बंगाल की राजनीति की नेता ममता बनर्जी। Ministry of Finance (GODL-India), GODL-India, via Wikimedia Commons
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ममता बनर्जी : बंगाल की राजनीती और रणनीति

विपक्षी पार्टियाँ ममता बनर्जी पर वही आरोप लगा रही हैं, जो कभी ममता बनर्जी स्वयं कम्युनिस्ट पार्टी पर लगाया करती थीं — जैसे चुनावी हिंसा, विपक्षी कार्यकर्ताओं पर हमले और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष नीतियाँ।

Author : न्यूज़ग्राम डेस्क
Reviewed By : Ritik Singh
  • ममता बनर्जी का आंदोलन की राजनीति से सत्ता तक का सफर।

  • लंबे शासन के साथ ममता सरकार पर वही आरोप लगे, जो कभी उन्होंने कम्युनिस्ट शासन पर लगाए थे।

  • बंगाल की राजनीति विश्वास, विवाद और रणनीति के बीच संतुलन खोजती नज़र आती है।

ममता बनर्जी, जिन्हें लोग “दीदी” के नाम से भी जानते हैं, एक ऐसी भारतीय नेता हैं जिन्होंने पिछले 14 वर्षों से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर अपना पांव जमा रखा है। ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता में हुआ था। वह एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थीं। उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से इस्लामिक इतिहास में मास्टर्स, शिक्षायतन कॉलेज से बी.एड और योगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की।

ममता बनर्जी और राजनीति में दिलचस्पी

ममता बनर्जी द्वारा राजनीति में आने का निर्णय कोई रातों-रात लिया गया फैसला नहीं था, बल्कि यह विचार उनके जीवन में शुरू से ही मौजूद था। ममता बनर्जी ने 1970 में कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से पढ़ाई की। वहीं से वह कांग्रेस के स्टूडेंट विंग – छात्र परिषद से जुड़ीं। छात्र परिषद की सदस्य होने के नाते उन्होंने कई प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया। इन्हीं प्रोटेस्ट में से एक प्रोटेस्ट काफी चर्चा में रहा। यह 1975 की बात है, जब ममता बनर्जी ने विरोध प्रदर्शन के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण की गाड़ी के बोनट पर कूदकर प्रोटेस्ट किया। उस समय जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे। यही वह प्रोटेस्ट था, जिसके बाद कांग्रेस नेताओं का ध्यान ममता बनर्जी पर गया। ममता बनर्जी की राजनीतिक शुरुआत तब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी, जब 1984 में उन्होंने कांग्रेस की ओर से कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर सीट से हराया। उस समय ममता बनर्जी देश की सबसे कम उम्र की सांसदों में से एक बनीं। कॉलेज के दिनों से ही ममता बनर्जी को एक कट्टर कांग्रेस समर्थक के रूप में जाना जाता था, लेकिन इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद जब उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं दिया गया, तब उन्होंने अपनी ही पार्टी के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू कर दी।

कांग्रेस से तृणमूल तक का सफ़र

9 अगस्त 1997 को ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेतृत्व को खुले तौर पर चुनौती दी। उनका मानना था कि बंगाल का कांग्रेस नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ लड़ने के बजाय उनके साथ मिलकर काम कर रहा है। इसके बाद 22 दिसंबर 1997 को पार्टी ने ममता बनर्जी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया। यही वह मोड़ था जिसने उनके राजनीतिक जीवन की दिशा बदल दी। इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी अलग पार्टी बनाने का फैसला किया और चुनाव आयोग में आवेदन किया। उनकी पार्टी का नाम रखा गया तृणमूल कांग्रेस (TMC)। 1 जनवरी 1998 को चुनाव आयोग द्वारा तृणमूल कांग्रेस को मान्यता मिल गई। ममता बनर्जी ने न सिर्फ NDA के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ काम किया, बल्कि UPA के नेतृत्व में मनमोहन सिंह सरकार में भी मंत्री पद संभाला। इन दोनों ही राजनीतिक गठबंधनों में उन्होंने रेलवे मंत्री सहित कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी निभाई।

