ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की राजनीति जनआंदोलनों से सत्ता तक पहुँची, लेकिन समय के साथ कई बड़े घोटालों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए।
शारदा चिटफंड, SSC शिक्षक भर्ती, नारद स्टिंग, राशन वितरण, कोयला तस्करी और नगरपालिका भर्तियों जैसे मामलों ने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर किया।
लगातार घोटालों और लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के बीच अब 2026 के विधानसभा चुनाव में जनता का भरोसा ही सबसे बड़ा राजनीतिक इम्तिहान बनने वाला है।
ममता बनर्जी, जिन्हें लोग “दीदी” के नाम से भी जानते हैं, एक ऐसी भारतीय नेता हैं जिन्होंने पिछले 14 वर्षों से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर अपना पांव जमा रखा है। ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थीं। उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक इतिहास में मास्टर्स, शिक्षायतन कॉलेज से बी.एड और योगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की।
ममता बनर्जी का हमेशा से मानना रहा है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने लगभग 30 वर्षों तक बंगाल में तानाशाही शासन किया। उनके अनुसार, इस दौरान गरीबों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया गया, विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं की हत्या हुई और चुनावों के समय हिंसा को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया।
किसानों और आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर सरकार के खिलाफ किए गए लगातार विरोध प्रदर्शनों ने ममता बनर्जी को जनता के बीच मजबूत समर्थन दिलाया। यही वह समय था जब उन्हें यह एहसास हुआ कि जनता के समर्थन के बल पर सत्ता परिवर्तन संभव है।इसी रणनीति के तहत ममता बनर्जी ने कम्युनिस्ट सरकार पर एक के बाद एक आरोप लगाए और गरीबों, महिलाओं और हाशिए पर खड़े वर्गों के समर्थन से 2011 में बंगाल की सत्ता हासिल की।
शारदा चिटफंड घोटाला West Bengal का सबसे बड़ा और आम जनता को सीधे प्रभावित करने वाला आर्थिक घोटाला माना जाता है। यह घोटाला 2008 से 2013 के बीच सामने आया, जिसमें शारदा ग्रुप नाम की कंपनी ने लाखों गरीब और मध्यम वर्गीय लोगों से पैसे जमा कराए। आरोप है कि शारदा ग्रुप ने अवैध चिटफंड स्कीम के ज़रिए लोगों को ज्यादा पैसे रिटर्न का लालच दिया जिससे लोग फण्ड की तरफ काफी आकर्षित हुए और उन्होंने अपने पैसों को इसमें इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया, लेकिन बाद में अचानक कंपनी बंद करने की खबर सामने आयी, जिससे लोगों में अफरा-तफरी हुई। लोगों ने डबल पैसो के लालच में अपने कई सालों की कमाई इस फण्ड में लगायी थी, जिसके बदले उन्हें कुछ भी नहीं मिला बल्कि उनके पैसो को भी लेकर कंपनी भाग गयी।
इस घोटाले में करीब 10 लाख से ज़्यादा निवेशकों के पैसे डूब गए। इस मामले में सबसे गंभीर आरोप यह लगा कि शारदा ग्रुप को राजनीतिक संरक्षण मिला हैं। माना जाता है कि कंपनी ने तृणमूल से जुड़े नेताओं को पैसे और फायदे पहुँचाए हैं । लोगों का मानना है कि सरकार ने जानबूझकर नियामक कार्रवाई नहीं की। इस घोटाले के मुख्य आरोपी सुदीप्त सेन ने गिरफ्तारी के बाद कई पत्र लिखकर यह दावा किया कि उसे तृणमूल के कई वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण मिला हुआ था, जिसके सहारे उसने इस काम को अंजाम दिया है।
जांच और कार्रवाई
