Summary
विनोद कुमार शुक्ल का निधन 23 दिसंबर 2025 को 88 वर्ष की उम्र में रायपुर AIIMS में हुआ।
1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे शुक्ल हिंदी के प्रमुख कवि-लेखक रहे।
वो “नौकर की कमीज़” और “दीवार में एक खिड़की रहती थी” जैसी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध रहे।
"संसार में रहते हुए, कभी घर लौट न सकूँ, बस संसार में रहूँ, जब संसार में न रहूँ, तब घर लौटूं और घर मुझसे ख़ाली रहे।" आज छत्तीसगढ़ के राजनांदगाव का एक घर सच में खाली होगा। खालीपन अनुपस्थिति नहीं बल्कि किसी उपस्थिति के चले जाने से संबंध है। एक घर जहाँ पहले कभी चहल-पहल हुआ करती थी, वहां सन्नाटा पसरा होगा। वो व्यक्ति अब कभी घर वापस लौट नहीं पाएगा। उनके निधन से हिन्दी का एक अध्याय समाप्त हो गया।
हम बात प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) की कर रहे हैं, जिनका 23 दिसंबर 2025 को निधन हो गया। 88 साल की उम्र में उन्होंने रायपुर के AIIMS में अंतिम साँस ली। कोई व्यक्ति अपने कर्मों से ही श्रेष्ठ बनता है और अगर वो अपने कर्म के दौरान दुनिया को छोड़े, तो कह सकते हैं ईश्वर ने भी उसे श्रद्धांजलि दी है।
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) के साथ भी ऐसा ही हुआ। अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद उनका कलम नहीं रुका। 6 दिसंबर को उन्होंने अपनी आखिरी डायरी लिखी। उनकी आखिरी पंक्ति थी, "बत्ती मैंने पहले बुझाई, फिर तुमने बुझाई, फिर दोनों ने मिलकर बुझाई...।" ये पंक्तियाँ उनके जीवन की आखिरी निशानी बन गई। ऐसे में आज विनोद शुक्ल के जीवन से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारी को आपके साथ साझा करते हैं।
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) की उम्र 88 साल थी और बढ़ती उम्र के कारण उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। 2 दिसंबर 2025 को उनकी तबियत अचानक बिगड़ी, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें सांस लेने में गंभीर समस्या थी।
अस्पताल के अनुसार, उनकी मृत्यु का कारण मल्टीपल ऑर्गन इंफेक्शन और ऑर्गन फेलियर (अंगों का काम ना करना) था, जो उम्र और स्वास्थ्य जटिलताओं से जुड़ा था। अंततः 23 दिसंबर 2025 को रायपुर के AIIMS में उन्होंने अंतिम सांस ली।
1 नवंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के दौरे पर थे और उस दौरान उन्होंने विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) से बात की थी। पीएम मोदी ने उनका हालचाल लिया था। उनके बेटे शाश्वत के मुताबिक दोनों के बीच डेढ़ मिनट तक बातचीत हुई थी। पीएम मोदी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, "बस घर जाना चाहता हूं, लिखना चाहता हूं, क्योंकि लिखना मेरे लिए सांस की तरह है।"
अब जब उनका निधन हुआ, तो पीएम मोदी ने दुःख भी व्यक्त किया। अपने X हैंडल (पूर्व में ट्विटर) पर पीएम ने लिखा, 'ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।'
पीएम मोदी के आलावा गृहमंत्री अमित शाह और कुमार विश्वास ने भी दुःख व्यक्त किया। अमित शाह ने अपने X हैंडल (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार, भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। सादगीपूर्ण लेखन और सरल व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विनोद कुमार शुक्ल जी अपनी विशिष्ट लेखन कला के लिए सदैव याद किए जाएँगे। मेरी संवेदनाएँ उनके परिजनों, प्रशंसकों और असंख्य पाठकों के साथ हैं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। ॐ शांति शांति शांति"
वहीं, कुमार विश्वास ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, "विनोद कुमार शुक्ल के निधन से भारतीय कविता का एक अहम अध्याय खत्म हो गया है। प्रधानमंत्री ने भी उनकी सेहत के बारे में पूछा था। मुझे उम्मीद थी कि साहित्य उत्सव के दौरान उनसे मुलाकात होगी, लेकिन वो अपनी आखिरी यात्रा पर चले गए।"
1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव, जो उस समय मध्य प्रदेश में था और आज छत्तीसगढ़ का हिस्सा है, वहां एक व्यक्ति का जन्म होता है और नाम रखा जाता है, विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla)। कौन जानता था कि ये व्यक्ति आगे जाकर साहित्य की दुनिया का नाम रौशन करेगा।
उनका बचपन बहुत ही साधारण था लेकिन कल्पनाओं से भरा हुआ था। घर के पास सिनेमा हॉल था और वो वहीं बचपन में फ़िल्में देखते थे और यही से उनके साहित्य की दुनिया में कदम रखने की शुरुआत हो चुकी थी।
