भारतीय राजनीति (Indian Politics) हमेशा से ही कहानियों और रिश्तों से भरी रही है। यहाँ सत्ता की गलियों में सिर्फ़ नेताओं का संघर्ष ही नहीं, बल्कि कई बार उनके परिवार और जीवनसाथी भी इस सफ़र का अहम हिस्सा बनते हैं। राजनीति की दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ पति–पत्नी (Husband Wife In Politics) दोनों ने साथ मिलकर न सिर्फ राजनीति जॉइन की, बल्कि लोकसभा तक पहुँचे और अपनी पहचान बनाई। यह सफ़र आसान नहीं होता, क्योंकि राजनीति अपने आप में चुनौतियों से भरा हुआ है। लेकिन जब पति–पत्नी (Husband Wife In Politics) एक ही मंच पर खड़े होकर लोगों की सेवा का संकल्प लेते हैं, तो यह कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है। कुछ जोड़े ऐसे रहे जिन्होंने अपनी-अपनी पहचान अलग-अलग बनाई और बाद में जनता के प्रतिनिधि बनकर संसद पहुँचे। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने एक-दूसरे का साथ निभाते हुए राजनीति में कदम रखा और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई।ये कपल्स इस बात का उदाहरण हैं कि राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि साझेदारी और टीमवर्क का भी प्रतीक हो सकती है। लोकसभा की इन जोड़ियों ने यह साबित किया कि अगर इरादे मज़बूत हों और लक्ष्य सेवा का हो, तो पति–पत्नी मिलकर भी बड़े मुक़ाम हासिल कर सकते हैं।
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनकी पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) भारतीय राजनीति की एक चर्चित जोड़ी हैं। अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के बेटे हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद राजनीति में कदम रखा और साल 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट (Kannauj Lok Sabha seat) से सांसद बने। धीरे-धीरे वे पार्टी की युवा छवि बने और 2012 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। वहीं डिंपल यादव (Dimple Yadav) का राजनीति में सफ़र तब शुरू हुआ जब 2009 में उन्होंने पहली बार फिरोज़ाबाद से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections from Firozabad) लड़ा, हालांकि वह हार गईं। इसके बाद 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर खाली हुई कन्नौज सीट से वे सांसद चुनी गईं। डिंपल यादव समाजवादी पार्टी की सक्रिय नेता हैं और कई बार लोकसभा में जनता के मुद्दे उठाती रही हैं।
ए. के गोपालन (A. K. Gopalan) और सुशीला गोपालन (Suseela Gopalan) ने मिलकर भारतीय वामपंथी राजनीति में गहरी छाप छोड़ी। AKG स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के साथ राजनीति में सक्रिय हुए। 1962 में CPI में विभाजन होने पर उन्होंने CPI(M) की स्थापना में अग्रिम भूमिका निभाई। सुशीला गोपालन ने 1948 में राजनीती में कदम रखा, जब वे सिर्फ 18 वर्ष की थीं। उन्होंने छात्र राजनीति और ट्रेड यूनियन आंदोलन से शुरुआत की, खासकर कोयर मजदूरों के हितों के लिए काम किया। उन दोनों ने सार्वजनिक जीवन में एक-दूसरे के साथ काम किया AKG जहां संसद में कई बार बने, वहीं सुशीला गोपालन ने राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर सांसद, मंत्री और महिला मजदूरों/महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1967 में जब सुशीला गोपालन पहली बार लोकसभा पहुंची, उसी समय AKG भी सांसद थे। इस तरह एक ही समय पर पति-पत्नी के रूप में लोकसभा सदस्य बनने का गौरव यह जोड़ी साझा करती है। उन्होंने न सिर्फ नेता के रूप में बल्कि विचारक, संगठक और जनहित कार्यकर्ताओं की तरह काम किया। उनकी साझेदारी में वामपंथी विचारधारा, सांझा संघर्ष, महिलाओं और किसानों के हितों के लिए उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से दिखती है।
सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (Satyendra Narayan Sinha) और उनकी पत्नी किशोरी सिन्हा (Kishori Sinha) बिहार की राजनीति में एक चर्चित दंपत्ति रहे। अरिस्टोक्रेटिक और संपन्न पृष्ठभूमि से आने वाले सत्येन्द्र बाबू (Satendra Babu) स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और 1952 से लगातार छह बार औरंगाबाद से लोकसभा के सदस्य चुने गए (Elected as a Member of Parliament from Aurangabad)। 1989-90 में वे बिहार के मुख्यमंत्री (CM Of Bihar) भी बने। दूसरी ओर, किशोरी सिन्हा ने भी राजनीति में उल्लेखनीय पहचान बनाई। वे 1980 और 1989 के बीच वैशाली से लोकसभा सांसद (Member of Parliament From Vaishali) रहीं और महिला अधिकारों एवं सामाजिक मुद्दों पर लगातार आवाज उठाती रहीं। राजनीति में इस दंपत्ति की समानांतर मौजूदगी ने उन्हें खास बना दिया।