मामले की जांच-पड़ताल Central Bureau of Investigation (CBI) और Enforcement Directorate (ED) को सौंपा गया। कई नेताओं और अफसरों से पूछताछ हुई जिसमे से कुछ की गिरफ्तारियाँ भी हुईं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुरुआत में इसे “निजी कंपनी का फ्रॉड” बताया और राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी से इनकार किया। हालांकि विपक्ष का कहना है कि अगर समय रहते सरकार ने कार्रवाई की होती, तो लाखों लोगों की ज़िंदगी बर्बाद नहीं होती।
मौजूदा स्थिति
मामले की जांच Central Bureau of Investigation (CBI) और Enforcement Directorate (ED) द्वारा की गई। कई मामलों में ट्रायल जारी रहा, कुछ आरोपियों को ज़मानत मिली, लेकिन पीड़ित निवेशकों को अब तक पूरा पैसा वापस नहीं मिल पाया है। जिस पर लोगों द्वारा लगातार सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं और अपने पैसों की मांग की जा रही हैं।
पश्चिम बंगाल में कोयला तस्करी (Illegal Coal Smuggling) का मामला मुख्य रूप से Eastern Coalfields Limited (ECL) के इलाकों —आसनसोल, रानीगंज, दुर्गापुर, बीरभूम — से जुड़ा हुआ है। सरकार पर यह आरोप है कि बंद या छोड़ी गई खदानों से गैरकानूनी तरीके से कोयला निकाला गया है। सरकारी कोयले को माफिया नेटवर्क के ज़रिए खुले बाज़ार में बेचा गया इतना ही नहीं, ट्रक, रेलवे रैक और गोदामों के ज़रिए राज्य के भीतर और बाहर सप्लाई की गई। इसमें स्थानीय नेता, पुलिस, ECL कर्मचारी और तस्कर शामिल थे। यह तस्करी सालों तक चलती रही, जिससे सरकार को लगभग हज़ारों करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ।
तृणमूल सरकार पर आरोप लगे कि कोयला खनन और उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी केंद्र की कंपनी (ECL) लेकिन कानून-व्यवस्था और स्थानीय प्रशासन राज्य सरकार के अधीन है।आरोप है कि कोयला तस्करी पुलिस और स्थानीय प्रशासन की जानकारी में चलती रही और सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। तृणमूल से जुड़े स्थानीय नेताओं को मासिक हिस्सा दिया जाता था। शिकायतों के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई। विपक्ष का कहना है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतना संगठित कोयला तस्करी नेटवर्क चलना नामुमकिन है।
जांच-पड़ताल
मामला जांच एजेंसियों तक पहुँचा और लगातार शिकायतों और मीडिया रिपोर्ट्स के बाद मामला कानूनी जांच के दायरे में आया। इसके बाद जांच शुरू हुई Central Bureau of Investigation (CBI), अवैध खनन, चोरी और आपराधिक साजिश Enforcement Directorate (ED), मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) के तहत जांच शुरू हुई। ED का कहना है कि कोयला तस्करी से कमाए गए पैसे रियल एस्टेट, शेल कंपनियों और नकद लेन-देन में बदले गए।
जांच एजेंसियों के अनुसार अवैध कोयला खदानों और स्टॉक यार्ड्स का पता चला तस्करी से जुड़ी डायरी, डिजिटल डेटा और कैश बरामद हुआ। कई ट्रकों और वाहनों को जब्त किया गया। इस मामले में कई कोयला व्यापारी गिरफ्तार हुए। कुछ पुलिस और ECL से जुड़े कर्मचारी जांच के घेरे में आए। तृणमूल से जुड़े स्थानीय नेताओं के करीबी ED/CBI की रडार पर रहे। मानव तस्करी जैसा खतरनाक पहलू इस घोटाले का एक गंभीर पहलू यह भी रहा कि अवैध खदानों में मजदूरों से खतरनाक हालात में काम कराया गया। कई बार हादसे और मौतों की खबरें सामने आईं। मजदूरों को कोई सुरक्षा या कानूनी अधिकार नहीं मिला।
सरकार और ममता बनर्जी का पक्ष
तृणमूल सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि कोयला खनन केंद्र के अधीन आता है। राज्य सरकार ने किसी तरह का संरक्षण नहीं दिया है। जांच एजेंसियाँ राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है, ऐसे में सरकार ज़िम्मेदारी से पूरी तरह बच नहीं सकती।आम जनता और राज्य पर भारी असर हुआ है जिससे सरकार को भारी राजस्व नुकसान झेलना पड़ा। स्थानीय युवाओं का अवैध धंधों में फँसना,कानून व्यवस्था पर लोगों का भरोसा कमजोर कोयला तस्करी ने यह दिखाया कि West Bengal में संगठित अपराध और राजनीति का रिश्ता कितना गहरा हो चुका है।