आसपास के छोटे-छोटे अनुभवों को देखना और रोज़मर्रा की ज़िंदगी को ध्यान से समझना, इन सारी चीजों से उन्हें यह एहसाह हो चुका था कि वो रचनात्मक दुनिया के लिए ही बने हैं। हालांकि, ज़िंदगी आपको बड़ी जिम्मेदारी देने से पहले एक कड़ी परीक्षा भी लेती है। हुआ कुछ यूँ कि वो 12वीं कक्षा में हिंदी विषय में फेल हो गए। जब फेल हुए, तो उन्हें कृषि कॉलेज में दाख़िला लेना पड़ा, जहाँ औपचारिक रूप से हिंदी नहीं पढ़ाई जाती थी।
बावजूद इसके उनका साहित्य से जुड़ाव कम नहीं हुआ। कॉलेज के दिनों में वे लगातार कविताएँ लिखते रहे। इसके बाद प्रसिद्ध कवि गजानन माधव मुक्तिबोध ने जब उनकी कविताएं देखी, तो वो काफी प्रभावित हुए और उन्होंने विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) को काफी प्रोत्साहन दिया।
धीरे-धीरे जब उनकी कविताएँ और गद्य रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं, तो वो हिंदी साहित्य की दुनिया में पहचाने जाने लगे और एक साधारण जीवन असाधारण में बदल गया। आगे चलकर लिखना ही उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी।
लगभग पिछले 5 दशक से विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) हिंदी साहित्य की दुनिया में सक्रिय रहे। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास और बाल-साहित्य, चारों क्षेत्रों में अपनी लेखनी से सबका मन मोह लिया। उनकी लेखनी का केंद्र साधारण मनुष्य का जीवन, उसकी इच्छाएँ और रोज़मर्रा की दुनिया रही, जिसे पढ़कर हर कोई प्रभावित हुआ।
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में उपन्यास “नौकर की कमीज़” और “दीवार में एक खिड़की रहती थी” शामिल हैं। ‘नौकर की कमीज’ पर निर्देशक मणि कौल ने 1999 में फिल्म भी बनाई थी। नौकर की कमीज़ आम आदमी की आर्थिक और मानसिक स्थिति की सादगी को दिखाता है। वहीं, बच्चों के लिए भी उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें कल्पना और मासूमियत की खास झलक मिलती है।
साथ ही कविता के क्षेत्र में भी विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) का योगदान काफी अहम है। उनकी पहली कविता संग्रह “लगभग जय हिंद” थी। इसके बाद “सब कुछ होना बचा रहेगा” जैसे संग्रह आए, जिन्हें पाठकों ने खूब पसंद किया।
उनकी प्रसिद्ध कविताओं में “वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर”, “आकाश धरती को खटखटाता है” और “कविता से लंबी कविता” जैसी रचनाएँ शामिल हैं। उनकी कविताएँ इतनी सरल शब्दों में होती थी कि पाठकों के दिल को छू जाती थी।
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) को हम हिंदी साहित्य का ब्रांड भी कह सकते हैं। इस क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें साल 1999 में “दीवार में एक खिड़की रहती थी” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।
वहीं, 2025 में उन्हें हिंदी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार (59वाँ) मिला। वे छत्तीसगढ़ के पहले लेखक बने जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ। साथ ही उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर PEN/नाबोकोव पुरस्कार और देश के कई प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान भी मिल चुके हैं। आज वो हिंदी साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाते हैं।
आने वाले 1 जनवरी को विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) 89 साल के हो जाते लेकिन इससे पहले ही वो दुनिया छोड़कर चले। उनके जीवन से सीखने वाली बात ये है कि 88 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने चार कहानियां लिखीं। अस्पताल में भर्ती रहे और इसके बाद भी उन्होंने लिखने का सिलसिला नहीं छोड़ा। 2 दिसंबर को जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो वहां हफ्ते भर बाद भी उन्होंने एक कविता लिखी।
एक बार उन्होंने कहा था कि कहने के लिए पूरी जिंदगी बची होती है और बिना कहे बात जारी है। कविताएं टुकड़ों-टुकड़ों में होती है। विनोद शुक्ल आगे कहते हैं कि पूरी जिंदगी भर की टुकड़ों-टुकड़ों की कविताएं, एक ही जिंदगी की केवल एक ही कविता होती है और मैं वही कविता लिखता हूँ। बहुत संकोच के साथ, पहली बार लिख रही किसी कविता की तरह।
विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) की कविता की खासियत ये थी कि वो कभी पूर्ण विराम नहीं लगाते थे। उन्हें ये अनावश्यक लगता था। उनका कहना था कि पूर्ण विराम ये तय करता है कि आगे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है।
आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जब तक भाषा का अस्तित्व रहेगा उनकी लेखनी स्मृति बनकर हमारे बीच हमेशा रहेगी।
(RH/ MK)