भारत की राजनीति (Indian Politics) हमेशा से परिवारवाद और वंशवाद (Nepotism and Dynasty) के लिए चर्चा में रही है। सत्ता की कुर्सी सिर्फ संघर्ष और मेहनत से नहीं, बल्कि कई बार पारिवारिक रिश्तों के सहारे भी मिलती रही है। राजनीति में अक्सर देखा गया है कि जिस पिता ने अपने संघर्ष से पार्टी खड़ी की, सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ीं और जनता के बीच जगह बनाई उनकी विरासत बेटे या बेटों तक पहुँच गई। यह परंपरा केवल एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में फैली हुई है। नेहरू-गांधी परिवार (Nehru Gandhi Family) से लेकर मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव तक, लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से लेकर करुणानिधि और एम.के. स्टालिन तक ऐसी अनगिनत जोड़ियाँ हैं (Father-son duos in politics) जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा तय की। कुछ बेटों ने पिता की विरासत को और मजबूत किया, जनता के बीच अपनी अलग पहचान बनाई और सत्ता के शीर्ष तक पहुँचे। वहीं कुछ ऐसे भी रहे, जिनके हाथ में आई विरासत धीरे-धीरे ढह गई और राजनीति में उनका नाम सिर्फ इतिहास तक सिमट कर रह गया। यानी राजनीति में “बाप–बेटे की जोड़ियाँ” सत्ता, संघर्ष और विरासत का ऐसा खेल है जहाँ सफलता और असफलता दोनों की दास्तानें मिलती हैं। आज हम जानेंगे कि किसने चमकाई और किसने गँवाई अपनी राजनीतिक विरासत।
नेहरू (Nehru) स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और लंबे समय तक कांग्रेस की राजनीति पर छाए रहे। उनकी बेटी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने भी प्रधानमंत्री बनकर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और "आयरन लेडी" (Iron Lady) कहलायीं। इंदिरा के बाद उनके बेटे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा एक आतंकी हमले में समाप्त हो गई। तीनों पीढ़ियों ने भारतीय राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी। लेकिन वहीं राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी राजनीति में कुछ खास करिश्मा नहीं दिखा पाए।
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) को "धरतीपुत्र" कहा गया और उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी को मजबूत किया। उनके बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी मुख्यमंत्री बने और उन्होंने युवाओं को जोड़ने में सफलता पाई। अखिलेश आज भी पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। पिता–पुत्र दोनों ही बड़े नेता साबित हुए।
लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) बिहार के सबसे प्रभावशाली नेताओं में रहे और मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रहे। उनके बेटे तेज प्रताप (Tej Pratap) राजनीति में सक्रिय रहे लेकिन खास सफल नहीं हुए। जबकि तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने और आज बिहार में RJD का चेहरा माने जाते हैं। यहाँ पिता और बेटे, दोनों ही बड़े खिलाड़ी रहे, लेकिन तेजस्वी ने ज्यादा प्रभाव डाला।
बाल ठाकरे (Baal Thackeray) ने शिवसेना की नींव रखी और मराठी राजनीति में अपनी धाक जमाई। उनके बेटे उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और पार्टी की बागडोर संभाली। अब आदित्य ठाकरे भी विधानसभा सदस्य और युवा नेता के तौर पर उभर रहे हैं। तीन पीढ़ियों ने राजनीति में अपनी पकड़ बनाई, हालाँकि मौजूदा शिवसेना में बगावत ने चुनौतियाँ खड़ी की हैं।
करुणानिधि पाँच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने और DMK को मज़बूत किया। उनके बेटे एम.के. स्टालिन ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए वर्तमान में मुख्यमंत्री का पद संभाला है। पिता और बेटे दोनों ही बेहद सफल रहे और तमिलनाडु की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी।
रामविलास पासवान लंबे समय तक बिहार और केंद्र की राजनीति में मंत्री रहे और दलित राजनीति का बड़ा चेहरा बने। उनके बेटे चिराग पासवान अभी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के प्रमुख हैं। हालांकि वे अभी पिता जैसी ऊँचाई पर नहीं पहुँचे, लेकिन युवाओं में उनकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ रही है।
हरियाणा की राजनीति में देवीलाल बड़े किसान नेता और मुख्यमंत्री रहे। उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी कई बार मुख्यमंत्री बने। अब तीसरी पीढ़ी में अजय, अभय और दुष्यंत चौटाला सक्रिय हैं। दुष्यंत वर्तमान में उपमुख्यमंत्री भी बने। तीन पीढ़ियों ने सक्रिय राजनीति की, हालाँकि विवादों और बिखराव ने असर डाला।
NTR तेलुगु राजनीति के दिग्गज थे और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने TDP की कमान संभाली और कई बार मुख्यमंत्री बने। अब उनके बेटे लोकश नायडू भी राजनीति में कदम रख चुके हैं। तीनों ने राजनीति में अपनी-अपनी पहचान बनाई।
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे बड़े नेता रहे और केंद्र में भी प्रभाव डाला। उनके भतीजे अजित पवार उपमुख्यमंत्री रहे और लगातार सक्रिय हैं। तीसरी पीढ़ी में पार्थ पवार राजनीति में आए, लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिली। यहाँ पिता–भतीजे तक विरासत चमकी, लेकिन अगली पीढ़ी कमजोर रही।
देवेगौड़ा भारत के प्रधानमंत्री भी रहे और कर्नाटक की राजनीति में बड़ा नाम रहे। उनके बेटे कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और रेवन्ना भी मंत्री पद पर रहे। परिवार की राजनीति ने राज्य में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। उनके बेटे उमर अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री बने और युवाओं के बीच लोकप्रिय नेता बने। यहाँ पिता और बेटे दोनों ने ही सत्ता का स्वाद चखा और जनता में पकड़ बनाई।
भजनलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे और बड़े नेता माने गए। उनके बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप बिश्नोई राजनीति में आए, लेकिन पिता जैसी सफलता नहीं पा सके। कुलदीप ने पार्टी बदली और सक्रिय रहे, मगर विरासत उतनी मजबूत नहीं रही।
राजनाथ सिंह बीजेपी के कद्दावर नेता, केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी अध्यक्ष रहे। उनके बेटे पंकज सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक हैं और धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहे हैं। पिता राष्ट्रीय स्तर पर बेहद सफल रहे, जबकि बेटे की यात्रा अभी शुरुआती चरण में है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे और बड़े नेता बने। उनके बेटे रणिंदर सिंह खेल प्रशासक रहे और राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं हो पाए। यहाँ पिता ने ही असली पहचान बनाई।
गोपीनाथ मुण्डे बीजेपी के दिग्गज नेता और महाराष्ट्र के बड़े चेहरे रहे। उनकी बेटी पंकजा मुण्डे मंत्री बनीं और लोकप्रिय रहीं, जबकि बेटा धनंजय मुण्डे NCP से जुड़े और मंत्री पद तक पहुँचे। दोनों ही राजनीति में सक्रिय हैं, हालांकि पिता जितनी ऊँचाई अब तक नहीं पा सके।
भारतीय राजनीति में परिवारवाद की परंपरा गहरी जड़ें जमा चुकी है। कहीं बेटों ने पिता से आगे निकलकर नई ऊँचाइयाँ छुईं, तो कहीं विरासत संभालने में नाकाम रहे। यह साफ है कि राजनीति केवल वंश परंपरा से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत करिश्मे और जनता से जुड़ाव से आगे बढ़ती है। [Rh/SP]