मौजूदा स्थिति
जांच अब भी जारी है कई केस अदालत में लंबित हैं, कुछ आरोपी जमानत पर बाहर घूम रहे है, और कुछ हिरासत में है। ED अभी भी पैसे की ट्रेल की जांच कर रही है।
नारद स्टिंग ऑपरेशन (2016) ने West Bengal की राजनीति को हिला कर रख दिया। नारदा स्टिंग ऑपरेशन ने बंगाल की राजनीति में बड़ा भूचाल ला दिया। इस स्टिंग में तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं को कैमरे पर रिश्वत लेते हुए दिखाया गया, जिसे कथित तौर पर राजनीतिक लाभ से जोड़ा और माना गया की इसमें तृणमूल सरकार का शत-प्रतिशत हाथ है। वीडियो सामने आने के बाद यह सवाल उठा कि क्या सत्ता में बैठे लोग नैतिक और कानूनी जिम्मेदारियों का पालन करभी रहे हैं या नहीं। आरोप यह था कि मंत्री और सांसद निजी फायदे के बदले सरकारी मदद का वादा कर रहे थे, पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार सामान्य बात बन चुका था। यह स्टिंग ऑपरेशन सीधे तौर पर तृणमूल की नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है।
कानूनी प्रक्रिया
याचिका दायर होने पर मामला अदालत पहुँचा और जांच की कार्रवाई CBI को सौंपी गई। सीबीआई द्वारा इस माले की जांच भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act)के तहत जांच शुरू की। कुछ नेताओं की गिरफ्तारी हुई, हालांकि बाद में कई मामलों में जमानत मिल गई। सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act)के तहत जांच शुरू की। 2021 में सीबीआई ने इस मामले के तहत तृणमूल के कई वरिष्ठ नेताओ को गिरफ्तार किया जिसमे सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हाकिम, मदन मित्रा और सोवन चटर्जी शामिल थे। सीबीआई का मानना था की इन नेताओं द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गयी थी।
ममता बनर्जी का रुख
ममता बनर्जी ने इसे “राजनीतिक साजिश”और “स्टिंग के ज़रिए बदनाम करने की कोशिश” बताया। लेकिन सवाल यह आज भी बना हुआ है कि अगर स्टिंग झूठा था, तो कैमरे पर दिख रहे पैसे और बयान क्या थे? केस ट्रेल पर है , इससे सम्बंधित आरोपी जमानत पर है, परन्तु सीबीआई सबूतों को इखट्टा करे जा रही है।
पश्चिम बंगाल का राशन वितरण घोटाला गरीबों के हक से जुड़ा हुआ मामला है। राशन वितरण घोटाले में आरोप लगे कि गरीबों के लिए आने वाला सरकारी राशन बाजार में बेचा गया, फर्जी लाभार्थियों के नाम जोड़े गए और वास्तविक जरूरतमंदों को राशन नहीं मिला। यह घोटाला सीधे तौर पर गरीबों के हक से जुड़ा होने के कारण ज्यादा संवेदनशील माना गया। इस घोटाले के तहत अनाज की कालबाज़ायरी हुई और भरस्टाचार को बढ़ाया गया।
आरोप है कि जिन लोगों का नाम राशन कार्ड में था उनका नाम काट दिया गया और उनके राशन को बाज़ार में बेचा गया। इतना ही नहीं फ़र्ज़ी लोगों के नाम राशन कार्ड में जोड़े गए और फिर उन्ही फ़र्ज़ी कार्ड से राशन की कालाबाज़ारी की गयी। इस मामले में तृणमूल सरकार को आरोपी बताया गया क्योंकि राशन वितरण की जिम्मेदारी स्थानीय सरकार के अधीन आती है , इतना ही नहीं तृणमूल के कई नेताओं का इससे नाम जोड़ा गया है जिन्होंने इस घोटाले में डीलर की भूमिका निभाई। कई बार शिकायत करने के बावजूद भी मामले पर कार्रवाई नहीं की गयी और मामले में सरकार द्वारा ढिलाई की गयी ताकि घोटाले होते रहे। ED ने इस मामले में कई जगहों पर रेड कर नकद और संपत्ति जब्त की। प्रभावशाली नेताओं के करीबी लोगों को गिरफ्तार किया
सरकार का पक्ष
तृणमूल सरकार का कहना है कि यह कुछ स्थानीय स्तर के लोगों की गड़बड़ी है, सरकार की नीति में कोई दोष नही। लेकिन सवाल यह है कि अगर सिस्टम ठीक था, तो घोटाला इतने बड़े स्तर पर कैसे हुआ?
