“Weakling” or “Puppet” Prime Minister Sora Ai
राजनीति

Birth Anniversary: क्यों कहा जाता है डॉ. मनमोहन सिंह को पपेट सीएम?

भारतीय राजनीति में डॉ. मनमोहन सिंह का नाम एक ऐसे नेता के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को संकट से निकालकर नई दिशा दी। 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब उन्हीं के नेतृत्व में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों ने देश को प्रगति की राह पर डाला।

न्यूज़ग्राम डेस्क

भारतीय राजनीति में डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का नाम एक ऐसे नेता के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को संकट से निकालकर नई दिशा दी। 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट (Economic Crisis) से जूझ रहा था, तब उन्हीं के नेतृत्व में उदारीकरण (Liberalization), निजीकरण (Privatization) और वैश्वीकरण (Globalization) की नीतियों ने देश को प्रगति की राह पर डाला। उनकी सादगी, ईमानदारी और विद्वता को हमेशा सम्मान मिला है। लेकिन इसके साथ ही उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल पर यह आरोप भी लगता रहा कि वे स्वतंत्र निर्णय लेने में कमजोर रहे और कांग्रेस पार्टी, खासकर सोनिया गांधी के निर्देशों पर कार्य करते थे। विपक्ष और मीडिया ने उन्हें अक्सर “रबर स्टाम्प” या “पपेट पीएम” कहकर संबोधित किया। यह धारणा क्यों बनी, इसके पीछे की राजनीतिक परिस्थितियाँ, गठबंधन सरकार की मजबूरियाँ और कांग्रेस हाईकमान की भूमिका को समझना ज़रूरी है। इस लेख में हम इन्हीं सवालों पर चर्चा करेंगे।

एक अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री तक का सफर

Messiah of Indian Economy

डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब में हुआ। वे बचपन से ही पढ़ाई में बेहद होशियार थे और आगे जाकर ऑक्सफोर्ड व कैम्ब्रिज जैसी विश्व की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों से शिक्षा प्राप्त की। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उन्होंने अपनी पहचान बनाई और भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्त मंत्री जैसे अहम पदों पर कार्य किया। 1991 में जब भारत आर्थिक संकट (Economic Crisis) से जूझ रहा था, तब उनके बनाए उदारीकरण और सुधारों ने देश की दिशा बदल दी। यही कारण था कि उन्हें एक “मेसियाह ऑफ इंडियन इकॉनमी” (“Messiah of Indian Economy”) कहा गया। 2004 में जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं किया, तो कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। उनका यह सफर बताता है कि वे मूल रूप से अर्थशास्त्री थे, लेकिन राजनीति की जटिलता में उन्हें अक्सर “कमज़ोर” या “पपेट” (“Weakling” or “Puppet”) कहा जाने लगा।

कांग्रेस हाईकमान और गठबंधन की मजबूरी

मनमोहन सिंह जिस दौर में प्रधानमंत्री बने, वह कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में “हाईकमान संस्कृति” (“High Command Culture”) का समय था।

मनमोहन सिंह जिस दौर में प्रधानमंत्री बने, वह कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में “हाईकमान संस्कृति” (“High Command Culture”) का समय था। पार्टी का हर बड़ा निर्णय सोनिया गांधी और उनके नजदीकी नेताओं के इशारे पर लिया जाता था। साथ ही, यूपीए सरकार (UPA Government) गठबंधन पर आधारित थी और इसमें कई क्षेत्रीय दल शामिल थे। किसी भी मुद्दे पर सरकार गिरने का खतरा हमेशा बना रहता था। ऐसे में मनमोहन सिंह को अपनी नीतियों और विचारों से ज्यादा गठबंधन की राजनीति को प्राथमिकता देनी पड़ती थी। वे भले ही योग्य अर्थशास्त्री थे, लेकिन राजनीति में समझौते करना उनकी मजबूरी बन गई। कई बार वे चाहते हुए भी स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाए क्योंकि पार्टी के नेता और सहयोगी दलों की सहमति ज़रूरी थी। इस स्थिति ने विरोधियों को मौका दिया कि वे उन्हें “रबर स्टाम्प पीएम” कहकर आलोचना करें।

सोनिया गांधी की छाया और “पपेट” की छवि

डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) की सबसे बड़ी आलोचना यह रही कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाए।

डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) की सबसे बड़ी आलोचना यह रही कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाए। कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में नीति निर्धारण और बड़े फैसले सोनिया गांधी (Soniya Gandhi) और उनके राजनीतिक सलाहकारों के इशारे पर होते थे। मंत्रिमंडल में किसे शामिल करना है, किन योजनाओं पर ज़ोर देना है, इन सब पर सोनिया गांधी (Soniya Gandhi) का प्रभाव स्पष्ट था। कई बार संसद और मीडिया में विपक्ष ने आरोप लगाया कि असली प्रधानमंत्री सोनिया गांधी हैं और मनमोहन सिंह सिर्फ चेहरा भर हैं। उनके शांत स्वभाव और टकराव से बचने की आदत ने भी इस छवि को और मजबूत किया। हालांकि उनके समर्थक मानते हैं कि मनमोहन सिंह ने जानबूझकर सियासी टकराव से बचते हुए शासन चलाया, लेकिन विरोधियों ने इसे उनकी “कमज़ोरी” और “पपेट जैसी भूमिका” के रूप में प्रस्तुत किया।

