“क्या ईश्वर का अस्तित्व है?” डिबेट शो में मुफ्ती शमाइल नदवी और जावेद अख्तर के बीच हुई बहस  X
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'खुदा से बेहतर तो हमारे प्रधानमंत्री हैं...', शमाइल नदवी-जावेद अख्तर के बीच हुई तीखी बहस, ईश्वर के होने पर उठे सवाल

द लल्लनटॉप ने “क्या ईश्वर का अस्तित्व है?” इसपर एक डिबेट आयोजित किया था। एक तरफ थे मुफ्ती शमाइल नदवी, जो इस्लामिक स्कॉलर, लेखक और शोधकर्ता हैं। दूसरी तरफ थे जावेद अख्तर, जो मशहूर शायर, लेखक और गीतकार हैं।

Author : न्यूज़ग्राम डेस्क
Reviewed By : Ritik Singh

Summary

  • ईश्वर के अस्तित्व पर जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल नदवी के बीच दर्शन, तर्क और विज्ञान को लेकर चर्चा हुई।

  • मुफ्ती नदवी ने कारण अनंत क्रम और स्वतंत्र इच्छा के जरिए ईश्वर के अस्तित्व का समर्थन किया

  • जावेद अख्तर ने बुराई, अन्याय और विज्ञान के आधार पर सवाल उठाए।

'ओह माई गॉड' फिल्म सबने देखी होगी, इसमें कांजीलाल मेहता का किरदार परेश रावल ने निभाया था। ये किरदार ऐसा था, जो ईश्वर पर बिल्कुल भी यकीन नहीं करता था। ऐसे में ईश्वर हैं, इसका यकीन दिलाने के लिए स्वयं भगवान को धरती पर आना पड़ा। भगवान कृष्ण का किरदार अक्षय कुमार ने निभाया था, और उनका एक डायलॉग है, "दोस्त मैं कृष्णा हूँ इसलिए चमत्कार करता हूँ, चमत्कार करता हूँ इसलिए कृष्णा नही हूँ।"

ये तो फिल्म की बात थी लेकिन ऐसा ही मामला असल जीवन में देखने को मिल रहा है। ईश्वर के अस्तित्व पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। असल में 20 दिसंबर 2025 को द लल्लनटॉप ने “क्या ईश्वर का अस्तित्व है?” इसपर एक डिबेट आयोजित किया था। इस डिबेट में द लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल के संपादक सौरभ द्विवेदी ने दो प्रमुख वक्ताओं को बुलाया था।

एक तरफ थे मुफ्ती शमाइल नदवी (Mufti Shamail Nadwi), जो इस्लामिक स्कॉलर, लेखक और शोधकर्ता हैं। दूसरी तरफ थे जावेद अख्तर, जो मशहूर शायर, लेखक और गीतकार हैं। 20 दिसंबर 2025 को आयोजित हुए कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में इसपर खूब बहस देखी गई। तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला?

मुफ्ती शमाइल नदवी ने क्या कहा?

मुफ्ती शमाइल नदवी और जावेद अख्तर के बीच थ्योरी ऑफ़ कंटिन्जेंसी (Theory of Contingency) को लेकर काफी बहस हुई। नदवी के मुताबिक दुनिया की हर चीज़ किसी न किसी कारण से अस्तित्व में आई है। जब हर चीज़ का कोई कारण है, तो अंत में एक ऐसा कारण होना चाहिए, जो खुद किसी कारण पर निर्भर न हो, वही ईश्वर है। उन्होंने Infinite Regression को लेकर भी बात की।

इसका मतलब है कि अगर हम यह जानने की कोशिश करें कि हर चीज़ कैसे शुरू हुई, तो हम पीछे जाते ही चले जाएंगे और कभी अंत तक नहीं पहुँच पाएंगे। मुफ्ती नदवी के मुताबिक ईश्वर समय से पहले भी थे और समय के बाद भी रहेंगे। ईश्वर शाश्वत हैं और किसी सीमा के भीतर नहीं बंधे हैं।

बता दें कि मुफ्ती शमाइल नदवी इस समय नदवी यूट्यूब और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस्लामी शिक्षा देते हैं और नास्तिकता, विज्ञान तथा सामाजिक विषयों पर खुलकर चर्चा करते हैं। वो मलेशिया से पीएचडी कर रहे हैं। वो मरकज़-अल-वहयैन नामक एक ऑनलाइन संस्था के संस्थापक व प्रमुख भी हैं, जो धार्मिक शिक्षा और समाज सेवा का काम करती है। उन्होंने अपने फाउंडेशन की स्थापना 2024 में की थी।

ईश्वर हैं, तो मासूम लोगों पर अत्याचार क्यों?

मुफ्ती शमाइल नदवी ने जब अपनी बात रखी, तो जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात रखते हुए दुनिया में हो रहे अत्याचारों की ओर ध्यान दिलाया। उनका कहना था कि अगर ईश्वर हैं, तो इतनी बुराई क्यों है? जावेद साहब ने कहा कि अगर ईश्वर मौजूद है, तो गाज़ा में बच्चे क्यों मर रहे हैं? जावेद अख्तर ने दुनिया भर में हो रहे अन्याय, कमजोर लोगों की पीड़ा की बात की। आगे उन्होंने मजाक में ही कहा कि उसकी तुलना में हमारे प्रधानमंत्री बेहतर हैं, कुछ तो ख्याल करते हैं।