SSC शिक्षक भर्ती घोटाला (2016–2019) ममता सरकार के सबसे गंभीर और असरदार घोटालों में गिना जाता है। इस मामले में आरोप लगे कि मेरिट लिस्ट में हेरफेर, OMR शीट से छेड़छाड़ और पैसे लेकर नौकरी देने का सिलसिला चला। यह मामला तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि उनकी करीबी मानी जाने वाली और कुछ मामलों में बेटी से जुड़ी नियुक्तियों में SSC के नियमों का उल्लंघन किया गया और गैर-कानूनी तरीके से नौकरी दिलाई गई। इस घोटाले के तहत यह भी आरोप है कि कम अंक प्राप्त करने वालों को नौकरी दी गई, जबकि कई योग्य उम्मीदवारों को नियुक्ति नहीं मिली। वहीं, अयोग्य लोगों को शिक्षक पद पर बैठा दिया गया। SSC घोटाले में OMR शीट से छेड़छाड़ की खबरें सामने आईं — या तो OMR शीट बदली गई, या फिर कई उम्मीदवारों की शीट गायब कर दी गई।
इतना ही नहीं, यह भी आरोप लगे कि लोगों से पैसे लेकर नौकरी दी गई, जिनमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्होंने या तो परीक्षा दी ही नहीं थी, या फिर बेहद कम अंक हासिल किए थे। आरोपों के मुताबिक 5 लाख से 15 लाख रुपये लेकर सरकारी नौकरी दिलाई गई, जिसमें बिचौलिये, प्रभावशाली अधिकारी और तृणमूल से जुड़े राजनीतिक संपर्क शामिल बताए गए।
मामले की सुनवाई
योग्य उम्मीदवारों द्वारा याचिकाएँ दायर की गईं, जिसके बाद मामला Calcutta High Court पहुँचा। जांच के दौरान हज़ारों भर्तियों में गंभीर अनियमितताएँ सामने आईं, जिससे पूरी भर्ती प्रक्रिया को दूषित माना गया। कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच Central Bureau of Investigation (CBI) और Enforcement Directorate (ED) को सौंपी गई। जांच के बाद कई SSC अधिकारी, शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारी और राजनीतिक संपर्क वाले लोगों की गिरफ्तारी हुई।
शिक्षकों और छात्रों पर असर
इस जांच-पड़ताल में कई शिक्षकों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। नौकरी गंवाने वालों में ऐसे लोग भी शामिल थे, जिन्होंने ईमानदारी से परीक्षा पास की थी, लेकिन पूरी भर्ती प्रक्रिया रद्द होने के कारण उन्हें भी अपने हाथों से नौकरी छोड़नी पड़ी। इसका सीधा असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ा। शिक्षकों की भारी कमी के कारण स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित हुई और कई जगहों पर अनुभवी शिक्षकों तक को हटा दिया गया, जिससे शैक्षणिक व्यवस्था और कमजोर हुई। सरकार का पक्ष Trinamool Congress और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले में कहा कि सभी नेताओं या अधिकारियों को दोषी ठहराना सही नहीं है। उनका दावा है कि यह कुछ व्यक्तियों की गलती है, न कि पूरे सिस्टम की। सरकार ने जनता से यह वादा भी किया कि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा नहीं आएगी और भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाएगा।
मौजूदा स्थिति
