"जहां हालात घुटने टेक दें, वहां हौसले खड़े हो जाएं, वही होती है असली कामयाबी!" भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनने वाली द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu India's 15th President) का जीवन ठीक ऐसा ही उदाहरण है। एक सामान्य आदिवासी परिवार में जन्मी एक लड़की, जिसने न सिर्फ जीवन की कठिनाइयों का सामना किया बल्कि हर हार को चुनौती में बदला। कभी एक क्लर्क के तौर पर नौकरी शुरू करने वाली द्रौपदी, आज देश की सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हैं।
उनका सफर महज़ राजनीति का नहीं, बल्कि सपनों, संघर्षों और साहस की एक प्रेरक गाथा है। उनकी ज़िंदगी यह साबित करती है कि पृष्ठभूमि चाहे जैसी भी हो, अगर इरादे बुलंद हों तो कोई मंज़िल दूर नहीं होती। यह कहानी है आत्मबल की, आत्मविश्वास की, और उस महिला की, जो इतिहास में दर्ज हो चुकी है एक ऐसी नेता के रूप में, जिसने "बिना शोर मचाए क्रांति की राह बनाई।”
प्रारंभिक जीवन: ओडिशा के सुदूर गांव से शुरुआत
20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के छोटे से गांव बाईदापोसी में जन्मी एक लड़की को शायद तब खुद भी नहीं पता था कि एक दिन उसका नाम देश की सर्वोच्च कुर्सी से जोड़ा जाएगा। द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति (India' First Tribal Woman President) है लेकिन यहां तक का उनका सफ़र आसान नहीं था। उनके पिता और दादा गांव के मुखिया थे, जो 'पंचायती राज व्यवस्था' के तहत कार्य करते थे।
गरीबी, सामाजिक सीमाएँ और संसाधनों की कमी, इन सबका सामना द्रौपदी ने बचपन से ही किया। बचपन में उन्होंने मिट्टी के घर में रहकर पढ़ाई की, उस समय बिजली तक नहीं हुआ करती थी, बावजूद इसके, पढ़ाई के प्रति उनका लगाव कम नहीं हुआ। शिक्षा ही उनके जीवन की दिशा बदलने वाली साबित हुई।माँ-बाप ने भी उनके जज़्बे को समझा और उन्हें पढ़ने की पूरी आज़ादी दी। गरीबी, सामाजिक बेड़ियाँ और संसाधनों की कमी इन सबसे लड़ते हुए द्रौपदी ने साबित कर दिया कि सफलता खून में नहीं, हौसले में होती है।
शिक्षा और नौकरी की शुरुआत: शिक्षिका से क्लर्क तक
संघर्षों भरे बचपन के बाद द्रौपदी मुर्मू (Indian President Draupadi Murmu) ने अपनी पढ़ाई को कभी पीछे नहीं छोड़ा। सीमित संसाधनों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने भुवनेश्वर के रामदेवी वीमेन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की जो उस दौर में किसी आदिवासी लड़की के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। पढ़ाई पूरी होते ही उन्होंने घर की जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया और नौकरी की तलाश शुरू की। जल्द ही उन्हें ओडिशा सरकार के जल संसाधन विभाग में जूनियर असिस्टेंट (क्लर्क) की नौकरी मिली। यह उनकी पहली सरकारी नौकरी थी।
हालांकि यह पद बहुत ऊँचा नहीं था, लेकिन द्रौपदी के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में यह एक अहम कदम था। कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर एक और बड़ा फैसला लिया एक शिक्षक बनने का। उन्होंने रायरंगपुर में एक आदिवासी स्कूल में बतौर शिक्षिका पढ़ाना शुरू किया। बच्चों के बीच रहना, उन्हें पढ़ाना, उनके जीवन को आकार देना इस काम ने द्रौपदी मुर्मू को अंदर से गहराई से बदल दिया। यहीं से उनके भीतर समाज सेवा और नेतृत्व का बीज अंकुरित हुआ, जिसने उन्हें राजनीति की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
राजनीतिक करियर की शुरुआत: भाजपा से जुड़ाव
शिक्षिका और क्लर्क के रूप में काम करने के बाद द्रौपदी मुर्मू का जीवन एक नया मोड़ लेने वाला था। समाज सेवा की भावना और ज़मीनी स्तर पर काम करने का अनुभव उन्हें राजनीति की ओर खींच लाया। वर्ष 1997 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सदस्यता ली और यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई। उनका पहला कदम रायरंगपुर नगर पंचायत से पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ना था, जिसे उन्होंने जीतकर राजनीति में अपना पहला निशान छोड़ा। उनकी साफ़ छवि, सरल जीवनशैली और आदिवासी समुदाय के लिए उनके काम ने उन्हें जल्द ही लोकप्रिय बना दिया। पार्टी नेतृत्व ने भी उनके नेतृत्व कौशल को पहचाना और उन्हें ओडिशा भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष बनाया गया।
2000 से 2004 के बीच ओडिशा में भाजपा और बीजेडी गठबंधन की सरकार बनी, और द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को वाणिज्य और परिवहन मंत्री के रूप में कैबिनेट में स्थान मिला। बाद में उन्हें मत्स्य पालन और पशुपालन मंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई। यह उनके लिए एक बड़ा मौका था। एक आदिवासी महिला जो कभी गांव की धूलभरी गलियों में बच्चों को पढ़ाती थी, अब राज्य की नीतियाँ तय कर रही थी। उन्होंने अपने मंत्रालयों में पारदर्शिता, महिला सशक्तिकरण और आदिवासी कल्याण को प्राथमिकता दी। यही वजह रही कि उनका कद पार्टी और जनता दोनों के बीच लगातार बढ़ता गया।