जहां सत्येन्द्र बाबू प्रशासनिक अनुभव और संगठनात्मक कौशल के लिए जाने जाते थे, वहीं किशोरी सिन्हा समाज के हाशिए पर खड़े तबकों और महिलाओं की आवाज बनकर उभरीं। दोनों ने मिलकर बिहार की राजनीति में परिवार-आधारित जनप्रतिनिधित्व और विचारधारा को एक नए आयाम दिए। इस कारण इन्हें राजनीति में "आदर्श दंपत्ति" ("Ideal Couple") के रूप में जाना जाता है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह (Former Prime Minister Charan Singh) और उनकी पत्नी गायत्री देवी (Gayatri Devi) भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट दंपत्ति के रूप में जाने जाते हैं। किसान नेता के रूप में पहचान रखने वाले चरण सिंह तीन बार लोकसभा सांसद बने और 1980 में उत्तर प्रदेश के बागपत संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए। इसी चुनाव में उनकी पत्नी गायत्री देवी भी कैराना सीट से लोकसभा पहुँचीं। इस तरह 1980 से 1984 तक दोनों ने साथ-साथ संसद में प्रतिनिधित्व किया। चरण सिंह जहां किसानों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और भूमि सुधार के लिए अपनी नीतियों के कारण चर्चित रहे, वहीं गायत्री देवी ने स्थानीय स्तर पर जनता की समस्याओं को संसद में उठाकर अपनी अलग पहचान बनाई। इस दंपत्ति की समानांतर उपस्थिति ने न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूती दी बल्कि यह भी साबित किया कि राजनीति में पति-पत्नी मिलकर जनसेवा का नया अध्याय लिख सकते हैं।
भारतीय राजनीति में मधु दंडवते (Madhu Dandavate) और उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते (Pramila Dandavate) एक ऐसे दंपत्ति थे जिन्होंने समान विचारधारा और सेवा की भावना के साथ राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। मधु दंडवते (Madhu Dandavate), जो पाँच बार सांसद रहे और रेल मंत्री व वित्त मंत्री जैसे अहम पदों पर कार्य कर चुके थे, 1980 में महाराष्ट्र के राजापुर लोकसभा क्षेत्र से जनता पार्टी के टिकट पर चुने गए। उसी चुनाव में उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते ने बॉम्बे नॉर्थ सेंट्रल सीट से जीत हासिल की। 1980 से 1984 तक सातवीं लोकसभा में दोनों ने एक साथ जनता का प्रतिनिधित्व किया (Both of them together represented the people in the Seventh Lok Sabha)। मधु दंडवते अपनी ईमानदार और स्पष्ट राजनीति के लिए जाने जाते थे, वहीं प्रमिला दंडवते ने महिला अधिकारों और सामाजिक न्याय के मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाया। राजनीति में इनकी साझी उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि वैचारिक एकजुटता और पारदर्शिता के साथ पति-पत्नी मिलकर समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
बिहार की राजनीति में पप्पू यादव (Pappu Yadav) और रंजीत रंजन (Ranjeet Ranjan) एक ऐसे दंपत्ति हैं जिनकी उपस्थिति ने लोकसभा में एक अलग ही पहचान बनाई। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ने कई बार अलग-अलग दलों से चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 2004 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने राजद (RJD) के टिकट पर मधेपुरा से जीत दर्ज की, जबकि उनकी पत्नी रंजीत रंजन लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) से सहरसा सीट से सांसद बनीं। यह वह दौर था जब एक ही परिवार के दो सदस्य अलग-अलग पार्टियों से संसद पहुँचे। इसके बाद 2014 में भी दोनों ने लोकसभा में एंट्री की।
पप्पू यादव फिर मधेपुरा से विजयी हुए, जबकि रंजीत रंजन ने कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से जीत हासिल की। राजनीति में इनकी यह साझेदारी बताती है कि वैचारिक मतभेद के बावजूद पति-पत्नी जनसेवा के लिए समान रूप से प्रतिबद्ध रह सकते हैं। इसीलिए इनका नाम भारतीय राजनीति में चर्चित राजनीतिक जोड़ों में गिना जाता है।
