यह तो बस प्रदर्शन था जबकि आर. वेंकटरमण, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, उन्होंने तो इसे “साल का मजाक” तक कह दिया क्योंकि हथियार खिलौने थे।
ऐसे में यहाँ सवाल ये उठता है कि क्या 132 यात्रियों के जान की कोई कीमत नहीं थी। क्या 13 घंटे तक यात्रियों को डराए रखना एक ईनामी कदम था? ये मायने नहीं रखता कि हथियार असली था या नकली, मायने ये रखता है कि अपराध तो अपराध ही होता है। अगर देश चलाने वाले नेता ही अपराध का बचाव करेंगे, तो देश की कानून व्यवस्था पर सवाल तो उठेंगे ही।