राज्यपाल बनने का गौरव
राजनीतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय रहने के बाद द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के जीवन में एक ऐसा पड़ाव आया, जिसने उन्हें पूरे देश में एक नई पहचान दिलाई। 2015 में, उन्हें झारखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया। यह सिर्फ एक पद नहीं था, बल्कि इतिहास रचने वाला क्षण था। वे झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं और साथ ही भारत की पहली आदिवासी महिला, जिन्होंने किसी राज्य का राज्यपाल बनने का गौरव प्राप्त किया।
उनकी नियुक्ति उस समय हुई जब झारखंड में सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ अपने चरम पर थीं। लेकिन अपनी शांत, संतुलित और विचारशील छवि के साथ द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने इन हालातों को बखूबी संभाला। उन्होंने जनजातीय समुदायों के हितों, शिक्षा, महिला सुरक्षा और पारदर्शी प्रशासन पर विशेष ध्यान दिया। राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल सरलता, सेवा और संवेदनशील नेतृत्व की मिसाल बना। वे किसी राजनीतिक दबाव में नहीं आईं और कई बार विधेयकों पर अपने विचार रखकर यह सिद्ध किया कि वे केवल औपचारिक पदाधिकारी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार संवैधानिक प्रतिनिधि हैं।
राष्ट्रपति बनने तक का सफर
द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) का जीवन एक ऐसी मिसाल है, जो बताता है कि कठिनाइयों से लड़कर भी कोई सर्वोच्च मुकाम तक पहुंच सकता है। झारखंड की राज्यपाल रहते हुए उनके कार्य, सादगी और आदिवासी समुदाय के लिए प्रतिबद्धता ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मानित चेहरा बना दिया। 2022 में जब राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा हुई, तो एनडीए (NDA) ने उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर सभी को चौंका दिया। एक आदिवासी महिला, जिनकी जड़ें गांव की मिट्टी से जुड़ी थीं, अब देश की सबसे बड़ी संवैधानिक पद की दौड़ में थी।
उनका नाम सामने आते ही देशभर में उत्साह और गर्व की लहर दौड़ गई। 18 जुलाई 2022 को मतदान हुआ और 21 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया। वह न केवल भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनीं, बल्कि देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव भी हासिल किया। उनका चुनाव इस बात का प्रतीक था कि भारत अब सच में समावेश और समानता की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
सबकुछ खोया पर फिर भी हौसला नहीं टूटा
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन जितना प्रेरक है, उनका निजी जीवन उतना ही दर्द से भरा और संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने जीवन में ऐसे झटके सहे हैं, जो किसी को भी तोड़ सकते थे, लेकिन उन्होंने हर बार खुद को उठाया और आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने श्री श्याम चरण मुर्मू (Draupadi Murmu Husband) से विवाह किया था, जो एक बैंक में कार्यरत थे। इस दंपती के तीन संतानें थीं, दो बेटे और एक बेटी। लेकिन नियति ने उनसे एक के बाद एक उनके सबसे बड़े सहारे छीन लिए।
पहले एक बेटे की आकस्मिक मृत्यु हुई, फिर कुछ समय बाद दूसरे बेटे ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। इतना ही नहीं, पति श्याम चरण का भी असमय निधन हो गया। एक मां और पत्नी के रूप में यह त्रासदी किसी भी इंसान को पूरी तरह तोड़ सकती थी, लेकिन द्रौपदी मुर्मू ने इस असीम दुख को भी अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने खुद कहा था —
“मैंने अंधकार देखा है, लेकिन अंधेरे में रास्ता भी ढूंढा है।”
आज उनकी जीवनी सिर्फ एक राष्ट्रपति बनने की कहानी नहीं है, बल्कि एक महिला की आत्मबल, धैर्य और साहस की जीवंत मिसाल है। अपने दुखों को उन्होंने कभी अपना बोझ नहीं बनने दिया, बल्कि उन्हें समाज सेवा का ईंधन बनाया।
चुनौतियाँ और योगदान
राष्ट्रपति बनने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू सादगी से जुड़ी रही हैं। वे पर्यावरण, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं। उनकी यात्रा यह बताती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों, लक्ष्य और नीयत साफ हो तो सफलता ज़रूर मिलती है।
द्रौपदी मुर्मू आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत की करोड़ों महिलाओं और युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी अपनी मंज़िल की ओर चलना नहीं छोड़ा। एक शिक्षिका से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का उनका सफर बताता है — की "अगर हिम्मत हो तो ज़िंदगी किसी को भी हारने नहीं देती!" [Rh/SP]