भ्रष्टाचार घोटाले और छवि पर असर

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कई बड़े घोटाले सामने आए

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कई बड़े घोटाले सामने आए, जैसे 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2G spectrum scam), कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (Commonwealth Games scam) और कोयला आवंटन घोटाला (Coal Allocation Acam)। इन घोटालों ने उनकी छवि को गहरा धक्का पहुँचाया। प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे सख़्त कार्रवाई करते हुए दिखाई नहीं दिए। विपक्ष ने सवाल उठाया कि वे इन सब मामलों में चुप क्यों रहे? इस चुप्पी ने यह धारणा और मजबूत कर दी कि वे सिर्फ कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन असली नियंत्रण किसी और के पास है। जनता और मीडिया ने उन्हें “रिमोट कंट्रोल से चलने वाला प्रधानमंत्री” ("Remote-controlled Prime Minister") कहना शुरू कर दिया। हालांकि उनके समर्थक कहते हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से ईमानदार थे, लेकिन गठबंधन सरकार और पार्टी नेतृत्व के दबाव ने उन्हें खुलकर कदम उठाने से रोका। इन घोटालों ने उनकी ईमानदारी की छवि पर धूल तो नहीं जमाई, लेकिन उनकी राजनीतिक मजबूरी सबके सामने उजागर कर दी।

महान अर्थशास्त्री, लेकिन कमजोर राजनीतिज्ञ?

(Dr. Manmohan Singh)

डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) को हमेशा एक महान अर्थशास्त्री (Great Economist) और विद्वान के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिरता और विकास दिया। आईटी क्षेत्र, विदेशी निवेश और बैंकिंग सुधारों में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा। लेकिन राजनीति केवल नीतियों पर नहीं चलती, उसमें नेतृत्व, कठोर निर्णय और जनता से सीधा संवाद भी जरूरी होता है। यहीं वे कमजोर पड़ गए। उनकी चुप्पी और निर्णायकता की कमी ने उन्हें जनता से दूर कर दिया। वे अच्छे अर्थशास्त्री तो साबित हुए, लेकिन मजबूत राजनीतिक नेता के रूप में नहीं। यही कारण है कि इतिहास उन्हें एक “ईमानदार प्रधानमंत्री” मानते हुए भी “पपेट” कहे जाने की बहस से जोड़कर देखता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि ज्ञान और ईमानदारी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन राजनीति में नेतृत्व और निर्णायक शक्ति भी उतनी ही आवश्यक है।

Also Read: Amit Shah Interview: “60 करोड़ गरीब लोगों को पीएम मोदी का अनमोल साथ”- अमित शाह

डॉ. मनमोहन सिंह (Dr. Manmohan Singh) का राजनीतिक और आर्थिक सफर एक अनोखा मिश्रण है। एक तरफ़ वे भारत को आर्थिक संकट से निकालने वाले महान अर्थशास्त्री रहे, जिन्होंने उदारीकरण की नीतियों से देश की दिशा बदली। दूसरी तरफ़, प्रधानमंत्री रहते हुए उन पर “पपेट” होने का आरोप लगता रहा। इसका कारण था कांग्रेस हाईकमान का दबाव, गठबंधन सरकार की मजबूरियाँ और उनका शांत स्वभाव। व्यक्तिगत ईमानदारी और विद्वता पर कोई सवाल नहीं उठा, लेकिन जनता और विपक्ष को लगा कि वे स्वतंत्र निर्णय लेने में कमजोर रहे। यही विरोधाभास उनके पूरे कार्यकाल की सबसे बड़ी पहचान बन गया। वे एक ऐसे नेता साबित हुए जिनका योगदान अमिट है, लेकिन जिनकी छवि पर राजनीतिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ा। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि ज्ञान और ईमानदारी से बहुत कुछ पाया जा सकता है, मगर राजनीति में नेतृत्व की सख़्ती और निर्णायकता भी उतनी ही ज़रूरी है। [Rh/Eth/SP]

Bihar Elections 2025: कौन है श्री बाबू उर्फ़ बिहार के पहले मुख्यमंत्री?

पवन कल्याण की 'ओजी' ने बॉक्स ऑफिस पर रचा इतिहास, 'जॉली एलएलबी 3' को टक्कर

लातूर में श्रद्धालुओं के बैगों पर लगाए जा रहे रिफ्लेक्टर, हादसे से होगा बचाव

विश्व गर्भनिरोधक दिवस : अनचाही प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी, डॉ. मीरा पाठक ने बताए विकल्प

भारत और यूरोपीय संघ ने समुद्री प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए ‘आइडियाथॉन’ शुरू किया