बिहार के राजनीति के चर्चित दंपत्ति आभा महतो (Abha Mahato) और शैलेन्द्र महतो (Shailendra Mahato) ने भारतीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है। शैलेंद्र महतो पूर्व में लोकसभा सांसद रहे और झारखंड की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी पत्नी आभा महतो (Abha Mahato) ने भी अपने राजनीतिक सफर में सफलता हासिल की और झारखंड के जमशेदपुर/पारसीबाग क्षेत्र (Jamshedpur Area) से लोकसभा सांसद चुनी गईं। ये दंपत्ति अपने क्षेत्र की जनता के बीच लोकप्रिय रहे हैं और उन्होंने स्थानीय विकास, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर काम किया। राजनीतिक दृष्टि से यह जोड़ी यह दिखाती है कि पति-पत्नी मिलकर न सिर्फ जनप्रतिनिधित्व कर सकते हैं बल्कि अपने क्षेत्र और पार्टी के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।हालांकि दोनों ने हमेशा एक ही पार्टी से राजनीति नहीं की, फिर भी उनके राजनीतिक करियर ने यह साबित किया कि परिवार के सहयोग और जनता की सेवा के लिए जोड़ीदार होना कितना महत्वपूर्ण है।
पंजाब की राजनीति में परनीत कौर (Preneet Kaur) और उनके पति अमरिन्दर सिंह (Amarinder Singh) एक चर्चित और प्रभावशाली जोड़ी रहे हैं। अमरिन्दर सिंह (Amarinder Singh Former CM Of Punjab) पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और राज्य में लंबे समय तक राजनैतिक नेतृत्व का अनुभव रखते हैं। उनके प्रशासनिक कौशल और किसान एवं ग्रामीण हितों के लिए किए गए प्रयासों ने उन्हें पंजाब में लोकप्रिय बनाया। Preneet Kaur ने भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद चुनी गईं। उन्होंने अपने कार्यकाल में महिला अधिकार, शिक्षा और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता दी। इस दंपत्ति ने मिलकर पंजाब की राजनीति में एक मजबूत पहचान बनाई और जनता के बीच सम्मान प्राप्त किया। हालांकि दोनों ने अलग-अलग राजनीतिक पद संभाले, लेकिन उनके साझा राजनीतिक सफर ने यह दिखाया कि पति-पत्नी मिलकर भी जनता की सेवा और क्षेत्र के विकास में समान रूप से योगदान दे सकते हैं।
कोलकाता की राजनीति में निर्बेद रॉय (Nirbed Roy) और उनकी पत्नी माला रॉय (Mala Roy) एक प्रभावशाली राजनीतिक जोड़ी के रूप में जानी जाती हैं। Nirbed Roy पूर्व में विधायक (MLA) रहे और कोलकाता की स्थानीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहे। उनके अनुभव और संगठनात्मक क्षमता ने क्षेत्रीय राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ बनाई। Mala Roy वर्तमान में कोलकाता दक्षिण (Kolkata Dakshin) लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। उन्होंने संसद में कई महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को उठाया है, खासकर शहर के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सुधार के लिए।राजनीति में इस दंपत्ति की जोड़ी यह दिखाती है कि पति-पत्नी मिलकर अलग-अलग पदों पर रहते हुए भी जनता की सेवा में योगदान दे सकते हैं। Nirbed Roy और Mala Roy दोनों ने अपनी सक्रियता और प्रतिबद्धता से यह साबित किया कि राजनीतिक परिवारों में सहयोग और अनुभव का संतुलन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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बिहार की राजनीति में कंकर मुंजारे (Kankar Munjare) और उनकी पत्नी अनुभा मुंजारे (Anubha Munjare) एक सक्रिय राजनीतिक जोड़ी के रूप में सामने आते हैं। अनुभा मुंजारे (Kankar Munjare) ने पूर्व में विधायक (MLA) और सांसद (MP) के रूप में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने स्थानीय जनता की समस्याओं को संसद और विधानसभा में उठाने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की। अनुभा मुंजारे (Anubha Munjare) वर्तमान में कांग्रेस पार्टी की विधायक (MLA) हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर काम किया है। उनके प्रयासों ने स्थानीय जनता के बीच उन्हें लोकप्रिय बनाया है। राजनीति में इस दंपत्ति की जोड़ी यह उदाहरण प्रस्तुत करती है कि पति-पत्नी अलग-अलग पदों पर रहते हुए भी राजनीतिक जिम्मेदारी निभा सकते हैं और जनता की सेवा कर सकते हैं। Kankar और Anubha Munjare दोनों ने अपनी प्रतिबद्धता और मेहनत से यह साबित किया कि परिवार में राजनीतिक सहयोग और अनुभव का संतुलन कितना महत्वपूर्ण है। [Rh/SP]