Worship Act को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ Jamiat Ulema-e-Hind पहुँचा सुप्रीम कोर्ट  IANS
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Worship Act को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ Jamiat Ulema-e-Hind पहुँचा सुप्रीम कोर्ट

वर्ष 2020 में पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991) को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं थीं जिस में से एक याचिका को न्यायालय ने कुबूल करते हुए केंद्रीय सरकार को नोटिस जारी किया था।

न्यूज़ग्राम डेस्क

ज्ञान वापी मस्जिद मामला (Gyanvapi Mosque Case) और इबादतगाह कानून (पूजास्थल कानून) (Worship Act) के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। जमियत अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस मामले पर गर्मी के अवकाश के बाद सुनवाई की उम्मीद है।

जमीयत के मुताबिक, Gyanvapi Mosque Case वाराणसी जिला न्यायालय में लंबित है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय में, एक से अधिक ऐसी याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें न्यायालय को पूजा स्थल अधिनियम ( Places of Worship Act) )को असंवैधानिक घोषित करने के लिए कहा गया है। वर्ष 2020 में पूजा स्थल अधिनियम को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं थीं जिस में से एक याचिका को न्यायालय ने कुबूल करते हुए केंद्रीय सरकार को नोटिस जारी किया था। यह याचिका भारतीय जनता पार्टी से संबंधित अश्विनी कुमार उपाध्याय (एडवोकेट) ने दायर की थी।

जमीयत की कानूनी सहायता समिति के अध्यक्ष गुलजार आजमी ने बताया कि उक्त याचिका का विरोध करने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एजाज मकबूल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिस पर गर्मी के अवकाश के बाद सुनवाई होने की उम्मीद है।

आजमी ने कहा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि संपत्ति विवाद मामले (Janmabhoomi-Babri Masjid dispute) में एक प्रमुख पक्ष था। जिसमे Places of Worship Act की धारा 4 को स्वीकार कर लिया गया है और इस कानून की संवैधानिक स्थिति को सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्यता दी है। इसलिए अब इस कानून को चुनौती देकर एक बार फिर से देश की शांति भंग करने का प्रयास किया जा रहा है।

याचिका में कहा गया है, Places of Worship Act 1991 को लागू करने के दो उद्देश्य थे। पहला उद्देश्य था किसी भी धार्मिक स्थल की तबदीली को रोकना और दूसरा उद्देश्य पूजा स्थलों को उसी स्थिति में रखना था जिस स्थिति या रूप में वे 1947 में थे और इन दोनों उद्देश्यों को बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि संपत्ति मामले के फैसले में अदालत द्वारा बरकरार रखा गया था।

साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है, प्लेस आफ वरशिप कानून भारत के संविधान की मूल संरचना को मजबूत करता है, इसका उल्लेख बाबरी मस्जिद मामले के फैसले में किया गया है। (पैराग्राफ 99, पृष्ठ 250) और इस कानून की रक्षा करना धर्मनिरपेक्ष देश की जिम्मेदारी है की वह सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे और बाबरी मस्जिद मामले के फैसले में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने पूजा स्थल अधिनियम का विस्तृत विश्लेषण किया है, जिस के अनुसार यह कानून भारत के संविधान की नींव को मजबूत करने के साथ-साथ इसकी रक्षा भी करता है और इस कानून की धारा 4 पूजा स्थलों के रूपांतरण पर रोक लगाती है।

यह कानून बनाकर सरकार ने सभी धर्मों के लोगों के पूजा स्थलों की रक्षा करने की संवैधानिक जिम्मेदारी ली है कि वह सभी धर्मो के पूजा स्थलों की रक्षा की जिम्मेदारी लेगी और इस कानून को बनाने का उद्देश्य ही धर्मनिरपेक्षता की नींव को मजबूत करना है
(आईएएनएस/PS)

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