कम्युनिस्ट पार्टी को चुनौती देना

ममता बनर्जी का हमेशा से मानना रहा है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने लगभग 30 वर्षों तक बंगाल में तानाशाही शासन किया। उनके अनुसार, इस दौरान गरीबों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया गया, विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं की हत्या हुई और चुनावों के समय हिंसा को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। किसानों और आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर सरकार के खिलाफ किए गए लगातार विरोध प्रदर्शनों ने ममता बनर्जी को जनता के बीच मजबूत समर्थन दिलाया। यही वह समय था जब उन्हें यह एहसास हुआ कि जनता के समर्थन के बल पर सत्ता परिवर्तन संभव है।इसी रणनीति के तहत ममता बनर्जी ने कम्युनिस्ट सरकार पर एक के बाद एक आरोप लगाए और गरीबों, महिलाओं और हाशिए पर खड़े वर्गों के समर्थन से 2011 में बंगाल की सत्ता हासिल की।

2011 से 2025 तक ममता बनर्जी की सरकार में हुए प्रमुख घोटाले

शारदा चिट फंड घोटाला: शारदा चिट फंड घोटाला एक ऐसा मामला था, जिसमें लोगों को ज्यादा मुनाफे का लालच देकर पैसा जमा कराया गया। नए निवेशकों के पैसों से पुराने निवेशकों को भुगतान किया जाता रहा। आखिरकार 2013 में यह स्कीम पूरी तरह से ध्वस्त हो गई, जिससे लाखों लोगों की जमा पूंजी डूब गई। इस मामले में TMC से जुड़े कई नेताओं के नाम सामने आए, जो किसी भी सरकार के लिए अच्छी छवि नहीं माने जाते।

कोयला तस्करी घोटाला: इस घोटाले में अवैध कोयला तस्करी और राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगे। जांच एजेंसियों के अनुसार, यह तस्करी लंबे समय से राज्य में चल रही थी, जिसने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए।

नारदा स्टिंग ऑपरेशन:नारदा स्टिंग में कुछ तृणमूल कांग्रेस नेताओं को कैमरे पर पैसे लेते हुए दिखाया गया। इसके बाद राज्य की राजनीति में हड़कंप मच गया। हालांकि आरोपित नेताओं ने इसे राजनीतिक साजिश बताया।

राशन वितरण घोटाला:इस घोटाले में गरीबों के लिए आने वाले सरकारी राशन को बाजार में बेचने और फर्जी लाभार्थियों के नाम जोड़ने के आरोप लगे। इससे सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठे।

SSC शिक्षक भर्ती घोटाला: SSC शिक्षक भर्ती घोटाले में मेरिट लिस्ट में गड़बड़ी, OMR शीट से छेड़छाड़ और पैसे लेकर नौकरी देने जैसे गंभीर आरोप सामने आए। कई योग्य उम्मीदवारों को नौकरी से वंचित होना पड़ा।

विपक्षी पार्टी द्वारा आलोचना

आपको बता दें कि आज विपक्षी पार्टियाँ ममता बनर्जी पर वही आरोप लगा रही हैं, जो कभी ममता बनर्जी स्वयं कम्युनिस्ट पार्टी पर लगाया करती थीं — जैसे चुनावी हिंसा, विपक्षी कार्यकर्ताओं पर हमले और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष नीतियाँ। भाजपा ने सरकार पर आरोप लगाए हैं कि ममता सरकार चुनावी हिंसा को बढ़ावा देती है और विशेष धर्म समुदाय के लिए अलग नीतियाँ बनाती है, जैसे छात्रवृत्ति योजनाएँ और मदरसों के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देना, ताकि मुस्लिम समुदाय से अपने वोट बैंक को मजबूत किया जा सके। ममता बनर्जी अपने असीम क्रोध के लिए भी जानी जाती हैं। इसके अलावा, सरकार के कई नेताओं पर गंभीर आपराधिक आरोप, जिनमें बलात्कार जैसे आरोप भी शामिल हैं, सामने आए।ममता बनर्जी ने अपने एक बयान में यह भी कहा था कि लड़कियों को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, जिस पर काफ़ी विवाद हुआ।

क्या यह ममता बनर्जी के प्रति लोगों का विश्वास है?

आज जब 2026 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तब भी ममता बनर्जी की सरकार पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक स्थिरता बनाए हुए है। अब जब ममता बनर्जी को सत्ता में एक दशक से अधिक समय हो चुका है, तो लोगों के मन में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर वह कौन-सी रणनीति है, जिससे उनकी सरकार अब तक बंगाल में अपने पैर जमाए हुए है।

निष्कर्ष

अब सवाल यह है कि क्या यह लोगों का विश्वास है, जिसने ममता बनर्जी की सरकार को अब तक बंगाल में बनाए रखा है, या फिर यह सरकार की सख्त रणनीति और तानाशाही रवैया, जिसने लोगों को अपने जाल में फँसा रखा है?

(Rh/PO)