साथ ही यह भी बात उठाई की कि अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग ईश्वर माने गए हैं। वहीं, जब अनंत प्रतिगमन (Infinite Regression) को लेकर उनसे सवाल हुआ, तो अख्तर ने ये बात मानी सच की शुरुआत तक पहुँचना आसान नहीं है लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञान हमें जरिया देता है कि पीछे जाकर सच को समझ सके।

ईश्वर से इंसान को मिली सोचने की स्वतंत्रता

इसके बाद मुफ्ती नदवी से बुराई को लेकर सवाल हुआ, तो इसपर उन्होंने कहा कि ईश्वर ने इंसान को स्वतंत्र इच्छा दी है, ताकि वह अच्छा या बुरा चुन सके।उन्होंने कहा कि बहुत से लोग इस स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल करते हैं और दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं। गाज़ा की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनके साथ जुल्म हो रहा है लेकिन शायद ये एक जीवन की परीक्षा है और असली न्याय इस जीवन के बाद होगा। लेकिन इस दुनिया का जीवन एक परीक्षा है। असली न्याय इस जीवन के बाद होगा। जो निर्दोष हैं और जिन्होंने अच्छे कर्म किए हैं, उन्हें इनाम मिलेगा और जो बुरे कर्म करेंगे, उन्हें सज़ा मिलेगी।

साइंस और रीजनिंग पर हुई चर्चा

इस डिबेट शो में मुफ्ती शमाइल नदवी और जावेद अख्तर के बीच साइंस और रीजनिंग के मुद्दे पर भी बहस हुई। अख्तर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दुनिया और इंसानों के विकास का असली कारण 'साइंस और रीजनिंग ही है। उनका मानना था कि धर्म और आस्था विज्ञान पर आधारित नहीं होते, बल्कि इस अटूट विश्वास पर टिके होते हैं कि कोई परलौकिक शक्ति (ईश्वर) हमारे ऊपर है, जिस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।

वहीं, मुफ्ती ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि धर्म विज्ञान को तरक्की करने या विकसित होने से नहीं रोकता, बल्कि धर्म मानव सभ्यता के लिए एक जरूरी जरिया है। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि विज्ञान चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, वह केवल भौतिक चीजों (Physical things) उसकी व्याख्या कर सकता है। रूहानियत या मेटाफिजिक्स (Metaphysics) जैसी चीजों को विज्ञान नहीं समझा सकता।

वहीं, इस दौरान सवाल जवाब का सेशन भी चला। इसमें दोनों से सवाल हुआ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के छात्र ने सवाल किया उसने सर सैयद अहमद खान (Syed Ahmed Khan) का हवाला देते हुए कहा कि इंसान को खुदा के वजूद को नकारने के बजाय, उसे अपनी समझ और बुद्धि की सीमाओं के भीतर खोजना चाहिए।

जावेद अख्तर ने इसका जवाब देते हुए कहा कि मुझे अपनी बुद्धि की सीमाओं के भीतर कहीं भी खुदा नहीं मिला।

इसके बाद जेएनयू (JNU) के प्रोफेसर ने सवाल किया। उन्होंने मुफ्ती नदवी से पूछा कि अगर खुदा ने सबको 'अपनी मर्जी से काम करने की आजादी' (Free Will) दी है, तो जो लोग आतंकवाद फैलाते हैं, वे भी तो अपनी मर्जी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं; फिर खुदा उन्हें ऐसा करने की इजाजत क्यों देता है?

इसका जवाब देते हुए मुफ्ती नदवी बोले कि खुदा ने आजादी इसलिए दी ताकि इंसान अपनी मर्जी से काम कर सके। लेकिन, जो लोग अपनी इस आजादी का गलत इस्तेमाल करेंगे उन्हें सजा मिलेगी, और जो इसका सही इस्तेमाल करेंगे उन्हें इनाम मिलेगा।

'फोस्टरिंग इन्टलैक्चुल डायलॉग' पर बहस

'फोस्टरिंग इन्टलैक्चुल डायलॉग' (Fostering Intellectual Dialogue) जिसे बौद्धिक संवाद कहते हैं। इसको लेकर भी बहस हुई। इस बहस का मकसद ये नहीं था कि हमे ये साबित करना है कि ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं, बल्कि इसका मकसद था, दोनों पक्षों के तर्कों को सरल शब्दों में सबके सामने रखना।

भारत का संविधान यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद के धर्म को मान सकता है, ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, और अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन कर सकता है।

भारतीय संविधान नागरिकों पर कोई एक विशेष धर्म नहीं थोपता, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकार देता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) देश है, जहाँ हर धर्म का सम्मान किया जाता है। यहाँ नियम और कानून संविधान के अनुसार चलते हैं, किसी विशेष धार्मिक किताब या शास्त्र के आधार पर नहीं। इस बहस का स्वरूप भी पूरी तरह से इसी संवैधानिक भावना के अनुरूप था।

वहीं, जावेद अख्तर ने सत्र का अंत बहुत ही हल्के-फुल्के अंदाज में किया। उन्होंने कहा कि बहस खत्म होने के बाद, वे और मुफ्ती नदवी बाकी लोगों के साथ मिलकर रात का खाना खाएंगे। अख्तर की इस बात से यह समझ आता है कि एक अच्छी बहस कैसी होनी चाहिए? विचारों के मतभेद जरूर हो सकते हैं लेकिन बावजूद इसके एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

बता दें कि इस बहस में कई भारीभरकम शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, तो सौरभ द्विवेदी ने सभी से ये कहा कि वो कम से कम सरल भाषा का इस्तेमाल करें क्योंकि इसमें फिलोस्पी (philosophy) पर काफी बात हुई। इसमें ईश्वरवाद और नास्तिकता पर भी चर्चा हुई थी।