सरकार के वादों और जांच-पड़ताल के बावजूद SSC परीक्षाओं में देरी, रिज़ल्ट लटकने और री-एग्ज़ाम जैसे मामले लगातार सामने आते रहे हैं। कुछ मामलों में पेपर लीक के आरोप भी आज तक देखने को मिलते हैं। बार-बार SSC से जुड़ी समस्याएँ सामने आने के कारण उम्मीदवारों में निराशा और अविश्वास बढ़ता जा रहा है। इसका असर सिर्फ SSC तक सीमित नहीं है, बल्कि तृणमूल सरकार पर से भी लोगों का भरोसा कमजोर पड़ा है। कैंडिडेट्स अब स्थायी और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली, पेपर लीक पर जीरो टॉलरेंसऔर समय पर परीक्षा व रिज़ल्ट की साफ़ तौर पर मांग कर रहे हैं।
नगरपालिकाओं में भर्ती घोटाला (Municipality Recruitment Scam) West Bengal की नगरपालिकाओं में भर्ती घोटाला भी लंबे समय से चर्चा में है।
आरोप है कि पैसे लेकर सफाईकर्मी, क्लर्क और अन्य पदों पर नियुक्ति की गई है। इतना ही नहीं यह भी आरोप है कि योग्य उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया। भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह अपारदर्शी रही जिससे नौकरी के लिए योग्य अधिकारी को बहाली की प्रक्रिया से बहार कर दिया गया। ऐसे लोगों को भर्ती किया गया जो न तो योग्य थे न ही उन्होंने परीक्षा को लिखा था। माना जाता है की इस घोटाले में भी स्थानीय तृणमूल नेताओं और नगर निकाय अधिकारियों का हाथ था। नेताओं की सिफारिशों पर कई लोगों को भर्ती किया गया। इस मामले को सबके सामने लाने के बाद भी सरकार की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
नगरपालिकाएँ सीधे तौर पर राज्य सरकार के अधीन आती हैं। ऐसे में विपक्ष का कहना है कि यह सिर्फ निचले स्तर का भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि ऊपर से नीचे तक फैला सिस्टम है।
जांच प्रक्रिया
भर्ती से वंचित कई योग्य उम्मीदवारो ने अदाकतों का द्वारवाज़ा खटखटया जिससे यह मामला कलकत्ता हाई कोर्ट मेंपहुंचा। हाई कोर्ट ने पाया कि नगरपालिका की भर्ती में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, और न ही लोगों को मेरिट के आधार पर भर्ती किया गया। इस मामले में सीबीआई और ED ने जांच पड़ताल शुरू की। जांच-पड़ताल के दौरान पता चला की नियुक्तियां फ़र्ज़ी दस्तावेज़ के आधार पर की गयी थीं और भर्ती के बदले लोगों से पैसे लिए गए।
मौजूदा हालात
इस घोटाले से पश्चिम बंगाल में बेरोज़गारी बढ़ी क्योंकि योग्य युवा उमीदवार आज भी बेरोज़गार घूम रहे हैं, जो एक समय पर इस परीक्षा को पास कर चुके थे। अभी भी सीबीआई और ED द्वारा जांच-पड़ताल जारी है परन्तु लोगों में सरकार के खिलाफ एक असंतोष है जिसे शायद कभी खत्म नहीं किया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल में सामने आए ये घोटाले -SSC शिक्षक भर्ती, शारदा चिटफंड, नारद स्टिंग, राशन वितरण, कोयला तस्करी और नगरपालिका भर्ती —सिर्फ अलग-अलग मामले नहीं हैं, बल्कि एक ही शासन शैली की तस्वीर दिखाते हैं। इन सब घोटालों में ममता बनर्जी की सरकार का जिम्मेवार ठहराया गया है। सरकार हर बार यह दावा करती है कि “कुछ लोगों की गलती है, पूरे सिस्टम की नहीं” लेकिन जब घोटाले बार-बार हों और एक ही पार्टी से जुड़े लोग नामित हों और आम जनता, छात्र, गरीब और बेरोज़गार प्रभावित हों तो सवाल सिर्फ व्यक्तियों का नहीं, बल्कि शासन और नेतृत्व की जवाबदेही का बन जाता है।
ऐसे में अब 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखना है कि क्या घोटालो के बाद भी जनता मौजूदा सरकार को ही चुनती है या किसी और पार्टी को मौका देती है जिस पर जनता भरोसा कर सके।
(Rh/PO)